भारत में मानवाधिकार की कार्यप्रणाली चर्चा में क्यों है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत की राष्ट्रपति ने मानवाधिकारों पर सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration on Human Rights- UDHR) की ऐतिहासिक 75वीं वर्षगाँठ मनाते हुए नई दिल्ली में मानवाधिकारों पर एशिया प्रशांत फोरम (Asia Pacific Forum on Human Rights) की वार्षिक आम बैठक और द्विवार्षिक सम्मेलन का शुभारंभ किया।

मानवाधिकारों पर राष्ट्रपति का दृष्टिकोण क्या था?

  • मानवाधिकारों और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को संतुलित करना: राष्ट्रपति ने पर्यावरण की रक्षा करते हुए मानवाधिकारों के मुद्दों को संबोधित करने पर ज़ोर दिया।
  • मानव जनित पर्यावरणीय क्षति पर चिंता: राष्ट्रपति ने प्रकृति पर मानवीय कार्यों के विनाशकारी प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की।
  • मानवाधिकारों की रक्षा का नैतिक दायित्व: उन्होंने मानवाधिकारों की रक्षा के लिये कानूनी ढाँचे से अलग अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के नैतिक कर्तव्य पर प्रकाश डाला।
  • लैंगिक न्याय के प्रति भारत की प्रतिबद्धता: उन्होंने दोहराया कि भारतीय संविधान ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया है, जिससे लैंगिक न्याय और गरिमा के संरक्षण को बढ़ावा मिला है।
  • विश्व की सर्वोत्तम प्रथाओं के प्रति ग्रहणशीलता: उन्होंने कहा कि भारत मानवाधिकारों में सुधार के लिये वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीख लेने के लिये तैयार है।
  • मातृ प्रकृति का पोषण: उन्होंने मानवाधिकार के मुद्दों को अलग-थलग न करने और आहत मातृ प्रकृति की सुरक्षा को समान रूप से प्राथमिकता देने का आग्रह किया।

मानवाधिकारों पर एशिया प्रशांत मंच:

  • पृष्ठभूमि और मिशन:
    • स्थापना वर्ष-1996।
    • यह संपूर्ण एशिया प्रशांत क्षेत्र में राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों (NHRI) को एकजुट करता है।
    • इसका उद्देश्य संबद्ध क्षेत्र में प्रमुख मानवाधिकार चुनौतियों का समाधान करना है।
  • सदस्यता और विकास:
    • APF में 17 पूर्ण सदस्य और आठ सहयोगी सदस्य हैं।
    • पूर्ण सदस्य के रूप में भर्ती होने के लिये एक राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थान को पेरिस सिद्धांतों में निर्धारित न्यूनतम अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पूरी तरह से पालन करना होगा।
    • राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाएँ जो आंशिक रूप से पेरिस सिद्धांतों का अनुपालन करती हैं, उन्हें सहयोगी सदस्यता प्रदान की जाती है।
  • लक्ष्य:
    • एशिया प्रशांत क्षेत्र में स्वतंत्र NHRI की स्थापना को बढ़ावा देना।
    • सदस्य NHRI को उनके प्रभावी कार्य में सहायता करना।
  • कार्य और सेवाएँ:
    • कार्यक्रमों और सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला प्रदान करता है।
    • क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मुद्दों पर सदस्यों की सामूहिक आवाज़ का प्रतिनिधित्व करना।
    • विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों, सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी बनाना।
    • यह OHCHRUNDPUN महिला और UNFPA जैसे संगठनों के साथ सहयोग करता है।

मानवाधिकार की महत्ता:

  • व्यक्तिगत गरिमा की सुरक्षा: यह प्रत्येक मनुष्य की अंतर्निहित गरिमा एवं मूल्यों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है।
  • सामाजिक न्याय और समानता: यह हाशिये पर मौजूद और कमज़ोर आबादी के अधिकारों की रक्षा करके सामाजिक न्याय एवं समानता को बढ़ावा देता है।
  • कानून का शासन: यह जवाबदेही और न्याय के लिये एक ढाँचा स्थापित करके कानून के शासन को बढ़ावा देता है।
  • शांति और स्थिरता: यह शिकायतों तथा संघर्षों को संबोधित करके राष्ट्रों के भीतर और उनके बीच शांति एवं स्थिरता में योगदान देता है।
  • विकास और समृद्धि: यह आर्थिक और सामाजिक विकास को सुगम बनाता है, जिससे जीवन स्तर में सुधार होता है।
  • वैश्विक सहयोग: वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के हनन को संबोधित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और कूटनीति को बढ़ावा देता है।
  • अत्याचारों को रोकना: यह मानवाधिकारों के हनन और अत्याचारों के निवारक के रूप में कार्य करता है।
  • सार्वभौमिक मूल्य के रूप में मानवीय गरिमा: यह सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक सीमाओं से परे एक सार्वभौमिक मूल्य के रूप में मानवीय गरिमा को बनाये रखता है।
  • व्यक्तिगत सशक्तीकरण: व्यक्तियों को अपने अधिकारों का दावा करने और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भाग लेने के लिये सशक्त बनाता है।
  • जवाबदेही और न्याय: मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिये सरकारों और संस्थानों को ज़िम्मेदार ठहराता है तथा पीड़ितों के लिये न्याय उपलब्ध करने के लिये प्रयासरत है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

परिचय:

    • यह व्यक्तियों के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और सम्मान से संबंधित अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
    • भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकार और भारतीय न्यायालयों द्वारा लागू किये जाने योग्य अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध का समर्थन करता है।
  • स्थापना:
    • इसे मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा के लिये मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993 के तहत 12 अक्‍तूबर, 1993 को पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप स्थापित किया गया।
  • भूमिका और कार्य:
    • यह न्यायिक कार्यवाही के साथ सिविल न्यायालय की शक्तियाँ रखता है।
    • इसे मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच हेतु केंद्र या राज्य सरकार के अधिकारियों या जाँच एजेंसियों की सेवाओं का उपयोग करने का अधिकार है।
    • यह घटित होने के एक वर्ष के अंदर मामलों की जाँच कर सकता है।
    • इसका कार्य मुख्यतः अनुशंसात्मक प्रकृति का होता है।
  • सीमाएँ:

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