मराठा साम्राज्य की विरासत को संरक्षित करने की क्यों आवश्यकता है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
सिंधुदुर्ग ज़िले के मालवण में राजकोट किले में अनावरण की गई छत्रपति शिवाजी महाराज की 35 फुट ऊँची प्रतिमा एक वर्ष से भी कम समय में ढह गई।
- इसके विपरीत, शिवाजी महाराज का सिंधुदुर्ग किला, जो 357 साल पहले बना था, आज भी मज़बूत है और सूरत हमलों जैसे सैन्य अभियानों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा है। सूरत पर आक्रमण से लूटे गए धन में से अधिकांश का प्रयोग सिंधुदुर्ग किले के निर्माण में किया गया था।
सिंधुदुर्ग किले के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- निर्माण: किले का निर्माण 25 नवंबर, 1664 को शुरू तथा 29 मार्च, 1667 को पूर्ण हुआ।
- यह किला अरब सागर में कुर्ते द्वीप पर शिवाजी महाराज और एक विशेषज्ञ ( हिरोजी इंदुलकर) द्वारा गहन परीक्षण के बाद बनाया गया था।
- निर्माण लागत: किले के निर्माण में एक करोड़ होन्स (hons) की लागत का अनुमान है । होन्स एक सोने का सिक्का था जिसका इस्तेमाल 17 वीं शताब्दी में शिवाजी महाराज के शासनकाल के दौरान मुद्रा के रूप में किया जाता था।
- समुद्री प्रभुत्व: शिवाजी महाराज का दृष्टिकोण एक शक्तिशाली नौसेना के माध्यम से समुद्री नियंत्रण स्थापित करना और आर्थिक स्थिरता को बढ़ाना था।
- इस किले की स्थिति समुद्री पहुँच पर प्रभुत्व रखने तथा सिद्दी, पुर्तगाली और अन्य औपनिवेशिक विदेशी शक्तियों से संरक्षण हेतु रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण थी।
- वास्तुकला उत्कृष्टता: किले का निर्माण 45 सीढ़ियों और चार किलोमीटर लंबी सर्पिलाकार दीवार के साथ किया गया था। यह दस मीटर ऊँचा था। यहाँ बंदूकें तथा गार्ड क्वार्टर जैसी सुविधाएँ भी शामिल थी।
- इसके प्रवेश द्वार पर हनुमान की दक्षिणमुखी प्रतिमा थी तथा अतिरिक्त सुरक्षा हेतु पद्मगढ़, सरजेकोट और राजकोट जैसे छोटे किले भी थे।
- वर्तमान स्थिति: सिंधुदुर्ग किला शिवाजी महाराज की सैन्य और सामरिक शक्ति का एक अभेद्य प्रतीक बना हुआ है। यह मराठा नौसैनिक शक्ति एवं किलेबंदी तकनीकों का एक ऐतिहासिक प्रमाण है।
शिवाजी द्वारा किये गए सूरत पर आक्रमण:
- सूरत का सामरिक महत्त्व: सूरत को ‘पूर्व का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र और मुगल साम्राज्य का सबसे समृद्ध रत्न’ के रूप में जाना जाता था।
- सूरत रणनीतिक रूप से ताप्ती नदी के दक्षिणी तट पर अवस्थित था।
- यह यूरोपीय, ईरानी और अरबों के साथ-साथ मुगल व्यापार का प्रमुख केंद्र था और साथ ही मक्का जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिये एक पारगमन मार्ग भी था (मक्का का प्रवेश द्वार)।
- सूरत को निशाना बनाना मुगल अर्थव्यवस्था को बाधित करने और मराठा प्रभुत्व स्थापित करने की एक रणनीतिक चाल थी।
- सूरत पर पहला आक्रमण (जनवरी 1664): शिवाजी महाराज ने जनवरी 1664 में सूरत पर आक्रमण कर मुगल सेना को चौंका दिया।
- सूरत के गवर्नर इनायत खान ने भी शरण ग्रहण कर ली, जिससे शहर रक्षाहीन हो गया।
- सूरत का युद्ध( सूरत की लूट) में नकदी, सोना, चाँदी, मोती और बढ़िया कपड़ों सहित अनुमानित एक करोड़ रुपए की संपत्ति प्राप्त हुई।
- लूटी गई धनराशि से सिंधुदुर्ग किले का निर्माण किया गया तथा मराठा नौसेना का विस्तार किया गया।
- प्रभाव: सूरत में शिवाजी महाराज की गतिविधियों ने अंग्रेज़ों को चिंतित कर दिया और उन्होंने अपना गोदाम सूरत से बॉम्बे स्थानांतरित कर दिया। मई 1664 तक पुर्तगालियों ने बॉम्बे को अंग्रेज़ों को उपहार में दे दिया था तथा शिवाजी महाराज के महान कार्य व्यापक रूप से प्रसिद्ध हो गए थे।
- सूरत पर दूसरा आक्रमण (अक्तूबर 1670): वर्ष 1670 में शिवाजी महाराज ने सूरत पर दूसरा आक्रमण किया , जिसमें लगभग 6.6 मिलियन रुपए की संपत्ति लूटी गई।
- डच और अंग्रेज़ व्यापारियों को नुकसान नहीं पहुचाया गया क्योंकि शिवाजी महाराज का प्राथमिक लक्ष्य मुगल ही थे।
- लूट में लगभग पाँच मिलियन रुपए मूल्य के रत्न, सोना और सिक्के शामिल थे।
- सूरत पर दूसरा आक्रमण (अक्तूबर 1670): वर्ष 1670 में शिवाजी महाराज ने सूरत पर दूसरा आक्रमण किया , जिसमें लगभग 6.6 मिलियन रुपए की संपत्ति लूटी गई।
- सूरत आक्रमण का रणनीतिक महत्त्व: आक्रमण/छापों का उद्देश्य मुगल आर्थिक स्थिरता को बाधित करना और मराठा शक्ति का प्रदर्शन करना था। शिवाजी महाराज की सावधानीपूर्वक योजना और रणनीतिक क्रियान्वयन , नागरिकों को पहुँचाने में उनके संयम, सभी का उद्देश्य मुगल नियंत्रण के प्रभाव को कम करना था।
शिवाजी महाराज के संदर्भ में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- जन्म: उनका जन्म 19 फरवरी, 1630 को वर्तमान महाराष्ट्र राज्य के पुणे ज़िले के शिवनेरी किले में हुआ था।
- प्रारंभिक जीवन: किशोरावस्था में ही उन्होंने बीजापुर के अधीन तोरणा किले पर सफलतापूर्वक नियंत्रण प्राप्त कर लिया था। उन्होंने बीजापुर के आदिल शाह से कोंडाना किला भी हासिल कर लिया था।
- मृत्यु: छत्रपति शिवाजी की मृत्यु 3 अप्रैल, 1680 को रायगढ़ में तीन सप्ताह तक बुखार रहने के बाद हुई।
महत्त्वपूर्ण लड़ाइयाँ:
युद्ध | पार्टियाँ |
प्रतापगढ़ का युद्ध, वर्ष 1659 | छत्रपति शिवाजी महाराज के नेतृत्व वाली मराठा सेना और आदिलशाही सेनापति अफजल खान के बीच। |
सूरत की लड़ाई, वर्ष 1664 | छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल गवर्नर इनायत खान के बीच । |
पुरंदर का युद्ध, वर्ष 1665 | छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल सेनापति जय सिंह के बीच । |
संगमनेर की लड़ाई, वर्ष 1679 | मुगल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य के बीच यह आखिरी लड़ाई थी जिसमें मराठा राजा शिवाजी ने लड़ाई लड़ी थी। |
- शीर्षक: 6 जून, 1674 को रायगढ़ में उन्हें मराठों के राजा के रूप में ताज पहनाया गया।
- उसने छत्रपति, शककर्त्ता, क्षत्रिय कुलवंत तथा हैण्डव धर्मोधारक की उपाधियाँ धारण कीं।
- प्रशासन:
- केंद्रीय प्रशासन: राजा राज्य का सर्वोच्च प्रमुख होता था, जिसकी सहायता के लिये आठ मंत्रियों का एक समूह होता था, जिन्हें ‘अष्टप्रधान’ कहा जाता था ।
- राजस्व प्रशासन: चौथ और सरदेशमुखी आय के महत्त्वपूर्ण स्रोत थे।
- चौथ: यह राजस्व मांग का 1/4 हिस्सा था जो शिवाजी की सेनाओं द्वारा गैर-मराठा क्षेत्रों पर आक्रमण के विरुद्ध सुरक्षा के रूप में मराठों को दिया जाता था।
- सरदेशमुखी: यह उन भूमियों पर 10% का अतिरिक्त कर था जिन पर मराठों ने वंशानुगत अधिकार का दावा किया था।
शिवाजी के बाद मराठों की यात्रा क्या थी?
- शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद अशांति: शिवाजी की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र संभाजी सिंहासन पर बैठे, लेकिन वर्ष 1689 में मुगलों द्वारा पकड़े जाने और मार दिये जाने के कारण उनका शासनकाल अल्पकालिक रहा।
- संभाजी की मृत्यु के बाद, साम्राज्य का नेतृत्व शिवाजी के छोटे भाई छत्रपति राजाराम महाराज ने किया।
- पेशवा के अधीन मराठाओं का उत्थान: वर्ष 1713 में बालाजी विश्वनाथ की पेशवा के रूप में नियुक्ति एक महत्त्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुई। उनकी कूटनीति और सुधारों ने मराठा विस्तार एवं एकीकरण की नींव रखी।
- बाजी राव प्रथम (वर्ष 1720-1740) ने मराठा नियंत्रण को उत्तरी भारत में विस्तारित किया और उनकी रणनीतिक दूरदर्शिता तथा सैन्य कौशल ने मराठा प्रभुत्व को सुदृढ़ किया।
- मराठा संघ: 18 वीं शताब्दी के प्रारंभ तक आंतरिक कलह और बाह्य दबावों के कारण मराठा साम्राज्य की केंद्रीय शक्ति कमज़ोर हो गई थी।
- यह संघ एक केंद्रीकृत राज्य नहीं था, बल्कि विभिन्न मराठा राज्यों और नेताओं का गठबंधन था, जिसमें पुणे के पेशवा, इंदौर के होल्कर, बड़ौदा के गायकवाड़ एवं ग्वालियर के सिंधिया शामिल थे ।
- मराठाओं का अंग्रेज़ों से संघर्ष:
- प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (वर्ष 1775-1782): यह युद्ध वर्ष 1782 में सालबाई की संधि के साथ समाप्त हुआ, जिसके परिणामस्वरूप साल्सेट द्वीप अंग्रेज़ों को सौंप दिया गया और सूरत तथा भड़ौच के मराठा बंदरगाहों को ब्रिटिश व्यापार के लिये खोल दिया गया।
- द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (वर्ष 1803-1805): आर्थर वेलेस्ली के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने सिंधिया और भोंसले की संयुक्त सेनाओं को पराजित किया तथा उन्हें सहायक गठबंधन स्वीकार करने के लिये मजबूर किया गया ।
- तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (वर्ष 1817-1818): यह मराठों की अंतिम हार थी , इस युद्ध के परिणामस्वरूप मराठा साम्राज्य का विघटन हो गया।
प्रतिमा को लेकर चल रही बहस ऐतिहासिक व्यक्तित्व के सम्मान और संरक्षण की आवश्यकता पर ज़ोर देती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि आधुनिक श्रद्धांजलि ऐतिहासिक उपलब्धियों की सच्ची विरासत को प्रतिबिंबित करती है। समकालीन प्रशासन और परियोजना प्रबंधन की तीव्र सार्वजनिक आलोचना से ऐतिहासिक शख्सियतों के बेहतर संरक्षण एवं सांस्कृतिक धरोहर स्थलों के रूप में उनके मूल्य को सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी।
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