संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में भारत को लेकर क्यों जताई गई चिंता?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
तापमान में कमी लाने में होगा सहायक
जेल्के ने बताया कि मौजूदा वॉर्मिंग में एसएलसीपी करीब आधा असर डालते हैं और यह तापमान कम करने का सबसे तेज तरीका हैं। अगर एसएलसीपी पर नियंत्रण कर लिया जाए तो हम तापमान में कमी लाने के प्रभाव को तेजी से हासिल कर सकते हैं और दीर्घकालिक अवधि के कॉर्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को धीमा कर सकते हैं।
अत्याधिक गर्मी से खत्म हुईं 3.4 करोड़ नौकरियां
उन्होंने कहा कि सीमा के आरपार प्रभावों को देखते हुए भारत को प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक समन्वित राष्ट्रव्यापी दृष्टिकोण की जरूरत है। इसके साथ ही भारत में सफलतापूर्वक पूरे किए गए एलईडी बल्ब प्रोग्राम की ही तरह एसएलसीपी को खत्म करने की तकनीक अपनाने के लिए वित्तीय प्रणाली लागू करने की जरूरत है। विशेषरूप से घरेलू एयर कंडीशनर में एचएफसी को समय रहते हटाने में भारत की तेजी को लेकर किगाली संशोधन में भारत का समर्थन और इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान सकारात्मक कदम हैं, लेकिन भारत के साथ सही मार्केटिंग की समस्या है।
सामान मौसम वाले राज्यों में एक जैसे उपाय अपनाने की जरूरत
सहायता पाने के लिए भारत को अपनी सफलता को वैश्विक मंच पर ज्यादा दिखाने और चर्चा को प्रभावित करना चाहिए। भारत घरेलू ऑर्गेनिक कचरे को मवेशियों का भोजन बनाने जैसी पहल का इस्तेमाल एसएलसीपी प्रबंधन में नवाचार प्रदर्शित कर वित्तीय सहायता पाने के लिए भी कर सकता है। ओशो ने भारत को वायु क्षेत्र दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी और इसके लिए अलग-अलग राज्यों में अलग समाधान अपनाने की बजाए, एक जैसे मौसम वाले राज्यों में प्रदूषण नियंत्रित करने के एक जैसे उपाय अपनाने के लिए कहा। उन्होंने समझाया कि जैसे दिल्ली के वायु प्रदूषण से निपटने के लिए केवल शहर के भीतर उपाय अपनाने से कुछ नहीं होगा, क्योंकि हरियाणा के सोनीपत और पानीपत जैसे औद्योगिक शहरों के प्रदूषण राजधानी को प्रदूषण की चादर में समेट लेते हैं।
वित्तीय मदद में देरी बनेगी खतरा
जलवायु वित्तीय मदद पर एक स्वतंत्र उच्चस्तरीय समूह द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट के अनुसार गर्म होती पृथ्वी का तापमान कम करने के लिए कॉप-29 में मध्यस्थों को 2030 तक हर साल एक खरब डॉलर जारी किए जाने पर ध्यान देना चाहिए। यह रकम सरकारी और निजी स्त्रोतों से आनी चाहिए। 2030 से पूर्व इस वित्तीय मदद में कमी, आने वाले वर्षों पर अतिरिक्त दबाव डालेगी, परिणामस्वरूप जलवायु स्थिरता के लिए रास्ते और ज्यादा महंगे और मुश्किल हो जाएंगे।
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