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लू का प्रकोप क्यों बढ़ता जा रहा है? - श्रीनारद मीडिया

लू का प्रकोप क्यों बढ़ता जा रहा है?

लू का प्रकोप क्यों बढ़ता जा रहा है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि देश के बड़े हिस्से में कम-से-कम अगले पांच दिनों तक लू की स्थिति रह सकती है. अनुमान के अनुसार, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, विदर्भ, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और गुजरात के विभिन्न क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होंगे. बुधवार को दिल्ली में अधिकतम तापमान 44.2 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाने के बाद ‘पीली चेतावनी’ जारी कर दी गयी है. मौसम विभाग ने यह भी बताया है कि 29 अप्रैल को देश के उत्तरी भाग में धूल भरी आंधी चलने से गर्मी से राहत मिल सकती है.

उल्लेखनीय है कि देश के उत्तर-पश्चिम में मार्च का महीना 122 वर्षों में सर्वाधिक गर्म रहा था. वैश्विक स्तर पर देखें, तो जनवरी और फरवरी के महीने धरती के सबसे अधिक गर्म महीनों में रहे हैं. वैज्ञानिकों ने पहले ही यह भविष्यवाणी कर दी है कि 2022 का वर्ष दुनिया के पांच सबसे अधिक गर्म वर्षों में शामिल हो सकता है. वर्ष 2021 सातवां सबसे गर्म साल रहा था. उनका कहना है कि यह वर्ष निश्चित रूप से दस सबसे गर्म वर्षों में होगा. ऐसे में हमारे देश के उत्तर, पश्चिम और पूर्व में बेहद गर्मी और लू का प्रकोप होना ही है. आंधी या हल्की बारिश से कुछ क्षेत्रों में बीच-बीच में कुछ राहत भले मिले, पर अभी मई और जून के महीने बाकी हैं, जब आम तौर पर बहुत ज्यादा गर्मी पड़ती है.

यदि मानसून आने में कुछ देरी होती है, तो गर्मी के मौसम की अवधि बढ़ भी सकती है. धरती के तापमान में लगातार बढ़ोतरी और इसके कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन से सबसे प्रभावित देशों में भारत भी है. समूची दुनिया के हाल के कुछ वर्ष सर्वाधिक गर्म रहे हैं. इस वजह से भारत समेत कई देशों में बाढ़, सूखे, लू और शीतलहर जैसी आपदाओं की आवृत्ति बढ़ती जा रही है. बेमौसम की बरसात या अचानक अत्यधिक बारिश की कई घटनाएं हम पिछले साल देख चुके हैं. देश के अनेक हिस्सों में मानसून भी अव्यवस्थित होता जा रहा है.

जाड़े में कुछ दिन जहां शीतलहर का कहर बरपा होता है, वहीं उस मौसम का औसत तापमान बढ़ता जा रहा है. इसी तरह गर्मी की अवधि भी बढ़ती जा रही है. समुद्री तूफान भी अक्सर आने लगे हैं और समुद्र का जलस्तर भी बढ़ रहा है. इन स्थितियों से जान-माल के नुकसान के साथ जंगलों एवं कृषि पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. बीते कुछ साल से जलाशयों में कम पानी होने तथा भूजल के स्तर के नीचे जाने से गर्मियों में जल संकट भी गहरा होने लगा है. ऐसे में हमें अभी से ही समुचित तैयारी कर लेनी चाहिए.

सामान्य मानसून का अनुमान बड़े राहत की खबर है, पर उसके समय पर आने के बारे निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता है. लू से बचाव के साथ पानी के ठीक बंदोबस्त पर भी ध्यान रहना चाहिए. चूंकि मौसम का बदलाव सच के तौर पर हमारे सामने आ चुका है, तो हमें उसी हिसाब से जीने की आदत भी डाल लेनी चाहिए और धरती के तापमान को भी रोकने की कोशिश करनी चाहिए.

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