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सेवाओं में लेटरल एंट्री को लेकर क्यों मचा है बवाल? - श्रीनारद मीडिया

सेवाओं में लेटरल एंट्री को लेकर क्यों मचा है बवाल?

सेवाओं में लेटरल एंट्री को लेकर क्यों मचा है बवाल?

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क्या है लेटरल एंट्री?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

संघ लोक सेवा आयोग की सेवाओं में लेटरल एंट्री को लेकर आजकल सियासत गरम है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। जिस मुद्दे को लेकर विपक्ष हंगामा मचा रहा है.दरअसल, लेटरल एंट्री चर्चा में इसलिए है, क्योंकि हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने लेटरल एंट्री के माध्यम से 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की भर्ती के लिए एक अधिसूचना जारी की। इसे लेकर नरेंद्र मोदी सरकार विपक्ष के निशाने पर है। विपक्ष का कहना है कि लेटरल एंट्री ने ओबीसी, एससी और एसटी के आरक्षण अधिकारों को कमजोर कर दिया है।

संप्रग काल में आई पहली बार अवधारणा

लेटरल एंट्री का मतलब निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सीधी भर्ती से है। इसके माध्यम से केंद्र सरकार के मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों के पदों की भर्ती की जाती है। यह अवधारणा सबसे पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौरान पेश की गई थी। 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में बने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने इसका समर्थन किया था।

एआरसी को भारतीय प्रशासनिक प्रणाली को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और नागरिक-अनुकूल बनाने के लिए सुधारों की सिफारिश करने का काम सौंपा गया था।

एआरसी ने ये दिए थे तर्क

  • कुछ सरकारी भूमिकाओं के लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है जो पारंपरिक सिविल सेवाओं के भीतर हमेशा उपलब्ध नहीं होता है। इसलिए विषय विशेषज्ञों को शामिल करना जरूरी है।
  • इससे विशेषज्ञों का एक पूल तैयार होगा। ये विषय विशेषज्ञ अर्थशास्त्र, वित्त, प्रौद्योगिकी और सार्वजनिक नीति जैसे क्षेत्रों में नए दृष्टिकोण और विशेषज्ञता लाएंगे।
  • लेटरल एंट्री को मौजूदा सिविल सेवाओं में इस तरह से एकीकृत किया जाए कि सिविल सेवा की अखंडता और लोकाचार को बनाए रखते हुए उनके विशेषज्ञ कौशल का लाभ उठाया जा सके।

मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली प्रशासनिक सुधार आयोग ने तैयार किया था आधार

1966 में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता वाले पहले प्रशासनिक सुधार आयोग ने इसका आधार तैयार किया था। हालांकि आयोग ने लेटरल एंट्री की कोई वकालत नहीं की थी। बाद में मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद लेटरल एंट्री के जरिये भरा जाने लगा। नियमों के अनुसार, इसके लिए 45 वर्ष से कम आयु होनी चाहिए और वह अनिवार्य रूप से एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री हो। इसी तर्ज पर कई अन्य विशेषज्ञों को सरकार के सचिवों के रूप में नियुक्त किया जाता है।

मोदी सरकार के दौरान लेटरल एंट्री की औपचारिक शुरुआत

लेटरल एंट्री योजना औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में शुरू हुई। 2018 में सरकार ने संयुक्त सचिवों और निदेशकों जैसे वरिष्ठ पदों के लिए विशेषज्ञों के आवेदन मांगे थे। यह पहली बार था कि निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों के पेशेवरों को इसमें मौका दिया गया।

‘लेटरल एंट्री’ की अवधारणा पहली बार कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू की गई थी

‘लेटरल एंट्री’ की अवधारणा पहली बार कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दौरान शुरू की गई थी और 2005 में वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में स्थापित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने इसका जोरदार समर्थन किया था. आरंभ में लेटरल एंट्री के जरिए केवल मुख्य आर्थिक सलाहकार जैसे पद पर नियुक्ति की गई.

लेटरल एंट्री से कैसे होती है नियुक्ति

लेटरल एंट्री के जरिए प्राइवेट सेक्टर के लोगों की सीधी नियुक्ति सरकारी पदों पर होती है. सरकार संयुक्त सचिव और निदेशक/उप सचिव जैसे पदों पर प्राइवेट सेक्टर के लोगों को कॉन्ट्रैक्ट के तहत काम करने का मौका देती है.

3 साल के लिए होगी नियुक्ति, 17 सितंबर तक किया जाएगा आवेदन

विभिन्न मंत्रालयों, विभागों में रिक्तियों को अनुबंध के आधार पर तीन साल की अवधि के लिए (प्रदर्शन के आधार पर पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है) भरा जाना है. इसके लिए यूपीएससी की वेबसाइट के माध्यम से 17 सितंबर तक आवेदन किए जा सकते हैं. गृह, वित्त और इस्पात मंत्रालयों में संयुक्त सचिवों के 10 पद हैं. कृषि एवं किसान कल्याण, नागर विमानन और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालयों में निदेशक/उप सचिव स्तर के 35 पद भरे जाएंगे.

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