भगवान धन्वंतरि की आखिर क्यों की जाती है पूजा?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भगवान धन्वंतरि की जयंती प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के मौके पर मनाई जाती है। काशी से धन्वंंतरि का विशेष संबंध माना जाता है। धन्वंतरि का संबंध काशी से रहा है और वह विष्णु अंश के अवतार देव के तौर पर धनतेरस के मौके पर पूजे जाते हैं। काशी में उनसे जुड़े धन्वंतरि कूप की मौजूदगी काशी से उनके संबंध का प्रमाण माना जाता है।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार वह आयुर्वेद के जनक भी माने जाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पृथ्वी में उनका अवतरण समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश हाथ में लेकर हुआ था। इसी प्रकार शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी के मौके पर कामधेनु गाय और त्रयोदशी को धन्वंतरि और चतुर्दशी को काली मांं और अमावस्या को महालक्ष्मी का समुद्र मंथन के दौरान उत्पत्ति हुई थी।
भगवान धन्वंतरि की यह है छवि
लिहाजा दीपावली के दो दिन पूर्व ही धन्वंतरि के अमृत कलश लेकर धरती पर अवतरित होने की मान्यता के अनुसार ही भगवान धन्वंतरि का जन्म धनतेरस पर्व के तौर पर मनाया जाता है। उनके साथ ही आयुर्वेद का भी धरती पर अवतरण हुआ था। मान्यतओं के अनुसार भगवान विष्णु का एक अंश होने के साथ ही उनकी चार भुजायें हैं और ऊपर की दोनों भुजाओं में शंख और अमृत कलश है। शेष दो अन्य हाथों में एक में औषधि और आयुर्वेद का ज्ञान है।
काशी से संबंध और पुराणों में जिक्र
उनका इनका प्रिय धातु पीतल को माने जाने की वजह से धनतेरस पर पीतल के बर्तन खरीदने की परंपरा हिंदू धर्म में रही है। कालांतर में उन्होंने अमृत सरीखे औषधियों की खोज कर आयुर्वेद की मान्यता को स्थपित किया था लिहाजा चिकित्सक भी इस दिन उनकी पूजा करना नहीं भूलते। एक मान्यता यह भी है कि वह काशिराज धन्व के पुत्र के रूप में वह जन्मे थे इसलिए वह धन्वंतरि कहलाए। विष्णु और ब्रह्म पुराण में भी वैदिक जानकार इसकी मान्यता स्वीकारते हैं।
काशी में इकलौता धन्वंतरि का मंदिर
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी इस बार दो दिन लगने से तिथियों के फेर के बाद भी सुड़िया में वैद्यराज आवास स्थित भगवान धन्वंतरि मंदिर के कपाट 22 अक्टूबर को खुलेंगे। आरोग्य आशीष के लिए भक्तों के पास सिर्फ पांच घंटे ही हैं। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि शाम 4.33 बजे लग रही है।
पूजन विधान चार बजे ही शुरू हो जाएंगे लेकिन प्रभु के दर्शन शाम पांच बजे से रात 10 बजे तक होंगे। काशी के प्रसिद्ध राजवैद्य स्व. पंडित शिव कुमार शास्त्री के धन्वंतरि निवास में स्थापित भगवान धन्वंतरि की देश की अकेली अष्टधातु की मूर्ति करीब 325 साल पुरानी है। साल में सिर्फ एक दिन धनतेरस पर आम दर्शन के लिए मंदिर के पट खुलते हैं।
धन्वंतरि कूप की काशी में मान्यता
काशी में परंपरागत सुनाई जाने वाली दंतकथाओं के अनुसार महाभारत काल में राजा परीक्षित को विधान के अनुसार डसने जा रहे नागराज तक्षक और ‘संजीवनी’ के दम पर राजा परीक्षित को बचाने जा रहे आयुर्वेदाचार्य भंगवान धन्वंतरि की भेंट काशी के मध्यमेश्वर क्षेत्र स्थित विख्यात महामृत्युंजयेश्वर मंदिर के तीसरे खंड परिसर में प्राचीन कूप के पास हुई थी।
मान्यताओं के अनुसार दोनों ने यहीं अपने प्रभाव का परीक्षण किया। अपने विष दंश से हरे भरे पेड़ को खत्म कर देने वाला तक्षक यह देखकर दंग रह गया कि धन्वंतरि ने अपनी चमत्कारी औषधि से उसे पुन: हरा-भरा कर दिया। ऐसे में विधि का विधान कहीं डिगने न पाए, इस संशयवश तक्षक ने छलपूर्वक धन्वंतरि को पीठ पर डस लिया ताकि वह औषधि का वहां पर लेप न कर सकें। उस कथा के अनुसार धन्वंतरि ने अपनी औषधियों की मंजूषा उस समय इस कूप में ही डाल दी जिसे काशी में आज धन्वंतरि कूप कहा जाता है।
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