Breaking

मीडिया के प्रभावी स्व-नियमन की आवश्यकता क्यों है?

मीडिया के प्रभावी स्व-नियमन की आवश्यकता क्यों है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने नैतिक आचरण और ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के लिये टेलीविज़न चैनलों द्वारा अपनाए गए स्व-नियामक तंत्र को मज़बूत करने के महत्त्व पर बल दिया है।

  • न्यायालय न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA) द्वारा स्व-नियमन की प्रभावशीलता के विरुद्ध बॉम्बे उच्च न्यायलय द्वारा की गई टिप्पणियों को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रहा था।
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मीडिया ट्रायल की आलोचना के साथ ही स्पष्ट किया कि मौजूदा स्व-नियामक तंत्र में वैधानिक तंत्र के चरित्र का अभाव है।

नोट: NBDA [पूर्व में न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) के नाम से जाना जाता था] निजी टेलीविज़न समाचार, समसामयिक मामलों तथा डिजिटल प्रसारकों का प्रतिनिधित्व करता है। यह भारत में समाचार, समसामयिक मामलों एवं डिजिटल प्रसारकों की सामूहिक आवाज़ है।

  •  वर्तमान में 27 प्रमुख समाचार और समसामयिक मामलों के प्रसारक (125 समाचार और समसामयिक मामलों के चैनल) NBDA के सदस्य हैं। NBDA इस बढ़ते उद्योग को प्रभावित करने वाले मामलों पर सरकार के समक्ष एक एकीकृत और विश्वसनीय आवाज़ है।

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • विनियमन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में संतुलन:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने मीडिया सामग्री में नैतिक मानकों को बनाए रखते हुए सरकार द्वारा पूर्व-सेंसरशिप या पोस्ट-सेंसरशिप से बचने के महत्त्व को स्वीकार किया।
    • न्यायालय ने मीडिया आउटलेट्स द्वारा स्व-नियमन के विचार की सराहना की लेकिन इस बात पर ज़ोर दिया कि अनैतिक आचरण को रोकने के लिये ऐसे तंत्र अधिक प्रभावी होने चाहिये।
  • नियामक ढाँचे को मज़बूत करने के लिये नोटिस जारी:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने नियामक ढाँचे में वृद्धि के लिये NBDA और अन्य संबंधित पक्षों को एक नोटिस जारी किया।
    • न्यायालय ने इस बात की जाँच करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया कि क्या स्व-नियामक तंत्र स्थापित करने के लिये उठाए गए मौजूदा कदमों को अधिकार क्षेत्र और उल्लंघन के अंतिम परिणामों दोनों के संदर्भ में मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • मीडिया व्यवहार को लेकर चिंताएँ:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने एक अभिनेता की मौत के बाद मीडिया कवरेज के कारण भड़के उन्माद पर प्रकाश डाला, जहाँ अपराध या निर्दोषता का अनुमान चल रही जाँच को प्रभावित कर सकता है।
    • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मीडिया की भूमिका सार्वजनिक राय को आकार देने के बजाय दोषी साबित होने तक निर्दोषता की धारणा को बनाए रखने की होनी चाहिये।
  • ज़ुर्माना और दिशा-निर्देश बढ़ाने का प्रस्ताव:
    • न्यायालय ने उल्लंघनों के लिये लगाए गए मौजूदा 1 लाख रुपए के ज़ुर्माने की पर्याप्तता पर सवाल उठाया, सुझाव दिया कि ज़ुर्माना पूरे शो से होने वाले मुनाफे के अनुपात में होना चाहिये।
    • मुख्य न्यायाधीश ने प्रतिभूति विनियमन में अभ्यास के समान “अस्वीकरण” का विचार उठाया, जहाँ उल्लंघनकर्त्ता गलत तरीके से अर्जित लाभ लौटाते हैं।

भारत में मीडिया का विनियमन:

  • पारंपरिक मीडिया:
    • पारंपरिक मीडिया के अंतर्गत समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, टीवी, रेडियो आदि शामिल हैं। पारंपरिक मीडिया के आचरण को विनियमित करने के लिये सरकार ने विभिन्न कानूनों के तहत विभिन्न वैधानिक निकायों की स्थापना की है।
      • प्रिंट मीडिया को मुख्य रूप से दो प्रमुख अधिनियमों के माध्यम से विनियमित किया जाता है; प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867, जो भारत में मुद्रित पुस्तकों तथा समाचार पत्रों की प्रत्येक प्रति के पंजीकरण, विनियमन एवं संरक्षण का प्रावधान करता है, व दूसरा, प्रेस परिषद अधिनियम, 1978
      • सिनेमा का विनियमन सिनेमैटोग्राफिक अधिनियम, 1952 के माध्यम से किया जाता है। यह अधिनियम सिनेमैटोग्राफिक फिल्मों के प्रमाणीकरण, फिल्मों के प्रदर्शन तथा उन प्रदर्शन को विनियमित करने के लिये केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड नामक एक नियामक निकाय की भी स्थापना का प्रावधान करता है।
      • भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997 के माध्यम से दूरसंचार क्षेत्र को विनियमित किया जाता है। इस अधिनियम के तहत भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण विवादों को नियंत्रित करता है, निर्णय देता है, अपीलों का निपटान करता है तथा सेवा प्रदाताओं एवं उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करता है।
  • डिजिटल मीडिया:
    • डिजिटल मीडिया में मोटे तौर पर वेबसाइट, ब्लॉग, यूट्यूब जैसे वीडियो प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया साइटें शामिल हैं। चूँकि ये प्लेटफाॅर्म दो अथवा दो से अधिक लोगों के बीच संचार के माध्यम के रूप में कार्य करते हैं, इसलिये इन्हें शासी कानून के तहत “मध्यस्थों” के रूप में जाना जाता है।
    • इन्हें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के प्रावधानों और धारा 69 के तहत बनाए गए नियमों के तहत विनियमित किया जाता है, जिन्हें सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता), नियम 2021 (अब आईटी नियम, 2021) कहा जाता है।

निष्कर्ष:

Leave a Reply

error: Content is protected !!