क्या 2024 के चुनाव में विपक्ष का नेतृत्व शरद पवार करेंगे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने केंद्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों का मोर्चा बनाने के प्रयास शुरू कर दिये हैं और इस कड़ी में उन्होंने मंगलवार को कई पार्टियों के नेताओं और जानी-मानी हस्तियों की एक बैठक की मेजबानी भी की। दरअसल पवार अपना पावर गेम इसलिए दिखा रहे हैं क्योंकि वह जानते हैं कि कांग्रेस इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा का अकेले मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है इसलिए वह (पवार) विपक्षी दलों का अगुआ बनने का प्रयास कर रहे हैं।
भले उनकी पार्टी एनसीपी सांसदों और विधायकों की संख्या के मामले में कई विपक्षी पाटियों से पीछे हो लेकिन राजनीति में शरद पवार का अनुभव बहुत लंबा है। वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद पर रहने के अलावा केंद्र में कई मंत्रालयों के कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं साथ ही लोकसभा में विपक्ष के नेता भी रहे हैं। यह तो सभी जानते हैं कि लोकसभा में विपक्ष के नेता को पीएम इन वेटिंग के रूप में देखा जाता है लेकिन शरद पवार का यह वेट खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। लेकिन विपक्ष का कोई एक बड़ा सर्वमान्य नेता नहीं होने के चलते शरद पवार को राजनीतिक हालात अपने अनुकूल दिख रहे हैं और इसलिए वह काफी सक्रिय हो गये हैं। यही कारण है कि विपक्ष की एकता की धुरी इस समय शरद पवार के इर्दगिर्द ही घूम रही है।
कांग्रेस की कमजोरी का फायदा उठाना चाहते हैं पवार
दरअसल शरद पवार यह अच्छी तरह जानते हैं कि भले कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी हो लेकिन जब वह खुद ही दो साल से अंतरिम अध्यक्ष से अपना काम चला रही है और अपना एक सर्वमान्य नेता तक नहीं चुन पाई है तो विपक्ष का नेतृत्व कैसे करेगी। दूसरा कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की लंबे अरसे से कोई बैठक नहीं हुई है इसीलिए यह गठबंधन भी बीती बात नजर आ रहा है। इसके अलावा शरद पवार को राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के भविष्य पर संशय भी दिखता है
क्योंकि गत वर्ष एक मराठी दैनिक को दिए साक्षात्कार में पवार कथित तौर पर कह चुके हैं कि राहुल गांधी में निरंतरता की कमी है। इसलिए शरद पवार को लगता है कि यह सबसे सही मौका है जब सभी विपक्षी दल उनके नेतृत्व में गोलबंद हो सकते हैं। वैसे भी कांग्रेस को विपक्ष की कमान आज के हालात में मिलने की संभावना इसलिए भी क्षीण नजर आ रही है क्योंकि ऐसे कई क्षेत्रीय दल हैं जिनकी सीधी टक्कर कांग्रेस से होती रही है इसलिए उनके लिए कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करने से बेहतर यह होगा कि वह शरद पवार को नेता मान लें।
इसके अलावा विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्री जब-जब राजनीतिक परेशानी में फँसे हैं या उनका केंद्र से टकराव हुआ है तब-तब शरद पवार उन मुख्यमंत्रियों के समर्थन में खड़े हुए हैं। शिवसेना ने तो अभियान भी चलाया हुआ है कि शरद पवार की अगुवाई में या तो विपक्षी मोर्चा बने या उन्हें यूपीए का संयोजक बनाया जाये। लेकिन कांग्रेस इस पर राजी नहीं है क्योंकि वह जानती है कि आज पवार को यूपीए का संयोजक बनाया तो पता नहीं कब राजनीति और खेल जगत की राजनीति के धुरंधर पवार अपना पावर गेम दिखा दें।
पवार और प्रशांत की मुलाकातों के मायने
शरद पवार पिछले कुछ समय से लगातार चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर से मुलाकात कर रहे हैं और 2024 के चुनावों के लिए राजनीतिक बिसात बिछा रहे हैं। दरअसल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रशांत किशोर को जो नई जिम्मेदारी सौंपी है वह यह है कि वह पवार के नेतृत्व में काम करने के लिए सभी विपक्षी दलों को मनाएं। पवार जिस तरह से देश के राजनीतिक परिदृश्यों पर चर्चा के लिए विपक्षी दलों से मुलाकात का सिलसिला बढ़ा रहे हैं वह कांग्रेस के लिए भी चेतावनी है
क्योंकि यदि पवार के नेतृत्व में विपक्ष एकजुट हुआ तो देश की सबसे पुरानी पार्टी राष्ट्रीय राजनीति में एकदम किनारे हो जायेगी। पिछले एक-डेढ़ सप्ताह में प्रशांत किशोर की शरद पवार से तीन बार मुलाकात हुई है। इन मुलाकातों के बड़े परिणाम आने वाले समय में देखने को मिल सकते हैं और जल्द ही दस जनपथ नहीं बल्कि पवार निवास ही विपक्ष की केंद्रीय राजनीति का केंद्र बन सकता है।
तीसरा मोर्चा ज्यादा सफल नहीं रहा
बहरहाल, भारत की राजनीति में तीसरे मोर्चे का प्रयोग बहुत ज्यादा सफल नहीं रहा है और इसने राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार को ही ज्यादा बढ़ावा दिया है लेकिन यह भी एक तथ्य है कि तीसरे मोर्चे का अस्तित्व सदा किसी ना किसी रूप में रहा ही है। फिलहाल तो पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवन्त सिन्हा की ओर से गठित राष्ट्र मंच की बैठक अपने आवास पर करवा कर शरद पवार ने साफ संकेत दिये हैं कि वह आने वाले दिनों में समाज के विभिन्न वर्गों को साथ लेकर चलते हुए दिखाई देने का प्रयास करेंगे। देखना होगा कि कितने दल और नेता आने वाले समय में पवार के नेतृत्व में एकजुट होते हैं। वैसे कुल मिलाकर पवार की इस सक्रियता से भाजपा की बजाय कांग्रेस को ज्यादा चिंतित होने की जरूरत है।
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