युवाओं पर मोबाइल का घातक प्रभाव क्यों हो रहा है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
इंटरनेट, मोबाइल एवं अन्य तरह के उपकरण हमारे दिनचर्या का हिस्सा हो गए है। हाल में ही एक सर्वे की रिपोर्ट आई है जिसमें 1997 से 2012 के बीच जन्म लेने वाले युवाओं को ‘जेन जी’ पीढ़ी कहा गया है। यह वह पीढ़ी है जो पिछली पीढीयों की तुलना में कहीं अधिक सुविधा संपन्न है। इसे किसी भी तरह की कमी का कभी भी अनुभव नहीं हुआ। लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि यह पीढ़ी तनाव, चिंता,संत्रास,भय और अवसाद में क्यों डूबी हुई है? इस पीढ़ी में धडल्ले से आत्महत्या की प्रवृति बढ़ती जा रही है।
समाज ने भौतिकवादिता का लबादा कुछ इस तरह से ओढ़ रखा है कि उसके भीतर अकेलेपन के अलावा कुछ और शेष नहीं बच गया है। कम समय में अधिक से अधिक प्राप्त कर लेने की चाह मनुष्य को मशीन में बदल दिया है। इसका अनुमान उसे भी नहीं होता। उसके पास जितना समय है वह उसमें पूरी दुनिया से जुड़ जाना चाहता है। नई पीढी की दुनिया में कोई खलल न डाले, इसलिए वह अकेले रहना चाहता है। जहां उसके पराजय, हताश और निराशा देखने के लिए कोई सम्बंध शेष नहीं बच जाता यानी उसे अपनी उपलब्धियां और अपनी निराशा को भी साझा करने में भी डर लगता है। यही कारण है कि यह पीढ़ी अवसाद और भय की ओर बढ़ती चली जा रही है।
हमारे भारतीय समाज में बंधुता, मित्रता और नातेदारी जैसे शब्द बड़े ही प्रासंगिक रहे है और आगे भी रहेंगे। परन्तु नई पीढ़ी ने पश्चिम की ओर अपना मुंह कर दिया और भारतीय संस्कृति की ओर अपना पीठ कर दिया है। आज उसे इसका परिणाम भुगतना पड़ रहा है। एक सर्वे के अनुसार किशोर इंटरनेट मीडिया पर एक दिन में सात घंटे से अधिक समय व्यतीत करते है, यही कारण है कि वह कुंठा,संत्रास,भय और अवसाद इत्यादि कई प्रकार की चिंताओं से ग्रस्त है।
बहरहाल उनकी भावनाओं, उलझन और हताशा के बीच भावनात्मक संबल की एक मजबूत कड़ी जोड़नी होगी ताकि वह अपने सभ्यता संस्कृति से जुड़े रहे क्योंकि हमारे यहां सफलता का मतलब आध्यात्मिक सुख होता है और पश्चिम में सफलता का अर्थ भौतिक भोग होता है। इसे युवा पीढ़ी को समझना होगा वरना वह पश्चिम के कुछ चक्र में फंसते चले जाएंगे और अपने को बर्बाद कर लेंगे।
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