Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
क्या नई पीढ़ी को कट पेस्ट के दुनिया से बाहर लाना होगा? - श्रीनारद मीडिया

क्या नई पीढ़ी को कट पेस्ट के दुनिया से बाहर लाना होगा?

क्या नई पीढ़ी को कट पेस्ट के दुनिया से बाहर लाना होगा?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

शिक्षाविदों को इस पर गंभीर चिंतन करना होगा

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आज की जेनरेशन शार्टकट और कॉपी पेस्ट से आगे नहीं निकल पा रही है। इंटरनेट, मोबाइल, कम्प्यूटर और सोशियल मीडिया ने नई जेनरेशन को सीमित दायरे में कैद करके रख दिया है। नई पीढ़ी में से अधिकांश युवा कुछ नया करने, नया सोचने, नई दिशा खोजने के स्थान पर गूगल गुरु या इसी तरह के खोजी एप के सहारे आगे बढ़ने लगी है। तकनीक का विकास इस तरह से सोच और समझ को सीमित दायरें में लाने का काम करेगी यह तो सोचा ही नहीं था। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तो इससे भी एक कदम आगे निकल गई है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि तकनीक सहायक की भूमिका में हो तो वह आगे बढ़ने में सहायक हो सकती है पर तकनीक का जिस तरह से उपयोग होने लगा है वह ज्ञान और समझ को थुथला करने में ही सहायक सिद्ध हो रही है। यही कारण है कि आज की पीढ़ी से कोई भी सवाल करों वह उसका उत्तर गूगल गुरु या इसी तरह के प्लेटफार्म का सहारा लेकर तत्काल दे देंगे। हांलाकि सूचनाओं का संजाल जिस तरह से इंटरनेट प्लेटफार्म पर उपलब्ध है निश्चित रुप से वह आगे बढ़ाने में सहायक है पर आज की पीढ़ी उसी तक सीमित रहने में विश्वास करने लगी है।

जिस तरह से एक समय परीक्षाएं पास करने के लिए वन डे सीरिज का दौर चला था ठीक उसी तरह से किसी भी समस्या का हल, किसी भी जानकारी को प्राप्त करने के लिए इंटरनेट को खंगालना आम होता जा रहा है। चंद मिनटों में एक नहीं अनेक लिंक मिल जाते हैं और कई बार तो समस्या यहां तक हो जाती है कि इसमें कौनसा लिंक अधिक सटीक है। दर असल इस तरह की जानकारी से तर्क क्षमता के विकास या विश्लेषक की भूमिका नगन्य हो जाती है। समझ में यह भी आ जाता है कि नेट पर इतनी जानकारी है तो फिर किताबों के पन्ने पलटने से क्या लाभ? इसका एक दुष्परिणाम किताबों से दूरी को लेकर साफ साफ देखा जा सकता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि इंटरनेट, कम्प्यूटर और मोबाइल ने आज की पीढ़ी को शार्टकट की जिंदगी जीना सिखा दिया है। आज का युवा कट पेस्ट के सहारे अपना काम चला रहा है। कोई जानकारी लेनी है तो सीधा गूगल गुरु की शरण में जाता है और एक ही प्रश्न से संबंधित सामग्री के अनेक स्रोत देख कर वह अपनी सुविधा के अनुसार जो उसे सही लगता है कट किया और उसके बाद पेस्ट करके अपना काम पूरा कर लेता है।

यह सब चिंतनीय इसलिए है कि सालाना माड्यूलर सर्वेक्षण 2024 में यह सामने आया है कि डेटा, सूचना, दस्तावेजों आदि के लिए इंटरनेट की शरण में चले जाते हैं और वहां पर जो मिलता है उसी को पेस्ट कर इतिश्री कर लिया जाता है। सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश में उत्तराखण्ड के युवा सबसे आगे हैं और उत्तराखण्ड के करीब 66 फीसदी युवा कॉपी पेस्ट के सहारे काम चला रहे हैं।

उत्तराखण्ड के पीछे पीछे ही बिहार के युवा हैं और बिहार के 60 प्रतिशत युवा कट पेस्ट के सहारे ही काम चला रहे हैं। उत्तरप्रदेश के युवाओं के हालात भी कमोबेस यही है और उत्तरप्रदेश के 56 फीसदी युवा कट पेस्ट का सहारा ले रहे हैं। कमोबेस यह हालात भारत ही नहीं आज की तारीख में दुनिया के अधिकांश देशों में आम होती जा रही है। तकनीक के उपयोग में कोई बुराई नहीं हैं अपितु तकनीक के उपयोग में आगे रहना समय की मांग होती है। पर बौद्धिक विकास या तार्किकता की पहली शर्त ही अध्ययन मनन होती है।

सबसे बड़ी समस्या यही है कि आज का युवा पढ़ने पढ़ाने से दूर होता जा रहा है। गूगल गुरु के सहारें काम चलाया जा रहा है। सबसे अधिक चिंतनीय यह है कि ऐसे में युवाओं के समग्र बौद्धिक विकास की बात करना बेमानी हो जाता है। जब एक क्लिक में सामग्री मिल जाती है तो फिर पढ़ने-पढ़ाने की जहमत कौन उठाएं। कोरोना के कारण ऑनलाइन कक्षाओं का जो चलन चला था उसके नकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं। रही सही कसर सोशियल मीडिया ने पूरी कर दी है। सोशियल मीडिया पर परोसी जाने वाली सामग्री में कितना सही है और क्या सही है यह तय करना जोखिम भरा काम है।

परिवारों के हालात यह होते जा रहे हैं कि किताब तो दूर होती जा रही है और क्या बच्चे और क्या बड़े सब मोबाइल पर लगे रहते हैं और आपसी संवाद करने की भी फुर्सत नहीं होती। एकाकीपन बढ़ता जा रहा है। सामाजिकता तो लगभग समाप्त ही होती जा रही है। सोशियल मीडिया में शार्टकट मैसेजों का चलन इस कदर बढ़ गया है कि कई बार तो शार्टकट मैसेज को डिकोड करने में ही पसीने आ जाते हैं। अब 2025 की ही बात ले तो सोशियल मीडिया पर डब्ल्यूटीएफ का चलन जोरों से चल रहा है।

डब्ल्यूटीएफ का एक तो सीधा साधा अर्थ है क्या मजाक है। पर दूसरी और नए साल के बुधवार से आरंभ होने को लेकर डब्ल्यूटीएफ का धडल्ले से प्रयोग किया जा रहा है। डब्ल्यूटीएफ के माध्यम से लोगों को डराया भी जा रहा है कि जिस तरह से 2020 में बुधवार से नए साल की शुरुआत हुई थी और उस साल कोरोना के भयावह दौर से गुजरना पड़ा। इस तरह से डब्ल्यूटीएफ के माध्यम से कोरोना काल जैसी त्रासदी की संभावना से लोगों को डराया जा रहा है।

अब जिस तरह के चीन से समाचार आ रहे हैं उनमें कितनी सचाई है यह तो दूर की बात है पर उससे दहसत का माहौल बनता जा रहा है। एक समय था जब बच्चों की कम्यूनिकेशन स्कील विकसित की जाती थी। अब सोशियल मीडिया के इस जमाने में कम्युनिकेशन स्किल तो दूर की बात शार्ट कट के आधार पर ही काम चलाया जा रहा है। खास यह कि सामने वाले से यह अपेक्षा की जाती है कि उसे सब कुछ मालूम है।

आने वाली पीढ़ी को गंभीर और चिंतनशील बनाना है तो उसे कट पेस्ट के दुनिया से बाहर लाना ही होगा। कहा जाता है कि जितना अधिक अध्ययन मनन होता है व्यक्ति उतना ही निखर कर आता है। जब इंटरनेट की दुनिया में जो जानकारियां हैं उन्हीं का उपयोग किया जाता है तो ऐसी हालत में चिंतन, मनन, तक-वितर्क, वैचारिक परिपक्वता, शोध आदि की कल्पना करना अपने आप में गलत होगा। ऐसे में तकनीक का उपयोग सहजता के लिए किया जाना तो उचित है पर तकनीक के नाम पर केवल शार्ट कट या कॉपी पेस्ट तक सीमित होना अपने आप में गंभीर चिंता का कारण बन जाता है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!