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कांवड़ यात्रा के दौरान ठेलों पर दुकानदारों का नाम लिखे होने चाहिए,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

कांवड़ यात्रा के दौरान ठेलों पर दुकानदारों का नाम लिखे होने चाहिए,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अगस्‍त से सावन महीने की शुरूआत हो रही है। उत्तर प्रदेश सरकार कांवड़ यात्रा के तैयारी में लगी हुई है। वहीं इस मुजफ्फनगर प्रशासन का एक निर्देश पर बवाल मचा हुआ है। इस निर्देश में कहा गया है कि कांवड़ यात्रा के दौरान मार्ग पर पड़ने वाले सभी दुकानदारों को अपनी दुकानों पर मालिक और यहां काम करने वाले लोगों का नाम लिखना अनिवार्य है।

इस निर्देश के खिलाफ एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “हम इसकी निंदा करते हैं क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 17 का उल्लंघन है, जो अस्पृश्यता की बात करता है। इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार अस्पृश्यता को बढ़ावा दे रही है…दूसरी बात, जब से उत्तर प्रदेश सरकार ने आदेश दिया है, मुजफ्फरनगर की सभी दुकानों से मुस्लिम कर्मचारियों को हटा दिया गया है…क्या आप केवल एक समुदाय के लिए काम करेंगे? संविधान कहां है? मैं योगी आदित्यनाथ को चुनौती देता हूं कि अगर उनमें हिम्मत है तो वे लिखित आदेश जारी करें…।”

कांवड़ यात्रा रूट पर अधिकारियों ने एक बार फिर यूपी में योगी सरकार की भद पिटवाने का काम किया है. यूपी में कांवड़ यात्रा से पहले मुजफ्फरनगर जिले में खाने-पीने और फल की दुकानें लगाने वाले दुकानदारों को अपने-अपने नाम लिखकर डिस्प्ले करने के लिए कहा गया है.यही नहीं अपनी दुकानों या होटलों पर काम करने वालों का नाम भी लिखने का आदेश जारी किया गया है. स्थानीय प्रशासन का कहना है कि यह इसलिए किया गया है ताकि कांवड़ियों में किसी प्रकार का कोई कंफ्यूजन न हो. प्रशासन किस तरह के कन्फ्यूजन की बात कर रही है यह बेहतर वही बता सकती है.

पर इतना तो तय है कि उसने उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार को एक बार फिर शर्मिंदा किया है. जिस तरह इस मुद्दे पर राजनीति शुरू हो गई है ऐसा लगता है कि शासन इसी हफ्ते अपने चौथे फैसले को पलटने का आदेश जारी करेगी. इसी हफ्ते सरकार ने शिक्षकों के डिजिटल अटेंडेंस, पंत नगर कॉलोनी को जमींदोज करने और बिजली विभाग के एफआईआर करने के फैसले पर यू टर्न लिया है.

जाहिर है कि मुजफ्फनगर प्रशासन के इस फैसले को लेकर भी सियासी माहौल गर्म किया जा रहा है.सपा प्रमुख अखिलेश यादव, बीएसपी प्रमुख मायावती समेत तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने इसपर आपत्ति जताई है.इससे बड़ी बात क्या हो सकती है कि खुद बीजेपी की सहयोगी जेडीयू भी इस फैसले से सहमत नहीं दिख रही है.जब तक उत्तर प्रदेश सरकार तक ये बात पहुंचेगी तब तक सरकार की किरकिरी इतनी हो चुकी होगी कि डैमेज कंट्रोल मुश्किल हो जाएगा.

1-बवाल को आमंत्रण देना

सावन के महीने में कांवड़ यात्रा वैसे ही बहुत संवेदनशील हो जाता है. छोटी छोटी बातों पर गाड़ियां फूंक दी जाती रही हैं. पर मामला वहीं शांत हो जाता रहा है. पर जब किस तरह के विवाद में यह मालूम होगा सामने वाला दूसरे धर्म का है तो जाहिर है कि बवाल और बढ़ेगा ही. कांवड़ यात्री इसे जानबूझकर किया गया कृत्य समझेंगे. इस प्रकार हिंसा को और बढ़ावा मिलना तय है.

जब एक बार हिंसा कांवड़ यात्री करेंगे तो परिणाम स्वरूप दूसरी तरफ से हिंसा प्रतिक्रिया स्वरूप जरूर होगी. इस तरह एक छोटा सा मामला तिल का ताड़ बन जाएगा.पहले हिंसा होती थी तो यह नहीं पता चलता था कि सामने वाला किस धर्म का है. इसलिए मामला वहीं शांत हो जाता था. अगर दंगे होते हैं तो योगी सरकार की प्रतिष्ठा पर ही आंच आएगी. उत्तर प्रदेश में अपनी सात साल की सरकार में सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में एक भी दंगे नहीं होने दिया है.

2-राजनीतिक रूप से गलत

ऐसे समय में जब प्रदेश के 10 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं इस तरह की घटनाएं भारतीय जनता पार्टी के लिए राजनीतिक रूप से ठीक नहीं हैं. जिन स्थानों पर उपचुनाव होने वाले हैं  उनमें से कई सीटें मुस्लिम बाहुल्य जनसंख्या वाली हैं. बीजेपी की आंतरिक बैठकों में मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट्स खड़े करने की बात हो रही है. क्या ऐसे फैसलों से मुस्लिम समुदाय से पार्टी की दूरी और बढ़ाने वाले नहीं होगी. इस तरह के फैसलों से जरूर कुछ कट्टरवादी हिंदुओं का तुष्टीकरण होता है पर अधिकतर हिंदू इस तरह की कट्टरता के खिलाफ ही होते हैं. नाम डिस्प्ले होने से बहुत से गरीब मुसलमानों की रोजी रोटी खत्म होगी जो बहुत से हिंदुओं को पसंद नहीं आएगी.

3-संविधान की मूल भावना के खिलाफ, कोर्ट रद्द कर देगा ऐसा आदेश

संविधान बचाओ के नारे से परेशान भारतीय जनता पार्टी के लिए यह फैसला भारी पड़ सकता है . भारतीय संविधान देश के नागरिकों में किसी भी प्रकार से भेदभाव करने पर रोक लगाता है. देश में हर किसी को हर तरह का व्यापार करने की छूट प्रदान की गई है. यह फैसला सीधे-सीधे तो किसी को व्यापार करने से नहीं रोक रहा है पर इस फैसले के परिणाम स्वरूप बहुत से दुकानदारों की रोजी रोटी प्रभावित होगी.

जब से रोटी पर थूक लगाते , जूठे फलों को बेचते विशेष समुदाय के दुकानदारों के विडियो वायरल होने लगे हैं बहुत से लोग दूरी बनाने लगे हैं. अनजाने में तो बहुत से मु्स्लिम दुकानदारों से खरीददारी लोग करते रहे हैं. पर जब नाम डिस्प्ले होने लगेगा तो बहुत से लोग उनसे सामान खरीदने से बचना चाहेंगे.अगर इस आदेश को कोर्ट में चैलेंज किया जाता है तो निश्चित ही कोर्ट ऐसे भेदभाव करने वाले आदेश को निरस्त कर देगा. जाहिर है इसमें यूपी सरकार की ही किरकिरी होगी.

4-सामाजिक रूप से भी गलत, बेरोजगार लोग ही आसामाजिक तत्व बनते हैं

जो समाज इस तरह के भेदभाव करता है वह कभी फलता फूलता नहीं है. अगर एक बार इस फैसले का क्रियान्वयन हो जाता है तो जाहिर है कि आगे भी इस प्रकार के फैसले होंगे. अगर देश की एक चौथाई जनसंख्या को बिजनेस करने से रोकने की कोशिश होगी तो देश का विकास कैसे होगा.जो छोटे दुकानदार अपनी लागत नहीं निकाल पाएंगे, वो आगे चलकर आसामाजिक तत्व बनेंगे. जिसे कोई भी समाज झेलने की हैसियत में नहीं हो सकता है.

देश के कुछ हिस्सों में इस प्रकार की मांग पहले भी हुई है पर प्रशासन के लेवल पर कभी भी इस तरह का फैसला नहीं लिया गया . यहां तक कि बीजेपी विधायक खुद ऐसी मांग का विरोध कर चुके हैं. कर्नाटक में एक बार कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों ने विजयपुरा शहर में सिद्धेश्वर मंदिर के बाहर इस तरह की डिमांड का बैनर लगाया गया. इसमें मुस्लिम व्यापारियों को आगामी सिद्धेश्वर यात्रा के दौरान व्यापार करने से रोकने की बात कही गई थी. सिद्धेश्वर मंदिर कमेटी ने इस बैनर को हटाने की कोशिश भी की . बाद में स्थानीय बीजेपी विधायक मंदिर कमेटी के अध्यक्ष बसनगौड़ा पाटिल ने खुद इस तरह की मांग का विरोध किया और मुस्लिम दुकानदारों के हितों की रक्षा की.

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