क्या क्वाड की रणनीति से भारत के सामने घुटने टेकेगा चीन?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता कायम होने के बाद दुनिया में कूटनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। चीन और पाकिस्तान ने जिस तरह से तालिबान को लेकर गर्मजोशी दिखाई है वह पूरी दुनिया के लिए हतप्रभ करनेवाला रहा है। इस बदलाव का दूसरा पहलू भी है जिसका संबंध कोविड महामारी से है। महामारी के दौर में चीन ने जिस तरह दुनिया के सामने अपनी आक्रामक और विस्तारवादी नीति को प्रदर्शित किया है, उसने ज्यादातर मुल्कों को चीन के प्रति अपने नजरिये में बदलाव लाने को मजबूर किया है।
दक्षिण चीन सागर में लंबे समय से चीन का मनमाना रवैया जगजाहिर रहा है। दूसरी तरफ भारत के साथ सीमा संघर्ष ने यह साबित कर दिया कि अपनी महत्वाकांक्षाओं को लेकर चीन मौके के इंतजार में है। ये घटनाक्रम अमेरिकी नीति में तात्कालिक बदलाव का कारण जरूर रहे हैं पर इसकी शुरुआत डोनाल्ड ट्रंप के समय ही हो चुकी थी, जब ट्रंप ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर वर्ष 2018 में अपनी सोच की संरचना को जारी किया था।
उसमें साफ लिखा था कि आने वाले दिनों में वो स्वतंत्र हिंद-प्रशांत नीति का अनुसरण करने जा रहा है। इसी संदर्भ में 24 सितंबर को क्वाड समूह की अहम बैठक हुई है। ये बैठक अहम इसलिए थी क्योंकि इसकी स्थापना के बाद पहली बार ये देश आमने सामने बैठकर इस पर चर्चा कर रहे थे। भारत, जापान और आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री इसमें शामिल हुए जिसमें चर्चा के केंद्र में चीन ही रहा।
इस बैठक के बाद से भारत ही नहीं, दुनिया के कई अन्य देशों के साथ-साथ दक्षिण-पूर्व के देशों को भी बड़ी उम्मीदें जगी हैं। ये देश कहीं न कहीं चीन की आर्थिक और विस्तारवादी नीति से आहत रहे हैं। ये सभी मानते हैं कि चीन के अव्यवहारिक नीति को इस क्षेत्र में भारत के सहयोग से ही चुनौती दी जा सकती है। क्वाड के रूप में उन्हें आशा की किरण दिखती है जिसमें ये चार देश मिलकर चीन को कई मोर्चे पर घेर सकते हैं। भारत भी सीमा संघर्ष के बाद चीन को लेकर वैश्विक मंच पर आक्रामक हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी भी क्वाड समूह के देशों के साथ एकजुट होकर स्वतंत्र भारत-प्रशांत नीति को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जाहिर कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिकी प्रस्ताव में दक्षिण-पूर्व और आसियान देशों को मजबूत करने की प्रतिबद्धता को क्षेत्रीय आर्थिक और सामरिक सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण मानते हैं। इन सभी देशों का मानना है कि भारत-प्रशांत में निर्बाध आवागमन बना रहेगा तभी इनके आर्थिक हित सुरक्षित रहेंगे। इसलिए ये देश मानते हैं कि क्वाड समूह एक साथ मिलकर इस क्षेत्र को स्वतंत्र और निर्बाध बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
इस दौरे के बीच एक भ्रम की स्थिति यह निकलकर आई कि जब आकस समूह है तो क्वाड की क्या जरूरत है। इस भ्रम की स्थिति को दूर करते हुए अमेरिकी प्रवक्ता ने साफ किया कि दोनों समूहों का उद्देश्य एक दूसरे के विपरीत है। आकस जहां एक सामरिक समूह है जो सामरिक सुरक्षा पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है, वहीं क्वाड आर्थिक हितों को इस क्षेत्र में साझा तौर पर आगे बढ़ाने का एक मजबूत प्रयास है।
अमेरिकी प्रवक्ता ने यह भी साफ किया कि दोनों समूहों को एक साथ लाने का कोई प्रस्ताव नहीं है। यह बयां कहीं न कहीं भारतीय वैश्विक नीति के सिद्धांत के अनुरूप भी है। भारत का यह पक्ष साफ रहा है कि वह दुनिया में कहीं भी केवल सामरिक तौर पर किसी समूह का हिस्सा नहीं बनेगा।
क्वाड की बैठक से चीन का बेचैन होना स्वाभाविक है। इस बैठक से चीन खुद को कई मोर्चे पर घिरता हुआ महसूस कर रहा है। अमेरिका ने आकस की प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए आस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बी के पूरे फ्लीट का प्रस्ताव देकर चीन को खुलेआम चुनौती भी दी है और इस क्षेत्र के देशों को सूचित भी किया है कि वो सुरक्षित है। चीन प्रतिकार स्वरूप अफगानिस्तान में अपने प्रयास को तेज कर रहा है।
साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने सैन्यबल को बढ़ाकर अमेरिका को संदेश भी देने का प्रयास कर रहा है। इन सबसे इतर रूस ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी प्रयासों पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है। इसका एक प्रमुख कारण है कि रूस अफगानिस्तान और मध्य-एशियाई देशों पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहता है। दूसरी तरफ वह आश्वस्त है कि क्वाड समूह में भारत के होने के कारण उसके हित सुरक्षित हैं, क्योंकि दोनों देश पहले से ही इस क्षेत्र में आम सहमति से चलते रहे हैं।
इन सभी घटनाक्रमों के मद्देनजर आने वाले दिनों में चीन पर नियंत्रण करना अमेरिकी नीतियों का केंद्र बिंदु रहेगा। इन समूहों को अहमियत देकर अमेरिका ने साफ कर दिया है कि वो चीन के साथ आगे समझौतावादी रुख से अलग हटकर उसके विस्तारवादी नीति के खिलाफ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी घेराबंदी को तेज करेगा जिसमें भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
क्वाड के माध्यम से ही सही, लेकिन चीन के खिलाफ भारत को अमेरिका के रूप में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बड़ा साझीदार मिला है। अगर देखा जाए तो क्वाड के चारों देशों के चीन पर अलग-अलग विचार हैं। सभी चारों देशों का चीन को लेकर अपनी मान्यताएं और नजरिया है। आस्ट्रेलिया जहां चीन को व्यापार में अपने प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखता है, वहीं अमेरिका चीन को दुनिया के लिए खतरा करार देता रहा है।
जबकि जापान का चीन के साथ क्षेत्रीय और आर्थिक विवाद दोनों है। भारत एक बड़ा युद्ध लड़ने के साथ ही आर्थिक और सैन्य संघर्ष का सामना कर रहा है। अत: माना जा सकता है कि क्वाड सभी चार देशों की मान्यताओं के सामंजस्य का प्रतिरूप है, जिसके माध्यम से ये सभी देश साथ मिलकर चीन के खिलाफ समग्र नीति को आगे बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध हैं और इस क्षेत्र के आर्थिक हितों को सुरक्षित करने के लिए प्रयासरत हैं।
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