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भारत में परमाणु ऊर्जा एक आवश्यकता क्यों है? - श्रीनारद मीडिया

भारत में परमाणु ऊर्जा एक आवश्यकता क्यों है?

भारत में परमाणु ऊर्जा एक आवश्यकता क्यों है?

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श्रीनारद  मीडिया सेंट्रल डेस्क

सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय होते जा रहे हैं और परमाणु ईंधन की आपूर्ति देश के वित्त पर लगातार एक बड़ा बोझ बनती जा रही है, प्रश्न उठता है कि क्या परमाणु ऊर्जा अभी भी जीवाश्म-मुक्त भविष्य के लिये प्रासंगिक है, विशेष रूप से भारत में जहाँ सुरक्षा और लागत संबंधी चिंता व्यापक रूप से मौजूद है।

  • हाल ही में जर्मनी ने अपना अंतिम परमाणु संयंत्र बंद कर दिया है और फ्राँस ‘न्यूक्लियर पावरहाउस’ होने के बावजूद अपने पुराने रिएक्टरों को प्रतिस्थापित करने के लिये संघर्ष कर रहा है।
  • परमाणु ऊर्जा एक ओर निम्न कार्बन युक्त, फर्म (firm power) एवं विश्वसनीय स्रोत प्रदान करती है तो दूसरी ओर यह रिएक्टरों की सुरक्षा और परमाणु अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान के संबंध में चुनौतियाँ उत्पन्न करती है। इसके साथ ही, परमाणु ऊर्जा के विकास में परमाणु ईंधन की आपूर्ति एक प्रमुख बाधा है।

विश्व स्तर पर परमाणु ऊर्जा की वर्तमान स्थिति

  • यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में परमाणु ऊर्जा एक पुनर्जागरण के दौर से गुज़र रही है, जहाँ यूरोप के कई देशों और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने ऊर्जा मिश्रण में परमाणु ऊर्जा का अंश बढ़ाना शुरू कर दिया है।
    • दक्षिण कोरिया के नए राष्ट्रपति ने देश की ऊर्जा नीति में बदलाव किया है और वर्ष 2030 तक देश के ऊर्जा मिश्रण में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी को 30% तक बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है।
    • जापान, जिसे फुकुशिमा की दुर्घटना के बाद अपने रिएक्टरों को पूरी तरह से बंद कर देना था, कोयले और प्राकृतिक गैस से विविधता लाने के लिये रिएक्टरों को फिर से शुरू कर रहा है। वर्तमान में जापान में 10 परमाणु रिएक्टरों ने पुनः संचालन शुरू कर दिया है जबकि 17 अन्य इस प्रक्रिया में हैं।
    • यू.के. ने कहा है कि परमाणु ऊर्जा की वृद्धि किये बिना बिजली क्षेत्र को ‘डीकार्बोनाइज़’ करना संभव नहीं होगा।
    • चीन पहले से ही परमाणु शक्ति की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

भारत में परमाणु ऊर्जा की स्थिति

  • भारत में परमाणु ऊर्जा बिजली का पाँचवाँ सबसे बड़ा स्रोत है, जो देश के कुल बिजली उत्पादन का लगभग 2% का योगदान देता है।
  • भारत में वर्तमान में देश भर में 7 बिजली संयंत्रों में 22 से अधिक परमाणु रिएक्टर सक्रिय हैं, जो संयुक्त रूप से 6,780 मेगावाट परमाणु ऊर्जा का उत्पादन करते हैं।
    • इन रिएक्टरों में से 18 दाबित भारी जल रिएक्टर (Pressurised Heavy Water Reactors- PHWRs) हैं, जबकि 4 हल्के जल रिएक्टर (Light Water Reactors- LWRs) हैं।
  • जनवरी 2021 में काकरापार परमाणु ऊर्जा परियोजना (KAPP-3)—जो भारत की पहली 700 MWe की इकाई है और PHWR का सबसे बड़ा स्वदेशी रूप से विकसित संस्करण है, को ग्रिड से जोड़ा गया था।
  • भारत सरकार ने भारत के परमाणु कार्यक्रम को बढ़ाने के लिये भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (Nuclear Power Corporation of India Limited- NPCIL) और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) के बीच संयुक्त उद्यम की अनुमति दी है। NPCIL अब नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (NTPC) और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) के साथ संयुक्त उपक्रम को संचालित कर रहा है।
  • सरकार देश के अन्य हिस्सों में परमाणु प्रतिष्ठानों के विस्तार को बढ़ावा दे रही है। उदाहरण के लिये, निकट भविष्य में एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र हरियाणा के गोरखपुर शहर में चालू हो जाएगा।
  • भारत पूरी तरह से स्वदेशी थोरियम-आधारित परमाणु संयंत्र ‘भवनी’ (Bhavni) पर भी कार्य कर रहा है जो यूरेनियम-233 का उपयोग करने वाला अपनी तरह का पहला संयंत्र होगा। उल्लेखनीय है कि कलपक्कम में प्रायोगिक थोरियम संयंत्र ‘कामिनी’ पहले से ही सक्रिय है।

परमाणु ऊर्जा एक आवश्यकता क्यों है?

  • परिचालन के लिये सस्ता:
    • रेडियोधर्मी ईंधन और निपटान के प्रबंधन की लागत के बावजूद परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को संचालित करना कोयले या गैस संयंत्रों की तुलना में सस्ता है। आकलन दिखाते हैं कि परमाणु संयंत्रों की लागत कोयला संयंत्र की मात्र 33-50% और गैस संयुक्त-चक्र संयंत्र की 20-25% है।
  • थोरियम भंडार की उपलब्धता:
    • देश में थोरियम की उपलब्धता परमाणु ऊर्जा को भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिये एक आशाजनक समाधान के रूप में प्रस्तुत करती है। इसे भविष्य का ईंधन माना जाता है और भारत थोरियम संसाधनों में अग्रणी देश है। इससे भारत को जीवाश्म ईंधन मुक्त राष्ट्र बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
  • पेट्रोलियम आयात में कमी:
    • परमाणु ऊर्जा भारत को अपने आयात बिलों को सालाना 100 बिलियन डॉलर तक कम करने में मदद कर सकती है, जो वर्तमान में पेट्रोलियम और कोयले के आयात पर व्यय किया जाता है।
  • ‘फर्म एंड डिस्पैचेबल पावर’:
    • सौर और पवन ऊर्जा (जो मौसम की स्थिति पर निर्भर होते हैं) के विपरीत, परमाणु ऊर्जा ऊर्जा का एक विश्वसनीय, उच्च घनत्व युक्त स्रोत प्रदान करती है जो व्यापक रूप से उपलब्ध है।
    • ‘फर्म/डिस्पैचेबल पावर’ (Firm/dispatchable power) वह बिजली है जिसे आवश्यकता पड़ने पर आपूर्ति हेतु इलेक्ट्रिक ग्रिड को भेजा जा सकता है। इसे आवश्यकतानुसार चालू या बंद किया जा सकता है।
  • ऊर्जा का अधिक स्वच्छ रूप:
    • 90% प्लांट लोड फैक्टर पर परिचालित 1,000 मेगावाट के संयंत्र को एक वर्ष में केवल 25 टन निम्न समृद्ध यूरेनियम ईंधन की आवश्यकता होती है।
      • 0.7% से अधिक लेकिन 20% से कम सांद्रता वाले यूरेनियम-235 को निम्न समृद्ध यूरेनियम (Low Enriched Uranium- LEU) के रूप में परिभाषित किया गया है। अधिकांश परमाणु रिएक्टर LEU का उपयोग करते हैं जो लगभग 3-5% यूरेनियम है।
    • इसकी तुलना में, समान क्षमता वाले एक कोयला संयंत्र को लगभग पाँच मिलियन टन कोयले की आवश्यकता होती है और कोयला राख भी उत्पन्न करता है।

परमाणु ऊर्जा को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की मांग क्यों की जा रही है?

  • परमाणु ईंधन की सोर्सिंग:
    • भारत की परमाणु योजना समृद्ध यूरेनियम (जिसे प्राप्त करना कठिन है और यह वित्त पर बोझ डालता है) की अपनी सीमित आपूर्ति पर कार्य करने पर निर्भर है।
    • यद्यपि भारत में थोरियम के पर्याप्त भंडार हैं, लेकिन हम अभी तक थोरियम आधारित परमाणु संयंत्रों की ओर आगे नहीं बढ़ सके हैं।
  • सुरक्षा संबंधी भय:
    • परमाणु उद्योग ‘निष्क्रिय सुरक्षा’ डिज़ाइन (परमाणु रिएक्टरों के लिये) की ओर बढ़ रहा है और यह परमाणु संयंत्रों के पुराने डिज़ाइनों की तुलना में अधिक सुरक्षित है।
    • उदाहरण के लिये, पुराने डिज़ाइन पर आधारित फुकुशिमा रिएक्टर जापान में आपदा का कारण बना।
  • परमाणु अपशिष्ट:
    • परमाणु ऊर्जा का एक अन्य सह-प्रभाव है इससे उत्पन्न होने वाला परमाणु अपशिष्ट। परमाणु अपशिष्ट का जीवन पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ सकता है, जैसे यह कैंसर के विकास का कारण बन सकता है या जंतुओं एवं पादपों की कई पीढ़ियों के लिये आनुवंशिक समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।
    • तमिलनाडु में कुडनकुलम संयंत्र के लिये भूमि अधिग्रहण और ग्रामीणों के विरोध के कारण व्यापक देरी हुई है।
  • पूंजी गहनता:
    • परमाणु ऊर्जा संयंत्र पूंजी गहन होते हैं और हाल के परमाणु निर्माणों को लागत में बड़ी वृद्धि का सामना करना पड़ा है। इसका एक प्रमुख उदाहरण दक्षिण कैरोलिना (अमेरिका) में वीसी समर न्यूक्लियर प्रोजेक्ट है, जहाँ लागत इतनी तेजी से बढ़ी कि 9 बिलियन डॉलर से अधिक व्यय के बाद परियोजना को स्थगित कर दिया गया।

आगे की राह

  • बाज़ार को मुक्त करना:
    • नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (NTPC) जैसी अन्य सरकारी कंपनियों को अपने दम पर परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति दी जाए ताकि भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) के एकाधिकार को तोड़ा जा सके और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा दिया जा सके।
  • प्रौद्योगिकियों के पोर्टफोलियो पर ध्यान देना:
    • ऊर्जा, विशेष रूप से बिजली, केवल एक प्रौद्योगिकी से संबोधित नहीं हो सकेगी। भारत को परमाणु क्षेत्र के भीतर और बाहर (जैसे सौर ऊर्जा और पनबिजली) आपूर्ति-पक्ष एवं मांग-पक्ष विकल्पों के मिश्रण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • एक सक्षम नीति ढाँचे को प्रोत्साहित करना:
    • परमाणु ऊर्जा विकास के लिये लक्ष्य निर्धारित करने के बजाय, सरकार को ऐसे ढाँचे और समर्थन तंत्र के निर्माण पर ध्यान देना चाहिये जो परमाणु ऊर्जा सहित निम्न कार्बन युक्त, दृढ़ और विश्वसनीय ऊर्जा स्रोतों के विकास को प्रोत्साहित करें।
  • अनुसंधान और विकास में निवेश करना:
    • भारत को उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों—जैसे कि लघु मॉड्यूलर रिएक्टर, दक्षता में सुधार करने, लागत कम करने और सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने और थोरियम भंडार का उपयोग करने के लिये के अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिये।
  • लघु मॉड्यूलर रिएक्टर:
    • लघु मॉड्यूलर रिएक्टर कई लाभ प्रस्तुत करते हैं, जैसे कि लागत और निर्माण समय में कमी। वे अंतर्निहित सुरक्षा का उच्च स्तर भी रखते हैं, क्योंकि वे निष्क्रिय सुरक्षा कारकों (passive safety factors) का उपयोग करते हैं।

निष्कर्ष

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