क्यों मनाया जाता है सतुआन?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जिस दिन सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है, उस दिन को मेष संक्रांति के नाम से जाना जाता है. जबकि उत्तर भारत के लोग इसे सत्तू संक्रांति या सतुआ संक्रांति के नाम से जानते हैं. इस दिन भगवान सूर्य उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरी करते हैं. इसी के साथ खरमास समाप्त हो जाता है और सभी तरह के शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं.

मेष संक्रांति को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. उत्तर भारत सहित उत्तर पूर्व के कुछ राज्यों में इसे सतुआना के रूप में मनाया जाता है और इस दिन सत्तू को उनके इष्ट देवता को अर्पित किया जाता है और फिर स्वयं प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. आइए जानते हैं इस साल सतुआन कब है और क्या है इसे मनाने का महत्व.आमतौर पर हर साल सतुआन का त्योहार 14 या 15 अप्रैल को ही पड़ता है.

इस दिन सूर्य राशि परिवर्तित करते हैं. इसी के साथ इस दिन से गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है. सतुआन के दिन सत्तू खाने की परंपरा काफी समय से चली आ रही है. इस दिन लोग मिट्टी के बर्तन में भगवान को पानी, गेहूं, जौ, चना और मक्का के सत्तू के साथ आम का टिकोरा चढ़ाते हैं. इसके बाद वह स्वयं इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.

सतुआन के दिन घर में आम के टिकोरे और इमली की चटनी बनाई जाती है. इसके बाद चना, जौ, गेहूं और मक्का की सत्तू मिलाकर पानी में आटे की तरह गूंथ कर खाया जाता है. लोग इसके साथ अचार, चोखा और चटनी खाते हैं. इसके अलावा कई लोग नींबू, मिर्च, टमाटर, चटनी, नमक आदि मिलाकर केवल चने के सत्तू का ही सेवन करते हैं. सत्तू बिहारियों का पसंदीदा खाना है.

मान्यता है प्राचीन काल में वैशाख मास में भीषण गर्मी होती थी। भगवान शिव को गर्मी से राहत दिलाने का विधान यह है कि एक घड़ा उसके नीचे एक छोटा सा छेद करते हैं। उसमें शुद्ध कपड़े की बत्ती बनाकर लगा दें। घड़े में जल भरकर शिवजी के ऊपर उसे लटका दें। एक-एक बूंद शिवङ्क्षलग पर जल गिरता है, जिससे भगवान ठंडा महसूस करते हैं। एक महीने तक घड़े में जल देने का विधान है।

शिवङ्क्षलग पर एक- एक बूंद जल का गिरने से बहुत पुण्य मिलता है। पुत्र, संतान, भाग्योदय परिवार, समाज या विश्व के हितार्थ सभी कामना पूर्ण होती है। उन्होंने कहा कि सदियों पहले लोग अपने अपने दरवाजे पर बड़े-बड़े पियाउ रखते थे। आज के दिन सतुआन पर्व भी मनाया जाता है। कृषि क्षेत्र में लोग नया अन्न तैयार कर उसका सत्तू बनाकर खाते हैं। टिकोला भी आज से ही खाना आरंभ होता है। संक्रांत के हिसाब से आज से समय शुद्ध हो गया। शादी विवाह आदि सभी अ’छे और शुभ काम आज से आरंभ हो जाएंगे।

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