ये विशाल भूमिगत किला, क्यों माना जाता है अभिशप्त?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत में बड़े और ऐतिहासिक किले हैं। सभी की अपनी विशेषता है। इनके बीच देश का संभवत पहला भूमिगत किला रोहतास में शेरगढ़ है। हालांकि, अफगान शासक शेरशाह का यह किला उपेक्षित है। इस एतिहासिक इमारत को सहेजने की जरूरत है। शेरगढ़ के नाम से विख्यात यह किला संरक्षण के अभाव में अस्तित्व की जंग हारने की कगार पर है।
जिन भूमिगत कमरों के लिये यह किला मध्यकालीन इतिहास लेखकों के लिए कौतुहल का केंद्र रहा, इसे इतिहासकारों ने जी भरकर सराहा, उन कमरों की दशा खराब है। उग आए पेड़ व झाड़-झंखाड़ के कारण दिन-प्रतिदिन उनका क्षरण होता जा रहा है। सदियों से उपेक्षा का दंश झेल रहे इस भूमिगत किले को चार वर्ष पूर्व राज्य सरकार ने संरक्षित करने की बात कही थी, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस पहल आगे नहीं बढ़ी है।
शेरगढ़ किला का अर्द्धचंद्राकार शीर्ष।
पर्यटन की यहां है भरपूर संभावनाएं
सासाराम से 42 किमी दक्षिण-पश्चिम व चेनारी से लगभग 12 किमी दक्षिण में लगभग 800 फीट ऊंची कैमूर पर्वत शृंखला की एक पहाड़ी पर शेरगढ़ का किला स्थित है। लगभग छह वर्ग मील क्षेत्रफल में फैले शेरगढ़ किला को दुर्गावती नदी दक्षिण व पश्चिम से आलिंगन करते हुए बहती है। इसके नीचे ही दुर्गावती जलाशय परियोजना का विशाल बांध बन चुका है। यहीं से पौराणिक गुप्ता धाम और सीताकुंड जाने के लिए रास्ता भी है। पर्यटन की यहां भरपूर संभावनाएं हैं। फिर भी इस महत्वपूर्ण धरोहर के रखरखाव का जिम्मा न तो केंद्र सरकार के पुरातत्व विभाग के पास है, न ही राज्य सरकार के पास।
(कैमूर की पहाड़ी पर जंगलों से ढंकी किले की दीवार।)
तारीख ए शेरशाही में भी है इसका उल्लेख
रोहतास के इतिहासकार डा. श्याम सुन्दर तिवारी हैं कि बताते हैं कि वर्तमान शेरगढ़ का नाम पहले भुरकुड़ा का किला था। इसका उल्लेख मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकों तारीख-ए-शेरशाही और तबकात-ए-अकबरी में मिलता है। खरवार राजाओं ने अपने किले को रोहतासगढ़ की ही तरह अति प्राचीन काल में बनवाया था। लेकिन इस किले पर 1529-30 ई. में शेर खां (शेरशाह) ने कब्जा कर लिया। फ्रांसिस बुकानन के अनुसार यहां भारी नरसंहार हुआ था। इसी कारण यह किला अभिशप्त और परित्यक्त हो गया। लेकिन एक सवाल अब भी यहां उठ रहा है कि क्या स्वतंत्र भारत में भी इसका अभिशाप खत्म नहीं होगा? क्या किसी हुक्काम की नजरें अब भी इनायत नहीं होंगी?
(शेरगढ़ किला की बाहर से तस्वीर।)
ध्वस्त होने के कगार पर पहुंच गया है किला
फ्रांसिस बुकानन 13 जनवरी 1813 को यहां आए थे। उन्होंने चर्चा की है कि इस किले के सिंह द्वार के ऊपर आठ बुर्ज थे, उनमें से आज मात्र पांच बुर्ज ही बचे हैं। सिंहद्वार से दक्षिण की ओर रास्ता मुख्य भवन की ओर जाता है। उबड़-खाबड़ रास्ता अब जंगल व कंटीली झाड़ियों से भरा पड़ा है। सिंहद्वार से लगभग एक किमी दूर दक्षिण में दूसरी पहाड़ी है, जिसके रास्ते में ही एक तालाब बना हुआ है।
यह रानी पोखरा के नाम से जाना जाता है। दूसरी पहाड़ी भी प्राचीर से घिरी है। इसके अंदर मुख्य महल है। प्राचीर के दरवाजे तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हैं। दरवाजा अब गिरने की स्थिति में है। प्राचीर के भीतर दरवाजी के दोनों ओर दो खुले दालान हैं। कुछ दूर जाने पर भूमिगत गोलाकार कुआं है। भूमिगत कुएं से पूरब में चार मेहराब बनाते खंभों पर टिका चौकोर तहखाना है। इस तहखाने से पश्चिम-उत्तर में एक विशाल महल के ध्वंसावशेष बिखरे पड़े हैं।
(ध्वस्त हो रहा रानी महल का हिस्सा।)
राज्य विरासत समिति के तत्कालीन निदेशक के आने का था कार्यक्रम
ऐतिहासिक स्थलों की स्थिति से परिचित होने के लिए राज्य विरासत समिति व काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान के तत्कालीन निदेशक डा. विजय कुमार चौधरी ने फरवरी 1918 फरवरी में जिले का दौरा करने कार्यक्रम बनाया था, लेकिन किसी कारण से वे नहीं आ पाए। जिले के शोध अन्वेषक डा. श्याम सुंदर तिवारी के अनुसार डा. चौधरी जिले में चित्रित शैलचित्रों व शेरगढ़ समेत अन्य ऐतिहासिक स्थलों का जायजा लेने वाले थे, जिससे इनके उद्धार की उम्मीद जग गई थी।
(किले का एक हिस्सा।)
शिक्षा विभाग ने जगाई है उम्मीद
बौद्ध व सूफी सर्किट से सासाराम के जुड़ने के बाद पर्यटन के दृष्टिकोण से जिले की महत्ता बढ़ गई है। अब शेरगढ़ के किला का भी दीदार बड़ी संख्या में छात्र व युवा कर पाएंगे क्योंकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सिफारिश व केंद्र के पर्यटन मंत्रालय से अनुमति मिलने के बाद शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी की गई सौ पर्यटन स्थलों की सूची में रोहतास जिला को भी शामिल किया है।
देश के विभिन्न हिस्सों के कालेजों व विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थी जिले के ऐतिहासिक व पर्यटन स्थलों का सैर कर उसके इतिहास व महत्व को जानेंगे। इस पर यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों को अमल करने का भी निर्देश दे चुका है। यहां आने वाले विद्यार्थी स्थलों के इतिहास, वैज्ञानिक योगदान व परंपराओं से अवगत होंगे, जिसे वे अबतक किताबों में पढ़ते रहे हैं।
इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, वहीं नई पीढ़ी को जिले की समृद्ध विरासत, संस्कृति, विविधता, ज्ञान व भाषा से जुड़ने का अवसर प्राप्त होगा। कारण कि शेरशाह मकबरा से लेकर शेरगढ़ किला तक पर्यटन की दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसे में एक बार फिर इस अनुपम कलाकृति के संरक्षण की उम्मीद जग गई है।
जिला प्रशासन ने शुरू की थी पहल
जिला प्रशासन ने किले के संरक्षण को लेकर अपनी अनुशंसा पुरातत्व विभाग को भेजी थी, जिसे विभाग ने अपनी सहमति प्रदान कर दी थी। कहा गया था कि जल्द ही इसके लिए अधिसूचना भी जारी होगी। कैमूर पहाड़ी के उपर स्थित इस भूमिगत किले में दरबार ए हाल से नाच घर तक आज भी ठीक स्थिति में है। लगभग छह वर्ग मील क्षेत्रफल में स्थित इस किले में शेरशाह ने इसे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मान यहां सैन्य छावनी भी बनाया था। इस किले को पहचान मिलने से न केवल यहां पर्यटक आकर्षित होंगे, बल्कि रोजगार के लिए भी नए दरवाजे खुलेंगे।
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