बांग्ला को शास्त्रीय भाषा तथा गंगासागर मेले को राष्ट्रीय मेले का दर्जा देने की मांग क्यों की जा रही है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
श्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने दो अलग-अलग मुद्दों पर अपनी मांग रखी, पहला बांग्ला के लिये शास्त्रीय भाषा का दर्जा, जो विश्व की 7वीं सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और गंगासागर मेले को राष्ट्रीय मेले का दर्जा।
गंगासागर मेला क्या है?
- परिचय:
- गंगासागर मेला, जो मकर संक्रांति (जनवरी के मध्य) के दौरान लगता है, कुंभ मेले के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ मेला है।
- यह वार्षिक तीर्थ मेला लाखों लोगों को गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर स्थित सागर द्वीप की ओर आकर्षित करता है एवं प्रसिद्ध राजा भागीरथ द्वारा गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का स्मरण कराता है।
- मेले को राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त होने के लाभ:
- पश्चिम बंगाल सरकार गंगासागर मेले को राष्ट्रीय दर्ज़ा देने की मांग कर रही है, जिससे केंद्रीय वित्त पोषण और बुनियादी अवसंरचना के विकास में वृद्धि होगी, जिससे पश्चिम बंगाल में पर्यटन एवं आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
- भारत में अन्य प्रमुख मेले:
- कुंभ मेला: यह हर 12 वर्ष में चार बार मनाया जाता है, यह प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में चार पवित्र नदियों पर चार तीर्थस्थलों के बीच आयोजित किया जाता है है।
- अर्द्ध कुंभ मेला हर छठे वर्ष केवल दो स्थानों, हरिद्वार और प्रयागराज में आयोजित किया जाता है।
- और प्रति 144 वर्ष बाद एक महाकुंभ का आयोजन होता है।
- पुष्कर मेला: पुष्कर मेला राजस्थान के पुष्कर शहर में आयोजित होने वाला वार्षिक पाँच दिवसीय ऊँट और पशुधन मेला है।
- यह विश्व के सबसे बड़े पशु मेलों में से एक है।
- हेमिस गोम्पा मेला: भारत के सबसे उत्तरी कोने में, लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान में 300 वर्ष पुराना वार्षिक मेला मनाया जाता है जिसे हेमिस गोम्पा मेले के नाम से जाना जाता है।
- हेमिस मठ द्वारा गुरु पद्मसंभव की जयंती पर मेले का आयोजन किया जाता है।
- कुंभ मेला: यह हर 12 वर्ष में चार बार मनाया जाता है, यह प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में चार पवित्र नदियों पर चार तीर्थस्थलों के बीच आयोजित किया जाता है है।
नोट: गंगासागर मेले को हाल ही में समुद्र के बढ़ते स्तर और सागर द्वीप पर कपिल मुनि मंदिर के पास समुद्र तट के कटाव के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। कटाव का मुकाबला करने के लिये ड्रेजिंग और टेट्रापॉड के बावजूद स्थिति अनिश्चित बनी हुई है।
शास्त्रीय भाषाएँ क्या हैं?
- परिचय:
- 2004 में भारत सरकार ने “शास्त्रीय भाषाएँ” नामक भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लिया।
- 2006 में इसने शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान करने के लिये मानदंड निर्धारित किये। अब तक 6 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है।
क्रमांक | भाषा | घोषित वर्ष |
1. | तमिल | 2004 |
2. | संस्कृत | 2005 |
3. | तेलुगु | 2008 |
4. | कन्नड़ | 2008 |
5. | मलयालम | 2013 |
6. | ओडिया | 2014 |
- मापदंड:
- प्रारंभिक साहित्य एवं लिखित इतिहास अत्यंत पुराना है, जिसका इतिहास 1,500-2,000 वर्ष पुराना है।
- प्राचीन पुस्तकों या पांडुलिपियों के भंडार का स्वामित्व जिन्हें पीढ़ियों से विशेषरूप से सांस्कृतिक विरासत के रूप में महत्त्व दिया गया है।
- एक ऐसी मूल साहित्यिक परंपरा की उपस्थिति जो किसी अन्य भाषण समुदाय से नहीं ली गई है।
- शास्त्रीय भाषा एवं साहित्य आधुनिक से भिन्न होने के कारण, शास्त्रीय भाषा और उसके बाद के रूपों या उसकी शाखाओं के बीच एक विसंगति भी हो सकती है।
- लाभ:
- एक बार जब किसी भाषा को शास्त्रीय घोषित कर दिया जाता है, तो उसे उस भाषा के अध्ययन के लिये उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने हेतु वित्तीय सहायता प्राप्त होती है साथ ही प्रतिष्ठित विद्वानों के लिये दो प्रमुख पुरस्कारों के लिये मार्ग भी खुल जाते है।
- इसके अतिरिक्त, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अनुरोध किया जा सकता है कि कम से कम केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शास्त्रीय भाषाओं के प्रतिष्ठित विद्वानों के लिये एक निश्चित संख्या में पेशेवर सीटें निर्धारित की जाएँ।
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