क्या अगले लोकसभा चुनाव में एकबार फिर एकजुट विपक्ष करेगा भाजपा का सामना?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने आज एनसीपी नेता शरद पवार से मुलाकात की. प्रशांत किशोर और शरद पवार की लंच पर मुलाकात तीन घंटे चली. अधिकारिक तौर पर तो इसे बंगाल और तमिलनाडु चुनाव में मिली जीत के बाद धन्यवाद देने के लिए आयोजित मुलाकात बताया जा रहा है, लेकिन राजनीति के जानकारों का मानना है कि यह मुलाकात सिर्फ धन्यवाद देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दूरदर्शी योजना के मद्देनजर आयोजित मीटिंग थी, जिसका लक्ष्य 2024 का लोकसभा चुनाव है.

मिशन 2024 को साधने के लिए प्रशांत किशोर विपक्ष को एकजुट करना चाह रहे हैं, ताकि पूरा विपक्ष 2024 में भाजपा के खिलाफ एकजुट हो जाये और उन्हें सत्ता से हटाया जा सके. इस मिशन को पूरा करने के लिए प्रशांत किशोर हर उस नेता से मिलेंगे जिन्होंने बंगाल चुनाव जीतने में ममता बनर्जी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से मदद की है.

बंगाल चुनाव के वक्त शरद पवार ने ममता बनर्जी का साथ दिया था और भाजपा पर तंज भी कसा था. तमिलनाडु में बड़ी जीत दर्ज करने वाले एमके स्टालिन भी प्रशांत किशोर के उस लिस्ट में शामिल हैं, जिन्हें साथ लाना है. गौरतलब है कि प्रशांत किशोर अभी ममता बनर्जी के साथ हैं. ममता बनर्जी ने जिस तरह विधानसभा चुनाव में भाजपा को पटखनी दी है उससे उनका कद राजनीति में बहुत बड़ा हुआ है.

भाजपा ने बंगाल को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी, जिस तरह ममता बनर्जी ने प्रदेश की सत्ता में तीसरी बार वापसी की वह काबिलेतारीफ है. ममता की इस जीत के बाद यह कहा जा रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव में वह विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार हो सकती हैं.

बंगाल विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद जब पत्रकारों ने उनसे पूछा था कि क्या वे अगले लोकसभा चुनाव में विपक्ष की पीएम कैंडिडेट होंगी तो ममता बनर्जी ने कहा था कि हम साथ चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन पहले कोरोना से लड़ लें. ममता के इस बयान के बाद से ही यह कयास लगाया जा रहे हैं कि अगले चुनाव में ममता की भूमिका बड़ी और महत्वपूर्ण होगी.

उनके राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर भले ही यह कह रहे हैं कि वे अभी ब्रेक लेना चाहते हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि वे मिशन 2024 में जुट गये हैं. देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही है और उनके पास सशक्त नेतृत्व नहीं है, उनके बड़े नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, इस बात का फायदा भी ममता बनर्जी को अगले चुनाव में मिल सकता है और वे विपक्ष की नेता बन सकती हैं.

लेकिन यहां मुश्किल यह है कि कांग्रेस पार्टी जो खुद को भाजपा का एकमात्र विकल्प बताती है वो ममता के नेतृत्व को कैसे स्वीकारेगी. ममता बनर्जी कभी कांग्रेस पार्टी का हिस्सा रही हैं, ऐसे में कांग्रेस के लिए उनके नेतृत्व को स्वीकारना मुश्किल काम है.

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