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हवन में मंत्र के अंत में स्वाहा का उच्चारण क्यों होता है? पढ़े यह पूरी खबर - श्रीनारद मीडिया

हवन में मंत्र के अंत में स्वाहा का उच्चारण क्यों होता है? पढ़े यह पूरी खबर

हवन में मंत्र के अंत में स्वाहा का उच्चारण क्यों होता है? पढ़े यह पूरी खबर

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

 

 

आपने हवन किए होंगे. हर देवता के निमित्त हविष डालने के लिए आपके उनके मंत्र का उच्चारण करते हैं. हर मंत्र के आखिर में जोड़ते हैं स्वाहा. कई बार तो मंत्र का उच्चारण पुरोहित ही करते हैं यजमान सिर्फ स्वाहा बोलते हैं. स्वाहा का उच्चारण बोलना भी पर्याप्त माना जाता है. उस देवता को आपकी तरफ से हविष पहुंच जाती है. यानी स्वाहा में इतनी शक्ति है कि आपके द्वारा अर्पित भेंट उनतक पहुंच जाती है. सिर्फ उन देवता का स्मरण करके और स्वाहा बोल देने से भी.

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कौन हैं स्वाहा. कोई मंत्र, कोई देवशक्ति या कुछ और. आपने जिन स्वाहा का अनगिनत बार स्मरण किया होगा आज उनकी कहानी भी सुनाता हूं..

सृष्टि के आरंभ में जब देवताओं की उत्पत्ति हुई तो उन्हें आहार भी चाहिए था. अपब देवताओं अपने भोजन की खोज में इधर-उधर भटकना पड़ता था. इस कारण वे अपने वे सारे कार्य समय से पूर्ण नहीं कर पाते थे जो ब्रह्रमा देवों ने ब्रह्मा को अपनी समस्या बताई.

ब्रह्मा ने कहा मैं तो रचयिता हूं. मैंने सृजन कर दिया.  पालन की जिम्मेदारी श्रीविष्णु की है. इसलिए हे देवताओं आपको श्रीहरि के पास जाना  चाहिए. वे ही इसका वास्तविक निदान दे सकते हैं.

ब्रह्माजी के आदेश से देवतागण श्रीहरि के लोक पहुंचे. वहां उन्होंने स्तुति आदि के बाद अपनी समस्या बताई और कहा कि ब्रह्मा जी  ने आपके पास भेजा है. अब श्रीहरि को निदान निकालना था.

नारायण अपने अंश से यज्ञपुरुष के रूप में प्रकट हुए. यज्ञपुरुष स्वरूप में नारायण ने देवताओं से कहा- ब्राह्मण या यजमान आदि जो यज्ञादि करेंगे हविष का वही अंश देवताओं को भोजन के रूप में प्राप्त होगा. भूलोक पर यज्ञादि भरपूर होते रहते हैं. इसलिए उन्हें भोजन की समस्या न होगी. हे देवताओं जाओ और ब्रह्मा जी के आदेश के अनुसार अपना कार्य पूरा करें. आपके आहार का प्रबंध कर दिया है.

खुश होकर देवताओं ने विदा ली लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह व्यवस्था उनके लिए समस्या का हल करने से ज्यादा कष्टकारी होने वाली है.  वास्तव में ब्राह्मण जो हवन अग्नि में डालते, अग्नि उसे जला नहीं पाते. कारण, नारायण के संकल्प के साथ डाले गए हविष को जलाने की शक्ति अग्नि में नहीं थी. अब बिना जला हुआ अंश देवताओं तक पहुंच नहीं पाता था.

इसलिए देवों ने फिर से नारायण की स्तुति आरंभ की. भगवान प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा.

देवों ने कहा- यज्ञ आहुतियां आपका संकल्प लेने के बाद अग्नि में डाली जाती है. इसलिए अग्निदेव यज्ञ आहुतियों को भस्म नहीं कर पाते.  इस कारण हमें फिर से निराहार  रहना पड़ रहा है. आप अग्नि को भस्म करने की शक्ति प्रदान करें ताकि हवन सामग्री का आहार हमें मिले.

भगवान श्रीकृष्ण ने देवताओं से कहा कि वे उनके साथ देवी भगवती का स्मरण करें.  समस्त चरा-चर के लिए वह पोषण प्रदान करती हैं.  नारायण के साथ-साथ देवताओं द्वारा आह्वान पर भगवती प्रकट हुईं. उन्होंने देवताओं की परेशानी समझी. नारायण ने उनसे कुछ पोषक शक्ति मांगी और फिर उससे एक देवी की उत्पत्ति हुई. भगवती की वह अंश देवी स्वाहा कहलाईं.

नारायण ने ब्रह्माजी से कहा- भगवती के अंश से उत्पन्न स्वाहा अग्नि की भस्म शक्ति बनकर देवों के लिए दिए गए हवन को भस्म करेंगी. इस तरह उन्हें आहार प्राप्त होगा.

ऐसा वरदान देकर नारायणअंतर्ध्यान हो गए.

ब्रह्माजी ने स्वाहा को वरदान दिया- हे अग्ऩि की भस्मशक्ति स्वाहा मनुष्य तुम्हारा नाम लेकर जो हवन करेंगे वह देवों को स्वीकार होगा. देव उसे मना नहीं कर सकते. जितने यज्ञ आदि कर्म होंगे देवता उतने ही शक्तिशाली होंगे.

ब्रह्मा ने फिर स्वाहा से कहा कि आप अग्निदेव और देवताओं के बीच माध्यम हैं. अतः आप अग्निदेव को अपने पति के रूप में वरण करके कृतार्थ करें. स्वाहा ने कहा कि आपका यह प्रस्ताव आने से पहले ही मैं नारायण को पतिरूप में पाने की कामना कर चुकी हूं. इसलिए यह अनुचित होगा. ब्रह्मदेव आप तो मुझे नारायण की अर्धांगिनी बनने का मार्ग सुझाएं.

ब्रह्माजी ने उन्हे तप का परामर्श दिया. वे श्रीहरि को पतिरूप में पाने के लिए तप करने लगीं.

श्रीहरि प्रसन्न हुए और स्वाहा को कहा- किसी कल्प में वराह अवतार के समय तुम राजा नग्नजित की कन्या नाग्नजिती के रूप में जन्म लोगी. तब मेरी पत्नी बनने का अवसर मिलेगा. अभी तुम अग्नि की पत्नी बनो.

श्रीहरि की आज्ञा से स्वाहा अग्निदेव की पत्नी बनीं. ऋषि-मुनियों द्वारा किए जाने वाले हवन को भस्मकर वह देवताओं को आहार देती हैं.  इसीलिए हवन करते समय देवता का आह्वान करने और उनका अंश तय करने के बाद मंत्र के अंत में स्वाहा का उच्चारण भी किया जाता है.

देवताओं को भोजन का माध्यम तो स्वाहा बनीं पर पितृ देवों का क्या? पितृ देवताओं की भूख शांत करने के लिए भी स्वधा की उत्पत्ति करनी पड़ी थी. वह कथा भी बड़ी रोचक है.

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