संविधान सभा में ‘इंडिया दैट इज भारत’ शब्द पर सहमति क्यों बनी?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत को अंग्रेजी शासन में ब्रिटिश भा इंडिया कहा जाता था। ऐसे में यह शब्द प्रचलित हो गया। जब अंग्रेजों का शासन खत्म हुआ तो भारत की आजादी के बाद संविधान निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई तो देश के नाम को लेकर काफी चर्चा हुई। दो नाम होने को लेकर संविधान सभा में कई तर्क समर्थन में आए थे तो कई तर्क विपक्ष में आए थे। इसके बाद संविधान सभा में ‘इंडिया दैट इज भारत’ शब्द के उपयोग पर सहमति बनी। अर्थात इंडिया ही भारत है जो राज्यों का संघ है।

संविधान के अंग्रेजी संस्करण में यह बात लिखी है, लेकिन हिंदी समेत अन्य सभी भारतीय भाषाओं में भारत शब्द का उपयोग पहले किया गया है। वैसे संविधान अपने सरकारी दस्तावेजों में दोनों शब्दों में किसी के भी उपयोग की स्वतंत्रता देता है। इसमें किसी भी प्रकार की संवैधानिक अड़चन भी नहीं है। साथ ही किसी को भी भारत नाम के प्रयोग पर आपत्ति नहीं करनी चाहिए। अंग्रेजी भाषा में भी भारत लिखने में भी कोई समस्या नहीं है। इसलिए इस शब्द के उपयोग पर राजनीति भी नहीं होनी चाहिए।

देश के नाम को लेकर हो रही राजनीति और बहस बेवजह है । अंग्रेजों के समय प्रचलन में आए इंडिया शब्द के स्थान पर भारत का प्रयोग करने में कोई समस्या नहीं है। अंग्रेजी में मी भारत लिखने में किसी प्रकार की अड़चन नहीं है। जैसे-जैसे प्रयोग बढ़ेगा, भारत नाम प्रचलित होगा।

एसके शर्मा,पूर्व सचिव, दिल्ली विधानसभा

जिस प्रकार भारत सरकार ने जी20 शिखर सम्मेलन के विभिन्न स्तरों पर भारत शब्द का उपयोग किया, इससे यह शब्द प्रचलन में बढ़ जाएगा। अगर इंडिया शब्द को हटाना है तो इसके लिए भारत के संविधान में संशोधन करना होगा। यह प्रक्रिया बहुत लंबी होगी क्योंकि संविधान के अनुच्छेद-एक में संशोधन करने के बाद संसद में दो तिहाई बहुमत से इसको पारित कराना होगा।

‘यह काफी लंबी प्रक्रिया’

लोकसभा में पारित कराने के बाद सरकार को राज्यसभा में भी इस संविधान संशोधन विधेयक को पारित कराना होगा। इसके बाद विधानसभाओं के पास भी जाना होगा और 50 प्रतिशत से ज्यादा विधानसभाओं को इस पर अपनी सहमति देनी होगी। यह काफी लंबी प्रक्रिया है और मुझे नहीं लगता है कि सरकार इस प्रकार की किसी प्रक्रिया में उलझना चाहेगी।

हम देख रहे हैं कि सरकार ने पहले ही भारत शब्द का उपयोग करके इसे प्रचलित करना शुरू कर दिया है। संभवतः राजभाषा विभाग द्वारा इस शब्द के उपयोग पर जोर देने का आदेश भी कुछ समय में जारी किया जा सकता है। स्वाभाविक रूप से ऐसे किसी आदेश से भारत शब्द अधिक प्रचलन में आ जाएगा। जब राजभाषा विभाग का आदेश आ जाएगा तो स्वतः ही केंद्र से लेकर विभिन्न राज्यों में इस उपयोग बढ़ जाएगा।

इस नाम का प्रयोग बढ़ने से यह प्रचलन में आएगा

तमाम फाइलों या सरकारी दस्तावेज में भारत लिखा जाना लगेगा। वहीं, यदि केंद्रीय खेल मंत्रालय विभिन्न खेलों में खिलाड़ियों के लिए उपयोग होने वाली जर्सी और टी-शर्ट पर भी भारत लिखना आरंभ कर देगा तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के इस नाम के प्रदर्शित होने से इसकी पहचान मजबूत होगी। ऐसे में समय के साथ-साथ इस नाम का प्रयोग बढ़ने से यह प्रचलन में आ जाएगा।

जहां तक प्रश्न इंडिया और भारत को लेकर हो रही राजनीतिक बयानबाजी का है तो वह होनी ही नहीं चाहिए। सरकार ने अभी तक कहीं नहीं कहा कि सिर्फ भारत शब्द का ही उपयोग किया जाएगा या देश को सिर्फ भारत नाम से ही जाना जाएगा। इससे साफ है कि देश को भारत नाम से जाना जाए, इसके लिए सरकार इस शब्द का प्रचलन बढ़ाना चाहती है। और वही करती दिख भी रही है। अतः देश को अगर भारत नाम से जाना जाता है तो किसी क्यों आपत्ति होनी चाहिए। इसकी इजाजत तो हमें भारतीय संविधान भी देता है।

अगर सरकार देश के नाम से इंडिया शब्‍द को हटाकर इसे सिर्फ भारत करना चाहती है तो इसके लिए उसे संविधान संशोधन के लिए बिल लाना होगा. अनुच्छेद-1 में संशोधन करने के लिए केंद्र सरकार को कम से कम दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी. लोकसभा में इस समय 539 सांसद हैं. ऐसे में संसोधन बिल को पास करने के लिए 356 सांसदों का समर्थन जरूरी है, वहीं राज्यसभा में 238 सांसद हैं, तो 157 सदस्यों का समर्थन चाहिए होगा.

बिल अगर लोकसभा और राज्‍यसभा दोनों सदनों में पास हो गया तो नाम का संशोधन तो हो जाएगा, लेकिन काम यहां पर खत्‍म नहीं होगा. इसके बाद भारत को उन सभी अंतरराष्‍ट्रीय संगठनों को सूचित करना होगा, जहां हमारे देश का नाम India लिखा जाता रहा है. उन सभी को पत्र जारी करके ये बताना होगा कि अब इंडिया के नाम को बदल दिया गया है. अब इसे आधिकारिक रूप से भारत के नाम से संबोधित किया जाए. लेटर मिलने के बाद अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर नाम को बदला जाएगा और तब देश को ‘भारत’ के तौर पर अंतरराष्‍ट्रीय रूप से मान्‍यता मिलेगी.

 

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