भारत के लिये ओलंपिक पदक जीतने में इतना संघर्ष क्यों है?
भारत अपने ओलंपिक प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए क्या कर सकता है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
- प्रतिभा की पहचान: भारत में, प्रतिभा की पहचान अक्सर तदर्थ आधार पर होती है, जिसकी पहुँच और प्रभावशीलता सीमित होती है।
- युवा एथलीटों की खोज और पहचान करने में प्रणालीगत समस्याएँ हैं, खासकर दूरदराज़ के क्षेत्रों में।
- बुनियादी ढाँचा और संसाधन: भारत के कई क्षेत्रों में एथलीटों को प्रभावी ढंग से प्रशिक्षित करने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे और संसाधनों की कमी है।
- प्रशिक्षण सुविधाओं, कोचिंग विशेषज्ञता और वित्तीय सहायता तक सीमित पहुँच संभावित प्रतिभाओं के विकास में बाधा बन सकती है।
- कई एथलीट सरकार से अपर्याप्त वित्तीय सहायता के कारण संघर्ष करते हैं। उदाहरण के लिये, भारत के शीर्ष शीतकालीन ओलंपियन शिवा केशवन को अपने प्रशिक्षण और भागीदारी के लिये क्राउडफंडिंग का सहारा लेना पड़ा।
- भारत में अरबपतियों और निजी संपत्ति की बढ़ती संख्या के बावजूद, क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों में प्रायोजन एवं निवेश में अभी भी एक महत्त्वपूर्ण अंतर है।
- क्रिकेट का प्रभुत्व: भारत में क्रिकेट की अत्यधिक लोकप्रियता ने खेल परिदृश्य में असंतुलन उत्पन्न कर दिया है, जिसमें 87% खेल पूंजी क्रिकेट को आवंटित की गई है और अन्य सभी खेलों के लिये केवल 13%। इस असंगत आवंटन ने ओलंपिक खेलों के विकास में बाधा उत्पन्न की है।
- क्रिकेट के अलावा एक मज़बूत खेल संस्कृति और मीडिया प्रचार की कमी एक बाधा रही है। ओलंपिक खेलों को पर्याप्त रूप से समर्थन देने और भारत में अधिक समावेशी और प्रतिस्पर्धी
- खेल संस्कृति बनाने के लिये खेल निवेश और प्रचार हेतु अधिक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।
- अपर्याप्त खेल नीतियाँ: भारत की खेल नीतियाँ ऐतिहासिक रूप से खंडित और कम वित्तपोषित रही हैं।
- खेल के बुनियादी ढाँचे में सुधार और एथलीटों का समर्थन करने हेतु टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम जैसे प्रयास किये गए हैं। हालाँकि, ये पहल अपेक्षाकृत हाल ही की हैं और अभी तक महत्त्वपूर्ण परिणाम नहीं दे पाई हैं।
- दीर्घकालिक विकास: भारत के खेल कार्यक्रम अक्सर एथलीट के दीर्घकालिक विकास के बजाय अल्पकालिक सफलताओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- विश्व स्तरीय एथलीट तैयार करने हेतु कई वर्षों तक निरंतर निवेश और योजना की आवश्यकता होती है।
- उदाहरण: सफल ओलंपिक देशों के पास दीर्घकालिक विकास योजनाएँ हैं जिनमें युवा प्रतिभाओं की खोज करना, उन्हें शुरुआती प्रशिक्षण प्रदान करना और उनके कॅरियर के दौरान उनका समर्थन करना शामिल है।
- खेल प्रशासन में भ्रष्टाचार और राजनीति: भारत में खेल प्रशासन पर अक्सर राजनेताओं और नौकरशाहों का दबदबा होता है, जिससे खेल प्रशासन का राजनीतिकरण होता है।
- भ्रष्टाचार और नौकरशाही बाधाएँ अक्सर एथलीटों के विकास में बाधा डालती हैं, जिसमें खिलाड़ियों के हित अक्सर पीछे छूट जाते हैं।
- भारतीय खेल संगठन, विशेष रूप से शासी निकाय, पेशेवर और व्यावसायिक क्षेत्र की चुनौतियों के अनुकूल नहीं बन पाए हैं, वे कुशल पेशेवरों को नियुक्त करने के बजाय स्वयंसेवकों पर निर्भर हैं।
- कुश्ती महासंघ के भीतर हाल के विवाद भारतीय खेल प्रशासन को परेशान करने वाले व्यापक मुद्दों का संकेत हैं।
- खेल संस्कृति का अभाव: भारत में खेलों की तुलना में शिक्षा को सामाजिक प्राथमिकता दी जाती है। परिवार प्रायः चिकित्सा या लेखा जैसे क्षेत्रों में कॅरियर को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि वे खेल को वित्तीय सुरक्षा हेतु कम व्यवहार्य मानते हैं।
- जाति और क्षेत्रीय पहचान से मज़बूत संबंधों के साथ भारत का जटिल सामाजिक स्तरीकरण एकीकृत खेल संस्कृति के विकास में बाधा डालता है। कई समुदाय पारंपरिक भूमिकाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए अभिजात वर्ग के स्तर पर खेलों को आगे बढ़ाने को हतोत्साहित करते हैं।
भारत अपने ओलंपिक प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए क्या कर सकता है?
- ज़मीनी स्तर पर विकास: ज़मीनी स्तर पर खेलों के विकास पर अधिक ज़ोर दिया जाना चाहिये। विभिन्न खेल-विधाओं में कम उम्र से ही प्रतिभा की पहचान करना और उसका पोषण करना एक मज़बूत आधार बनाने में सहायता कर सकता है।
- बुनियादी अवसंरचना में निवेश: विश्व स्तरीय प्रशिक्षण सुविधाओं का निर्माण और एथलीटों को सर्वोत्तम कोचिंग व सहायता प्रणाली तक पहुँच प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है। इसमें मनोवैज्ञानिक सहायता, पोषण और चोट प्रबंधन शामिल हैं।
- जमैका और ग्रेनेडा जैसे छोटे देश, जिनकी आबादी बहुत कम है, ओलंपिक में नियमित रूप से भारत से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। स्प्रिंटिंग जैसे विशिष्ट खेलों में उनका केंद्रित निवेश लक्षित विकास के महत्त्व को दर्शाता है।
- एथलीटों को सशक्त बनाना: एथलीट खेलों में प्राथमिक हितधारक हैं तथा निर्णय लेने में उनकी भागीदारी खेल संगठनों में बहुत जरूरी जवाबदेही और पारदर्शिता ला सकती है।
- महाविद्यालय खेल तंत्र: भारत एक महाविद्यालय/कॉलेजिएट खेल तंत्र विकसित कर सकता है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में नेशनल कॉलेजिएट एथलेटिक्स एसोसिएशन (NCAA) को प्रतिबिंबित करता है।
- NCAA ने न केवल अमेरिका के लिये बल्कि पूरे विश्व के देशों के लिये बड़ी संख्या में ओलंपिक चैंपियन तैयार किये हैं। अगर NCAA कोई देश होता तो वह पेरिस ओलंपिक 2024 में 60 स्वर्ण पदकों के साथ पदक तालिका में शीर्ष पर होता।
- छोटे और बड़े देशों के कई एथलीट अपनी ओलंपिक सफलता का श्रेय NCAA में प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्धा को देते हैं, जिससे अमेरिकी कॉलेज खेल प्रणाली वैश्विक खेलों में एक प्रमुख खिलाड़ी बन गई है।
- भारत के महाविद्यालय खेल तंत्र को छात्रवृत्ति और शैक्षणिक सहायता प्रदान करके शैक्षणिक एवं एथलेटिक्स के बीच संतुलन बनाना चाहिये, ताकि प्रतिभाशाली एथलीटों को आकर्षित किया जा सके, अन्यथा वे खेल से बाहर हो सकते हैं।
- विभिन्न खेलों में नियमित अंतर-महाविद्यालय और अंतर-विश्वविद्यालय प्रतियोगिताओं को बढ़ावा देने से युवा एथलीटों को उच्च दबाव वाली स्थितियों का अधिक अनुभव प्राप्त होगा, जिससे वे ओलंपिक जैसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिये तैयार हो सकेंगे।
- सांस्कृतिक बदलाव: खेलों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव आवश्यक है। परिवारों को बच्चों को खेल में कॅरियर बनाने में सहायता करने के लिये प्रोत्साहित करना और शिक्षा प्रणाली में खेलों को शामिल करना मददगार हो सकता है।
- चीन, जो भारत के साथ कुछ सामाजिक-आर्थिक समानताएँ साझा करता है, ने कम उम्र से ही प्रतिभाओं की व्यवस्थित पहचान करके और उन्हें बढ़ावा देकर उत्कृष्टता हासिल की है।
- खेलों में सरकार के उद्देश्यपूर्ण और निरंतर निवेश के परिणामस्वरूप ओलंपिक में पदक प्राप्त हुए हैं।
- सरकारी सहायता में वृद्धि: सरकार को ओलंपिक खेलों के लिये अधिक सुसंगत और पर्याप्त निधि प्रदान करनी चाहिये। इसमें एथलीटों को प्रत्यक्ष सहायता के साथ-साथ प्रशिक्षण और अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन में निवेश शामिल है।
- विकास पर ध्यान केंद्रित करना: भारत को लॉस एंजिल्स ओलंपिक- 2028 के लिये अपने एथलीटों की संख्या को 117 से बढ़ाकर तीन गुना करने का लक्ष्य रखना चाहिये ताकि अमेरिका और जापान, जिनके पास क्रमशः 600 और 400 से अधिक एथलीट हैं, के साथ बेहतर प्रतिस्पर्द्धा की जा सके।
- इस वृद्धि से स्वाभाविक रूप से अधिक पदक मिलेंगे। भारत को केवल वर्ष 2036 में होने वाले खेलों की मेज़बानी पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, लॉस एंजिल्स (ग्रीष्मकालीन) ओलंपिक- 2028 और उसके बाद के पदकों की संख्या में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये ताकि भारत को ओलंपिक खेल राष्ट्र के रूप में स्थापित किया जा सके। पेरिस ओलंपिक गंभीर अंतर्निरीक्षण/अंतर्दर्शन और अधिगम का एक अवसर है।
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