भोज में भोजन की बर्बादी रोकने की क्यों जरूरत है?
विश्व का हर सातवां व्यत्तिफ़ भूखा सोता है।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आजकल विवाह, तिलक, रिसेप्शन या अन्य आयोजनों में भोजन का बहुत बड़ा मेन्यू होता जा रहा है। कहीं-कहीं तो यह आइटम इतना अधिक होता है कि लोग सबका स्वाद भी नहीं चख पाते। वास्तव में इन आयोजनों में भोजन के लम्बे मेन्यू एक स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। भव्य और अद्वितीय दिखाने की चाहत में ‘ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत’ में भी संकोच नहीं है। पर इसका परिणाम पैसा और भोजन की बर्बादी के रूप में सामने आ रहा है।
एक ओर आज जहां देश की बड़ी आबादी दोनों समय पौष्टिक भोजन को मोहताज है, वहीं इन आयोजनों में भोजन की बर्बादी सर्वत्र देखने को मिल रहा है। सभी आदरणीयों से मेरी प्रार्थना है कि अपने पत्तल में उतना ही भोजन लें,जिसे आप पूरी तरह खा लें। बचे हुए भोजन की सुव्यवस्था के लिए कई शहरों में कुछ समाजसेवी सामने आ रहे हैं जो उस भोजन को गरीब-बेसहारा लोगों तक पहुँचाते हैं। यदि आपकी नजर में ऐसा कोई संगठन हो तो जरूर कमेंट में उल्लेख करें। भोजन की बर्बादी को हमें रोकना ही होगा।
भोजन की बर्बादी को लेकर चिंताजनक आँकड़े
- भोजन की बर्बादी से न केवल सरकार बल्कि सामाजिक संगठन भी चिंतित हैं। दुनियाभर में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है, उसका एक-तिहाई (लगभग 1 अरब 30 करोड़ टन) अन्न बर्बाद हो जाता है।
- विश्व खाद्य कार्यक्रम की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व का हर सातवां व्यत्तिफ़ भूऽा सोता है। अगर खाद्य की बर्बादी को रोका जा सके तो कई लोगों का पेट भरा जा सकता है।
- विश्व भूख सूचकांक (ळभ्प्) 2018 के अनुसार, भारत 119 देशों की सूची में 103वें स्थान पर पहुँच गया है।
- भारत की वर्तमान स्थिति चीन, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे कई पड़ोसी देशों से भी खराब हो चुकी है।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 के बाद से ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग में लगातार गिरावट आई है। वर्ष 2014 में भारत जहां 55वें पायदान पर था, तो वहीं 2015 में 80वें, 2016 में 97वें और 2017 में 100वें पायदान पर आ गया था। यह आंकड़े भी विचारणीय हैं कि हमारे देश में हर साल उतना गेहूँ बर्बाद होता है, जितना ऑस्ट्रेलिया की कुल पैदावार है।
- नष्ट हुए गेहूँ की कीमत लगभग 50 हजार करोड़ रुपये होती है और इससे 30 करोड़ लोगों को सालभर भरपेट खाना दिया जा सकता है।
- देश में 2.1 करोड़ टन अनाज केवल इसलिए बर्बाद हो जाता है, क्योंकि उसे रखने के लिए हमारे पास पर्याप्त भंडारण की सुविधा नहीं है।
- वहीं देश में उत्पादित कुल फल और सब्जी का एक बड़ा हिस्सा (40 प्रतिशत) परिवहन के उचित साधनों की कमी के कारण समय पर मंडी तक नहीं पहुँच पाता है।
- भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल 23 मिलियन टन दाल, 12 मिलियन टन फल और 21 मिलियन टन सब्जियाँ वितरण प्रणाली में खामियों के कारण खराब हो जाती हैं।
- विदित हो कि औसतन हर भारतीय एक साल में छह से ग्यारह किलो अन्न बर्बाद करता है। जितना अन्न हम एक साल में बर्बाद करते हैं, उसकी कीमत से ही कई सौ कोल्ड स्टोरेज बनाए जा सकते हैं जिससे फल-सब्जी को सड़ने से बचाया जा सके।
भोजन की बर्बादी का कारण
- भारत में बढ़ती समृद्धि के साथ लोग भोजन के प्रति असंवेदनशील होते जा रहे हैं। खर्च करने की बढ़ती क्षमता के साथ ही लोगों में भोजन फेंकने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
- आज कई मध्यवर्गीय परिवारों में भोजन पर व्यर्थ व्यय करने का चलन बढ़ा है नतीजतन उनका बजट बढ़ा है।
- समाज में दिखावेपन के कारण शादियों, त्योहारों या महोत्सवों में भोजन की बर्बादी सामान्य बात हो गई है।
- आम तौर पर दो प्रकार के अपशिष्ट होते हैं पहला जो लोग प्लेट में बिना खाए भोजन छोड़ते हैं और दूसरा जब उम्मीद से कम व्यक्ति पार्टी/भोज में खाने के लिए आते हैं।
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