विश्व बाघ दिवस क्यों मनाया जाता है?

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पिछली शताब्‍दी में इनकी आबादी 1 लाख से घटकर हुई 3900

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देश में घटती बाघों की संख्‍या सरकार के लिए चिंता विषय है। पर्यावरण के लिए भी ये खतरे की घंटी है। अभयारण्यों के आसपास रहने वाले कुत्ते संक्रामक बीमारी फैला रहे हैं। ऐसे में कई सख्‍त कदम उठाने की आवश्‍यकता है। साथ ही मौजूदा नियमों का भी सख्‍ती से पालन कराना होगा। तभी भविष्‍य में हम बाघ दिवस मना पाएंगे।

हर साल 29 जुलाई को बाघों के पारिस्थितिकीय महत्व को बताने की दृष्टि से विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर शिखर सम्मेलन में हुई थी। यह चिंतनीय है कि मानवों ने बाघों के साथ क्रूरता बरतने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। लोकसभा में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अश्विनी चौबे ने बताया है कि बीते तीन साल यानी 2019 से लेकर 2021 के बीच देश में 329 बाघों की मौत हुई। इनमें से 68 तो स्वाभाविक मौत मरे, लेकिन पांच बाघों की मौत अस्वाभाविक पाई गई। 29 बाघों को शिकारियों ने निशाना बनाया, जबकि 30 बाघ लोगों पर हमले में मारे गए। 197 बाघों की मौत के सही कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है और उसकी जांच चल रही है।

अकेले भारत में दुनिया के 60 प्रतिशत बाघ पाए जाते हैं, लेकिन यहां भी बाघों की संख्या में बीते वर्षों में गिरावट आई है। एक सदी पहले भारत में कुल एक लाख बाघ हुआ करते थे। यह संख्या आज घटकर महज 1,500 रह गई है। ये बाघ अब भारत के दो फीसद हिस्से में रह रहे हैं। निरंतर बढ़ती आबादी और तीव्र गति से होते शहरीकरण की वजह से दिनोंदिन जंगलों का स्थान कंक्रीट के मकान लेते जा रहे हैं। जंगल कटने के कारण बाघों के रहने के निवास में कमी आ रही है जिससे उनकी संख्या घटती जा रही है।

बाघों के साम्राज्य में डिजिटल कैमरे की घुसपैठ और पर्यटन की खुली छूट के कारण तस्कर आसानी से बाघों तक पहुंच रहे हैं और तस्करी की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं। बाघों को खतरनाक बीमारियों से भी खतरा बढ़ रहा है। अभयारण्यों के आसपास रहने वाले कुत्ते संक्रामक बीमारी फैला रहे हैं, जो बाघों के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। इसके अलावा करंट लगने, वन्य जीव-मानव संघर्ष, रेल-रोड एक्सीडेंट के कारण भी बाघों को अपनी गंवानी पड़ रही है।

वैसे तो वन्य जीव संरक्षण कानून के तहत राष्ट्रीय पशु बाघ को मारने पर सात साल की सजा का प्रविधान है, लेकिन लचर स्थिति के कारण विरले लोगों को ही सजा हो पाती है। लिहाजा अब जंगल टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए और उसे पुलिस के समकक्ष अधिकार दिए जाने चाहिए। वन्य जीवों एवं जंगल से जुड़े मामलों के निपटारे के लिए विशेष टिब्यूनल की स्थापना और सूखे एवं किसी भी आपदा जैसे कि आग वगैरह पर तुरंत और प्रभावी कार्रवाई के लिए आपदा प्रबंधन टीमों का गठन होना चाहिए।

वन विभाग को बेहतर आधुनिक साजो-सामान और अधिक अधिकार दिए जाएं जिससे वे शिकारियों एवं तस्करों का मुकाबला कर पाएं। कानून का पालन और खुफिया तंत्र को विकसित किए जाने की भी जरूरत है। साथ ही लोगों को भी जागरूक करना पड़ेगा, ताकि वे वनों और उसमें रहने वाले जीवों के प्रति संवेदनशील रहें।

यूं तो ये दिन दुनिया के कई देशों में खत्‍म हो चुके बाघों को बचाने और इनके प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए मनाया जाता है, लेकिन एक कड़वी हकीकत ये भी है कि हमारी ही वजह से इनकी संख्‍या लगातार गिरती जा रही है। पिछले शताब्‍दी में ही विश्‍व में बाघों की संख्‍या 1 लाखा से घटकर 3900 तक आ गई है। यही रहा तो एक समय ऐसा भी आएगा जब शायद पूरी दुनिया से ही ये खत्‍म हो जाएंगे।

मौजूदा समय में जिन गिने-चुने देशों में बाघ अभी बाकी हैं, उनमें भारत सबसे ऊपर आता है। यहां पर 2226 बाघ हैं। इसके बाद रूस का नंबर आता है जहां पर 433 बाघ हैं। इसके बाद का इंडोनेशिया जहां 371, मलेशिया में 250, नेपाल में 198, थाईलैंड में 189, बांग्‍लादेश में 106, भूटान में 103 चीन में 7, वियतनाम में 5 और लाओस में 2 बाघ ही जिंदा हैं।

भारत में 2 हजार से अधिक बाघ इसलिए हैं क्‍योंकि देश में इन्‍हें बचाने के लिए प्रोजेक्‍ट टाइगर चलाया हुआ है। दुनिया में बाघों की आबादी को देखते हुए इसमें कोई शक नहीं है कि भारत का प्रोजेक्‍ट टाइगर काफी सफलता से आगे बढ़ रहा है। एशिया की ही बात करें तो कभी दक्षिण चीन में भी ये हुआ करते थे, लेकिन 1980 के बाद से ही वहां पर ये दिखाई देना बंद हो गए। सुमात्रा के बाघों का भी दबदबा हुआ करता था। इनकी लंबाई ढाई मीटर तक और वजह करीब 140 किग्रा हुआ करता था।

मलेशिया के बाघों की बात करें तो ये भी सुमात्रा के ही टाइगर्स की तरह हुआ करते थे। इनको इंडोचाइनीज टाइगर भी कहा जाता था। भारत का बंगाल टाइगर आज हमारी ही नहीं बल्कि दुनिया की भी शान है। तीन मीटर से अधिक लंबा ये बाघ 260 किलोग्राम तक वजनी होताहै। इंडोचाइनीज टाइगर की खाल अन्‍य टाइगर्स के मुकाबले काफी गहरे रंग की होती है। इनकी लंबाई 2.9 मीटर तक और वजन 200 किग्रा तक होता है। रूस के साइबेरियन टाइगर्स की लंबाई 3.3 मीटर और वजन 310 किग्रा तक होता है। ये मौजूदा समय में धरती पर पाए जाने वाले टाइगर्स में सबसे बड़े और वजनी होते हैं।

 

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