बकरीद पर सिर्फ़ बेजुबानों की ही कुर्बानी क्यों – शबा खान
श्रीनारद मीडिया / सुनील मिश्रा वाराणसी यूपी
वाराणसी, रामनगर, सूजाबाद, पड़ाव / माना कि बकरीद पर कुर्बानी एक सवाब का काम है अल्लाह ने आजमाने के लिए पैगंबर इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ख़्वाब में बताया कि वह अल्लाह की राह में अपनी जांनशी चीज़ को कुर्बान कर दो। फ़िर सुबह होते ही एक सौ उंटो की कुर्बानी दे दी। दोबारा अगले दिन फ़िर से वो ख़्वाब देखते हैं कि अल्लाह फरमा रहे हैं ऐ इब्राहिम अलैहिस्सलाम तुम अपनी सबसे जांनशी चीज़ मेरी राह में कुर्बान कर दो। फ़िर अगले दिन सुबह वो दो सौ ऊंट की कुर्बानी दे देते हैं। फ़िर तीसरी रात फ़िर गैब से आवाज़ आई ऐ इब्राहिम अलैहिस्सलाम तुम अपने सबसे कीमती प्यारी चीज़ मेरी राह में कुर्बान करो। तब इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने सोचा कि मेरा सबसे कीमती चीज़ हमारा बेटा है जो मेरा जांनशी हैं। वह सोच में पड़ गए कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अल्लाह ये देखना चाह रहा है कि मैं अपने लोग से, अपने रब से ज्यादा मोहब्बत करता हूं या नहीं.? फ़िर आपने फ़ैसला किया आप अपने फरजंद लख्ते जिगर को अल्लाह की राह में कुर्बान करेंगे। जिसके बाद वह अपने बेटे को लेकर फिलिस्तीन से मक्का गए उन्होंने अपने बेटे इस्माइल से अलैहिस्सलाम ने कहा बेटा तुम्हें पता है कि मैं तुम्हें अल्लाह कि राह में कुर्बान करने के लिए ले जा रहा हूं। जिस पर इस्माइल ने बड़े सहज भाव से जवाब दिए कि बाबा इससे बढ़ कर ख़ुशी की बात और क्या होगी कि अल्लाह कि राह में मै कुर्बान हो जाऊंगा। इसके साथ उन्होंने अपने बाबा जान से कहा कि आप मेरे हाथ पांव रस्सी से बांध दिजिए और आप ख़ुद अपनी आंखों पर पट्टी बांध लिजिए ताकी चाकू चलाते वक्त आपको रहम या तरस न आए। बेटे के इतना कहने पर इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने वैसा किया। इस्माइल बेटे की आंखों पर पट्टी बांधे और उसके हाथ पांव रस्सी से बांधे और छुरी उठाई आसमां कि ओर देखते हुए कहा कि ऐ अल्लाह तू एक क्या एक हज़ार इस्माइल भी दे दे तू मुझे तो भी तुझ पर ये कुर्बान है। ये कहते हुए अलैहिस्सलाम अपने बेटे की गर्दन पर छुरी चलाने लगे। तब अल्लाह ने फ़रिश्ते को हुक्म दिया कि जल्दी से एक जानवर लेकर जाओ और इस्माइल की जगह पर रख दो।
अलैहिस्सलाम ने जैसे ही छुरी चलाई तो अल्लाह ने कहा ये हमारे इम्तेहान में पास हो गया। इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने आंखो से पट्टी हटाई तो क्या देखते हैं कि उनका बेटा जांनशी, लख्त ए जिगर सामने खड़ा है और एक दुंबा इस्माइल की जगह कुर्बान हो चुका है। अगर ऐसा नहीं होता तो इंसानों को अपने बेटी और बेटों की कुर्बानी देनी पड़ती। तबसे यह कुर्बानी का सिलसिला बकरीद त्योहार के रूप मनाया जाता है। इसमें कुर्बानी का तीन हिस्सा गरीबों में बांट दिया जाता है। लेकीन इस सबसे इतर शबा खान जी कहती हैं कि कुर्बानी अगर करनी है तो अपने अंदर के अहम, लालच, झूठ, फरेब तथा मक्कारी की कुर्बानी हर इंसान को करनी चाहिए। इसमें ये वर्ग विशेष का भेद नहीं करना चाहिए। लोगों के प्रति अपनी बुरी नियत और नज़र कि कुर्बानी करनी चाहिए। न कि सिर्फ़ बेजुबान जानवरो कि। क्योंकी लालच, झूठ, फरेब, अहम, बुरी नियत और नज़र तथा मक्कारी भी इंसान को भेड़िया बना देती है। जिससे आज के समय में इंसान इंसान के ही लहू का प्यासा हो गया है।