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सभ्यता को तलवार और संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश क्यों होती रही? - श्रीनारद मीडिया

सभ्यता को तलवार और संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश क्यों होती रही?

सभ्यता को तलवार और संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश क्यों होती रही?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

12ज्योतिलिंगों में से एक काशी विश्वनाथ शिव और पार्वती का आदिस्थान माना जाता है। महाभारत और उपनिशेदों में भी इसके कोटेशन मिलते हैं। 13 दिसंबर 2021 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का उद्धाटन किया है। करीब 250 साल पहले इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी विश्वनाथ धाम का पुर्निमाण करवाया था। रानी अहिल्याबाई के योगदान का शिलापट और उनकी एक मूर्ति भी काशी विश्वनाथ धाम के परिसर में लगाई जाएगी।

सदियों से काशी विश्वनाथ मंदिर हिन्दुओं की आस्था का केंद्र रहा है। स्कंदपुराण के काशी खंड में बहुत विस्तार से मंदिर के बारे में बताया गया है। इसकी वंदना की गई है। आज जिस तरह का मंदिर दिखता है 351 साल पहले मंदिर वैसा नहीं था। मंदिर का नक्शा कुछ और था लेकिन मुगल बादशाह औरंगजेब ने सबकुछ तबाह कर दिया। औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़ा और महारानी अहिल्या बाई ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।

इतिहास में जब भी काशी विश्वनाथ का जिक्र किया जाएगा तो उसकी धार्मिक, सांस्कृतिक धरोहर लौटाने के लिए महारानी अहिल्याबाई होल्कर से लेकर नरेंद्र मोदी को हमेशा याद किया जाएगा। आइए जानते हैं इस मंदिर का इतिहास और औरंगजेब से लेकर अंग्रेजों तक के बाबा के भक्तों से मुकाबले की कहानी।

मोहम्मद गोरी ने की शुरुआत

कहा जाता है कि 11वीं सदी के अंत में विश्वनाथ मंदिर को मोहम्मद गोरी ने लूटा और तुड़वाया था। गोरी के विध्वंस के बाद मंदिर को दोबारा बनवाया गया और 1211 में ये काम गुजरात के एक व्यापारी द्वरा करवाया गया। लेकिन सन 1447 में जौनपुर के सुल्तान द्वारा तोड़वा दिया गया। फिर राजा मान सिंह ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निमाण शुरु किया। लेकिन उन्हें ये काम बीच में रोकना पड़ा।

1585 में राजा टोडरमल ने  मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। राजा टोडरमल ने इसकी जिम्मेदारी पंडित नारायण भट्ट को सौंपी। भव्य मंदिर बनवाया गया। इस बात पर ज्यादातर इतिहासकार राजी भी है। राजा टोडरल मल के अकबर के दरबार में इतनी मजबूत स्थिति थी कि उन्हें मंदिर के निर्माण की अनुमति लेने की जरूरत भी नहीं थी।

औरंगजेब ने गद्दी पर बैठते ही काशी विश्वनाथ की ओर किया कूच

औरंगजेब को काशी विश्वनाथ की गंगा जमुनी तहजीब बिल्कुल भी रास नहीं आई। जैसे ही उसने राजगद्दी संभाली वैसे ही सबसे पहले काशी की ओऱ रूख किया। काशी विश्वनाथ मंदिर के हिन्दू पक्षकारों के मुताबिक आज से 1 हजार साल पहले काशी विश्वनाथ मंदिर के परिसर में कोई मस्जिद नहीं थी। मंदिर चतुष्टकोणीय था, चार मुख्य दीवारें थी। मुख्य गर्भ गृह था जहां विशाल शिवलिंग था। लेकिन मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1669 में यानी आज से करीब 351 साल पहले मंदिर के बीचो बीच एक घेरा बनाकर अंदर की बहुत बड़ी और विशाल जगह को एक मस्जिद घोषित कर दी।

औरंगजेब का फरमान

18 अप्रैल को औरंगजेब ने पूरे देश में फैले अपने सभी सूबेदारों को खास फरमान जारी किया। सभी सूबेदार अपनी इच्छा से हिन्दुओं के सभी मंदिरों और पाठशालाओं को गिरा दें। मूर्ति पूजा को पूरी तरह से बंद करवा दें। इस आदेश के बाद 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को खबर दी गई कि काशी के प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर को गिरा दिया गया है।

औरंगजेब द्वारा काशी विश्वनाथ के विध्वंस को लेकर इतिहासकारों में मतभेद नहीं है। औरंगजेब की सबसे प्रमाणिक जीवनी मासिर ए आलमगीरी में भी इस घटना का जिक्र किया गया है। इस बात को इतिहासिक तौर पर भी माना जाता है कि मंदिर तोड़कर ज्ञानव्यापी मस्जिद का निर्माण हुआ और औरंगजेब ने ही मंदिर तोड़ने के आदेश दिए थे। औरंगजेब के जीवन पर लिखी गई सबसे प्रमाणिक किताब मासिर ए आलमगीरी जिसे साकी मुस्ताद खान ने लिखा है। जो मुगलों के दरबारी इतिहासकार थे।

साथ में वो मुगल शासक के वक्त फतवे-फरमान और दस्तावेजों के भी गवाह थे। इस किताब में औरंगजेब के द्वरा काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने की घटना का पूरा जिक्र मौजूद है।

मासिर ए आलमगीरी के अनुसार…

1669 में सभी सूबेदारों को हिन्दुओं के सभी मंदिरों और पाठशालाओं को तोड़ने का हुक्म दिया गया था। इसके लिए पृथक विभाग को भी खोला गया था। मासिर ए आलमगीरी के अनुसार 15वीं रबी उल आखिर को बादशाह को ये सूचित किया गया कि आज्ञा का पालन करते हुए मुगल अधिकारियों ने काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया। ये वो वक्त था जब मथुरा का केशव देव मंदिर, पाटन का सोमनाथ मंदिर और सभी बड़े मंदिर खासतौर से उत्तर भारत के मंदिर तोड़े गए।

1707 को औरंगजेब की मौत हुई लेकिन काशी विश्वनाथ के मंदिर का फिर से निर्माण न हो पाए। ये उस वक्त के इस्लामिक शासकों ने ठान रखी थी। साल 1742 में मराठा राजा मल्हार राव होल्कर ने मंदिर का निर्माण कराना चाहा। लेकिन अवध के नवाब ने मंदिर का निर्माण नहीं करने दिया। साल 1750 में जयपुर के राजा इश्वरी सिंह ने पुर्न र्निमाण की कोशिश की लेकिन ये काम पूरा नहीं हो सका। काशी विश्वनाथ मंदिर से सिर्फ आस्था नहीं जुड़ी है।

बल्कि ये हमारे इतिहास का सबसे अहम अध्याय है। औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को 1669 में तोड़ा था। मंदिर को खंडित करते हुए एक सदी बीत चुकी थी। लेकिन काशी और शिवभक्तों ने हार नहीं मानी थी। आखिरकार साल 1778 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने आज के काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।।

अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ बाबा के भक्तों ने बोला हल्ला

1778 से विश्वनाथ मंदिर में फिर से पूजा होने लगी। वक्त का पहिया घूमा और देश में अंग्रेज आए। साल 1830 में मणिकर्निका घाट के भरत मेला की तस्वीरें ईस्ट इंडिया कंपनी के जेम्स पिम्पशन ने बनाई थी। जो काशी और भारत की तस्वीरों से बहुत प्रभावित हुए थे। अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ भी बाबा विश्वनाथ के भक्तों ने हल्ला बोला था। 16 अगस्त 1781 को काशी को लूटने आए और सजा देने के लिए अंग्रेज अफसर वारिंग हेस्टिंग्स का अहंकार चकनाचूर कर दिया गया था। काशी की जनता ने लगातार चार दिन तक लगातार अंग्रेजों से युद्ध किया था। जिसमें सैकड़ों अंग्रेजों की मौत हुई। इस जंग ने अंग्रेजों की सोच को बदल दिया था।

250 साल पुराना मंदिर होने के सबूत

विवादित स्थल के भूतल में तहखाना और मस्जिद के गुम्बद के पीछे प्राचीन मंदिर की दीवार का दावा किया जाता है। ज्ञानवापी मस्जिद के बाहर विशालकाय नंदी हैं, जिसका मुख मस्जिद की ओर है। इसके अलावा मस्जिद की दीवारों पर नक्काशियों से देवी देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं। स्कंद पुराण में भी इन बातों का वर्णन है।

काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचकर महात्मा गांधी को क्यों हुई पीड़ा?

अब तक हिन्दू मंदिर तोड़ने का सिलसिला तो रूक चुका था, लेकिन अंग्रेजों से आजादी की जंग शुरू हो चुकी थी। इन सबके बीच काशी विश्वनाथ मंदिर पर ध्यान नहीं गया जिसका जिक्र खुद महात्मा गांधी ने अपनी आटो बायोग्राफी में किया था। 1916 में मैं काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने गया। वहां पहुंचकर मुझे बहुत पीड़ा हुई। तंग और फिसलन भरी गलियों के बीच से होते हुए जाना पड़ा। वहां पर शांति बिल्कुल नहीं थी। मक्खियों का झुंड और दुकानदारों, तीर्थयात्रियों का शोर पूरी तरह से असहनीय था। जहां किसी को ध्यान और एकता के माहौल की उम्मीद थी। वहां पर ऐसा बिल्कुल नहीं था।

बहरहाल, सभ्यता को तलवार के बल पर बदलने की कोशिश हुई, संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश हुई। काशी का इतिहास मिटाने की हर बार कोशिश हुई। लेकिन हर बार कोई न कोई योद्धा भारतीय इतिहास को बचाने के लिए खड़ा हुआ। हिन्दुस्तान ने दुनिया को बताया कि तोड़ने से ज्यादा शक्तिशाली जोड़ने वाला होता है।

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