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प्रत्येक वर्ष जनवरी के आखिरी रविवार को कुष्ठ दिवस क्यों मनाया जाता है? - श्रीनारद मीडिया

प्रत्येक वर्ष जनवरी के आखिरी रविवार को कुष्ठ दिवस क्यों मनाया जाता है?

प्रत्येक वर्ष जनवरी के आखिरी रविवार को कुष्ठ दिवस क्यों मनाया जाता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जनवरी के आखिरी रविवार को कुष्ठ दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह 29 जनवरी को मनाया गया। कुष्ठ रोग को हैनसेन रोग भी कहा जाता है।

  • यह दिन दुनिया भर में कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों को अपनी आवाज़ उठाने का अवसर प्रदान करने के लिये मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु 

  • थीम 2023: एक्ट नाउ एंड लेप्रोसी।
  • इतिहास: विश्व कुष्ठ दिवस की स्थापना वर्ष 1954 में फ्राँसीसी समाजसेवी राउल फोलेरेउ द्वारा की गई थी।
  • उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य कुष्ठ रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाना और लोगों को इस प्राचीन बीमारी के बारे में शिक्षित करना था जो कि अब आसानी से ठीक हो सकती है।
    • दुनिया भर में कई लोगों को इस बीमारी के बारे में जानकारी नहीं है, साथ ही  बुनियादी चिकित्सा देखभाल तक पहुँच की कमी है और बीमारी के संदर्भ में समाज में पूर्वाग्रह है। 

कुष्ठ रोग: 

  • परिचय:
    • कुष्ठ रोग एक चिरकालिक संक्रामक रोग है जो माइकोबैक्टीरियम लेप्रे नामक जीवाणु के कारण होता है।
    • कुष्ठ रोग उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (Neglected Tropical Disease- NTD) है जिससे अब भी 120 से अधिक देश प्रभावित हैं और प्रत्येक वर्ष इस रोग के 2,00,000 से अधिक नए मामले सामने आते हैं।

Leprosy

  • लक्षण:
    • यह रोग मुख्य रूप से त्वचा, परिधीय (Peripheral) नसों, ऊपरी श्वसन पथ और आँखों के श्लेष्म को प्रभावित करता है।
  • प्रसार:
    • अनुपचारित लोगों के साथ नज़दीकी और लगातार संपर्क में रहने के दौरान नाक और मुँह से उत्सर्जित ड्रापलेट्स के माध्यम से कुष्ठ रोग फैलता है।
  • कुष्ठ रोग में लैंगिक असमानता:
    • यद्यपि कुष्ठ रोग दोनों लिंगों को प्रभावित करता है, किंतु विश्व के अधिकांश हिस्सों में महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक प्रभावित होते हैं। डब्ल्यूएचओ की वैश्विक कुष्ठ रोग रिपोर्ट के अनुसार, यह अनुपात लगभग 2:1 का है।
  • उपचार:
    • कुष्ठ रोग का MDT (मल्टी ड्रग थेरेपी) द्वारा इलाज संभव है और शुरुआती चरणों में उपचार से दिव्यांगता को रोका जा सकता है। यह रोग वंशानुगत नहीं है तथा कुष्ठ रोग का संचारण माता-पिता से बच्चों में नहीं होता है।
  • परिदृश्य:
    • वर्ष 2021 में 1,40,000 नए कुष्ठ रोग के मामले सामने आए, जिनमें से 95% नए मामले 23 वैश्विक प्राथमिकता वाले देशों में देखे गए। इनमें से 6% का दृश्य विकृति या ग्रेड -2 दिव्यांगता (G2D) का निदान किया गया था।
    • नए मामलों में से 6% से अधिक 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे थे। 
    • वर्ष 2020 से वर्ष 2021 तक नए मामलों में 10% की वृद्धि के बावजूद रिपोर्ट किये गए मामले वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2021 में 30% कम रहे। 
      • यह संचरण में कमी के कारण नहीं है, बल्कि इसलिये है क्योंकि कोविड-19 से संबंधित व्यवधानों की वजह से कुष्ठ रोग के मामलों का पता नहीं चल पाया है।
  • भारत द्वारा किये गए प्रयास:
    • वर्ष 2017 में सरकार ने राष्ट्रव्यापी स्पर्श कुष्ठ जागरूकता अभियान (Sparsh Leprosy Awareness Campaign- SLAC) शुरू किया, इसका उद्देश्य प्रारंभिक स्तर पर ही कुष्ठ रोग का पता लगाना और इसका उपचार करना है।
    • राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम (National Leprosy Eradication Programme- NLEP) विशेष रूप से स्थानिक क्षेत्रों में रोकथाम और इलाज पर केंद्रित है। मार्च 2016 में कुष्ठ रोग के मामलों का पता लगाने के लिये एक अभियान शुरू किया गया था, जिसमें घर-घर जाकर जाँच की गई और रोग के निदान के लिये रोगियों को उचित इलाज हेतु स्वास्थ्य केंद्र भेजा गया।
    • NLEP में कुष्ठ रोग के लिये माइकोबैक्टीरियम इंडिकस प्रानी (MIP), स्वदेशी रूप से विकसित टीके को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी द्वारा विकसित किया गया है। यह टीका कुष्ठ रोगियों के निकट संपर्क में रहने वालों को निवारक उपाय के रूप में लगाया जाता है।
    • भारतीय अनुसंधान का मल्टी-ड्रग थेरेपी या MDT के विकास में काफी योगदान है, जिसकी सिफारिश अब WHO द्वारा की गई है, इसका लाभ यह हुआ है कि उपचार की अवधि में कमी आने के साथ-साथ उपचारित लोगों के आँकड़े में भी वृद्धि देखी गई।
    • कुष्ठ रोग के खिलाफ लड़ाई को समाज द्वारा प्रदर्शित संवेदनशीलता से स्पष्ट तौर पर समझा जा सकता है। इस कलंक को हटाना अति आवश्यक है। विभिन्न विधिक उपायों के अतिरिक्त कुष्ठ रोग के प्रति हमारे दृष्टिकोण में बदलाव लाना इस दिशा में बड़ा कदम होगा।
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