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मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है? - श्रीनारद मीडिया

मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है?

मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो ज्‍योतिष में इस घटना को संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति के अवसर पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास कहलाता है। पौष मास में सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इस अवसर को देश के अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग त्‍योहार के रूप में मनाते हैं।

मकर संक्रांति का सनातन धर्म में बहुत खास महत्व है. यह त्योहार तब मनाया जाता है, जब सूर्य देव मकर राशि में गोचर करते है. आसान भाषा में कहें तो हर साल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है. जनवरी में मकर संक्रांति का त्योहार 14 या 15 तारीख को पड़ता है. मकर संक्रांति के दिन गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान किया जाता है. साथ ही, इस दिन सूर्य देव की उपासना कर दान-पुण्य करते हैं.

संक्रांति क्या है?

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने या गोचर करने को संक्रांति कहा जाता है. पूरे साल में सूर्य देव 12 राशियों में गोचर करते हैं. एक राशि में सूर्य देव 30 दिनों तक रहते हैं. इस प्रकार एक साल में 12 संक्रांति पड़ती हैं लेकिन इन सभी संक्रांति में मकर संक्रांति और मीन संक्रांति को सबसे महत्वपूर्ण माना जता है.

जब सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है.मकर संक्रांति के त्योहार को भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है और इन्हें पोंगल, खिचड़ी, संक्रांति, उत्तरायण भी कहा जाता है. मकर संक्रांति बेहद खास इसलिए भी मानी जाती है, क्योंकि इस दिन से खरमास समाप्त हो जाता है और खरमा के समाप्त होने से शादी-विवाह या अन्य मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं.

मकर संक्रांति मनाने का क्या कारण है?

जब सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे सूर्य का संक्रमण काल कहा जाता है. इस दिन को ही मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. देश के कई हिस्सों में मकर संक्रांति को खिचड़ी भी कहते हैं.

मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन ग्रहों के राजा सूर्य देव धनु राशि को छोड़कर अपने पुत्र शनि की राशि यानी मकर राशि में आते हैं. सूर्य और शनि का संबंध मकर संक्रांति के पर्व से काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. इस दिन से खरमास समाप्त हो जाता है और एक बार फिर से सभी और मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है. हिंदू धर्म शास्त्रों में निहित कथाओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं.

पुराणों में मकर संक्रांति की कथा
श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण के मुताबिक, शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था, इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था।

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस दिन से सूर्य के उत्तरायण हो जाने से प्रकृति में बदलाव शुरू हो जाता है। ठंड की वजह से सिकुड़ते लोगों को सूर्य के उत्तरायण होने से शीत ऋतु से राहत मिलना आरंभ होता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां के पर्व त्योहार का संबंध काफी कुछ कृषि पर निर्भर करता है। मकर संक्रांति ऐसे समय में आता है जब किसान रबी की फसल लगाकर खरीफ की फसल, धन, मक्का, गन्ना, मूंगफली, उड़द घर ले आते हैं। किसानों का घर अन्न से भर जाता है। इसलिए मकर संक्रांति पर खरीफ की फसलों से पर्व का आनंद मनाया जाता है।

 

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