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क्या सरकारों को शराब की आमदनी से तौबा करनी होगी? - श्रीनारद मीडिया

क्या सरकारों को शराब की आमदनी से तौबा करनी होगी?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ड्रग्स मामले पर संसद में हुई चर्चा शराब के रोचक मोड़ पर पहुंचने के बावजूद सार्थक निष्कर्ष नहीं हुआ। न्यूजीलैंड ने कानून बनाकर चरणबद्ध तरीके से धूम्रपान को खत्म करने के लिए कानून बनाया है। लेकिन भारत में  शराब के नाम पर पूरे देश में अराजकता का माहौल है। देश की राजधानी दिल्ली में शराब की बिक्री से अर्जित राजस्व से शिक्षा और स्वास्थ्य को बेहतर करने का दावा हो रहा है। दूसरी तरफ बिहार में शराबबंदी से महिला सशक्तिकरण और अपराध कम होने की बात हो रही है। मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती शराबबंदी का आंदोलन चला रही हैं। तो पंजाब में ड्रग्स और शराब के कारोबार पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार के साथ संसद में भी तीखे बाण चल रहे हैं।

गांधी जी के आदर्शों से प्रभावित होकर संविधान में शराबबंदी का प्रावधान है। लेकिन ओ.टी.टी. में पॉपुलर कार्यक्रमों को देखा जाए तो ऐसा लगता है कि शराब अब समाज के सभी वर्गों का अभिन्न हिस्सा बन गई है। जी.एस.टी. लागू होने के बाद शराब से अर्जित राजस्व राज्यों की कमाई का सबसे बड़ा साधन है। इसलिए तमाम सियासी दावों के बावजूद कोई भी राज्य शराबबंदी नहीं करना चाहता। गुजरात में लम्बे समय से शराबबंदी लागू होने के बावजूद वहां पर शराब हर जगह उपलब्ध है।

विपक्ष के दावों को सही माना जाए तो बिहार में पुलिस और प्रशासन ही अवैध शराब के कारोबार में हिस्सेदार है। कानून के अनुसार पूरे देश में शराब का विज्ञापन नहीं हो सकता। लेकिन ओ.टी.टी. और सरोगेट विज्ञापनों से शराब का खुलेआम महिमामंडन हो रहा है। जिस तरीके से शादी की न्यूनतम उम्र पर कानूनी विवाद चल रहे हैं उसी तरीके से राज्यों में शराब पीने की उम्र पर अनेक विवाद हैं।

बेतुकी शराबबंदी से मुकद्दमेबाजी और भ्रष्टाचार-बिहार के मुख्यमंत्री का दावा है कि शराबबंदी लागू होने के बाद 1.6 करोड़ लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया है। शराब की खपत कम होने से अपराध, घरेलू हिंसा और सड़क हादसों में कमी आने का दावा भी हो रहा है। नीतीश के अनुसार शराबबंदी से दूध और उससे जुड़े उत्पादों के व्यापार में बढ़ौत्तरी हुई है।

व्यवस्था परिवर्तन में विफल होने के बाद जे.पी. के अनुयायी नीतीश कुमार जिस बेतुके तरीके से शराबबंदी को लागू कर रहे हैं उससे भ्रष्टाचार, तस्करी, मौतें और मुकद्दमेबाजी बढ़ रही है। पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल, झारखंड और उत्तर प्रदेश में शराबबंदी लागू नहीं होने की वजह से संगठित तौर पर शराब की तस्करी और कच्ची शराब का कुटीर उद्योग पूरे बिहार में विषबेल की तरह फैल गया है।

पिछले 6 सालों में बिहार को 40 हजार करोड़ से ज्यादा के राजस्व का नुक्सान का अनुमान है। सरकारी खजाने में कमी होने की वजह से प्रदेश में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के मद में कटौती होने के साथ टूरिज्म सैक्टर को भी खासा नुक्सान हुआ है। शराबबंदी से जुड़े कानून की वजह से बिहार में 3.48  लाख से ज्यादा मुकद्दमे दर्ज हुए हैं और लाखों लोग जमानत के लिए अदालतों की कतार में हैं। इसकी वजह से अदालतों का बोझ बढऩे के साथ जेलों में भी भीड़ बढ़ रही है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 6 सालों में जहरीली शराब से पूरे देश में 7000 लोगों की मौत हुई है। इनमें मध्य प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब और झारखण्ड सबसे प्रमुख हैं। बिहार में जहरीली शराब से मरने वाले लोगों के परिवारजनों का कहना है कि जहरीली शराब से हुई मौतों को छुपाने के लिए प्रशासन लोगों की ठंड से मौत को रिकॉर्ड कर रहा है। सरकारी रिकॉर्ड में मृतकों के डाटा की हेरा-फेरी भ्रष्टाचार के साथ गम्भीर अपराध है। इसकी वजह से पीड़ित परिवारजनों को मुआवजा हासिल करने में भी कानूनी अड़चनें आती हैं।

देशव्यापी नीति और कानून की जरुरत-कई राज्यों में शराबबंदी की नीति लागू हुई, लेकिन तमिलनाडु, केरल और हरियाणा सरकारों को शराबबंदी को रद्द करना पड़ा। देश के सभी भागों में शराब पीकर गाड़ी चलाने पर मोटर वाहन अधिनियम के तहत जुर्माने और जेल का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्गों में 500 मीटर दायरे में शराब बिक्री नहीं हो सकती लेकिन उससे बचाव के लिए लोगों ने दुकानों के दरवाजे दूसरी दिशा में खोल दिए।

देश के राज्यों में शराब पीने की न्यूनतम उम्र अलग-अलग होने से भ्रष्टाचार बढ़ता है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जेलों में बंद कैदियों के हालात पर बहुत चिंता व्यक्त की है। जहरीली शराब हो या फिर कानून का डंडा। दोनों की चोट गरीबों पर ही ज्यादा पड़ती है। गांधी का गुजरात हो या फिर जे.पी. का बिहार। शराबबंदी को सफल बनाने के लिए संविधान के अनुच्छेद-47 के तहत केन्द्र सरकार को राज्यों के साथ मिलकर फैसला लेना होगा। शराब के कारोबार पर राज्यों की बजाय केन्द्रीय स्तर पर ही अंकुश लग सकता है। इसके लिए जागरूकता बढ़ाने के साथ सरकारों को शराब की आमदनी से भी तौबा करनी होगी।

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