क्या सरकार को घेरने के लिए इंडिया वाले अब मणिपुर जाएँगे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
मणिपुर से रोज कोई न कोई बुरी खबर आ रही है। हिंसा अपनी जगह है और राजनीति अपनी जगह। मणिपुर के भाजपाई मुख्यमंत्री अपने राज्य में तो कुछ कर नहीं पा रहे हैं, पड़ोसी राज्य मिज़ोरम में कुकी आदिवासियों के समर्थन में हुई एक रैली को कोसने में लगे हुए हैं।
इस बीच समूचे विपक्ष के नए संगठन INDIA के सासंदों की एक टीम 29- 30 जुलाई को मणिपुर जा रही है। ये सांसद वहाँ पीड़ितों से मिलेंगे। दरअसल, अगले हफ़्ते लोकसभा में मणिपुर को लेकर लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर बहस होने वाली है।
लगता है- ये सांसद उस बहस के लिए एक्चुअल कंटेंट जुटाने ही जा रहे हैं। ज़ाहिर सी बात है- भाषण में वास्तविकता होगी तो ज़्यादा वजन आएगा। हालाँकि, इससे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी मणिपुर जाकर लौट आए हैं।
जिस तरह राहुल की यात्रा में कई अड़ंगे आए थे, इन सांसदों को भी वही सब भुगतना पड़ सकता है। वहाँ जाकर पीड़ितों से मिलना वैसे भी कोई हलवा तो है नहीं। वो भी पहले से घोषणा करके जाएँगे तो राह में मुश्किलें आना तो तय है ही।
जहां तक मणिपुर और मिज़ोरम के झगड़े की बात है मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने साफ़ कह दिया है कि मिज़ोरम के मुख्यमंत्री हमारे राज्य के मामलों में दखल न ही दें तो अच्छा है। दरअसल पिछले दिनों मिज़ोरम में हुई कुकी समर्थित रैली में खुद मिज़ोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा भी शामिल हुए थे।
बीरेन सिंह को इसी का दर्द है। जोरमथंगा का कहना है कि मैं अपने राज्य में कुछ भी करूँ! किस रैली में जाऊँ और क़िसमें नहीं, ये मणिपुर के मुख्यमंत्री कैसे तय कर सकते हैं? दरअसल, मणिपुर में जब से हिंसा हो रही है तब से लगभग तेरह हज़ार कुकी लोग मिज़ोरम जा चुके हैं।
वैसे भी मिजो आदिवासियों और कुकी समुदाय के बीच पहले से ही गहरे संबंध रहे हैं। म्यांमार के वक्त से ही। हिंसा के भय से व्यक्ति कहीं तो जाएगा! मिज़ोरम में होने वाली किसी रैली से भला बीरेन सिंह को कोई आपत्ति होनी भी क्यों चाहिए? बहरहाल, म्यांमार सीमा से लगे गाँवों में आज भी बमबारी, आगज़नी और गोलीबारी चल रही है।
इसके एक दिन पहले ही मणिपुर के एक अन्य ज़िले में भीड़ ने सुरक्षा बलों की दो बसों में आग लगा दी थी। समस्या एक नहीं है। कई हैं। मैतेई महिलाओं का एक समूह सुरक्षा बलों की कार्रवाई में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। दंगाइयों पर कार्रवाई के लिए सेना या सुरक्षा बल के जवान जैसे ही आगे बढ़ते हैं, हाथों में मशाल लिए हुए इन महिलाओं का समूह दीवार बनकर आगे खड़ा हो जाता है।
इन महिलाओं की संख्या भी दो-तीन हज़ार होती है। सुरक्षा बलों को रुकना पड़ता है। तब तक दंगाई भाग निकलते हैं या छिप जाते हैं। जब तक महिला जवान बड़ी संख्या में यहाँ मोर्चा नहीं सँभालतीं, दंगाइयों से निबटना मुश्किल है।
मणिपुर में महिलाओं के साथ जो कुछ हुआ, उसकी व्यथा सुन- सुनकर दूसरी महिलाओं का जी भर आता है। जिन पहाड़ों की लड़ाई वहाँ लड़ी जा रही है, इस घटना के बाद लगता है ये दुखों के पहाड़ हैं और किसी को मिल भी जाएँ या किसी से छिन भी जाएँ तो अब कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।
परतें खुलीं तो पता चला जो वीडियो अब वायरल हो रहा है वह दो -ढाई महीने पुराना है। इतने ही पहले पुलिस में एफआईआर भी दर्ज करा दी गई थी। पुलिस ने इस रिपोर्ट को संबंधित थाने को ट्रांसफ़र करने में अठारह दिन लगा दिए। साफ़ दिखाई दे रहा है कि पुलिस और संभवतया राज्य सरकार ने इस रिपोर्ट को लगातार छिपाए रखने के पूरे प्रयास किए होंगे।
वीडियो वायरल नहीं होता तो यह ह्रदय विदारक घटना पुलिस की फ़ाइलों में दबकर ही रह जाती और वो पीड़ा जिसकी बात की जा रही है, कहीं दिखाई नहीं देती। पीडिताओं की कहानी तो कुछ इस तरह है कि मैतेई युवकों ने जब उन्हें कपड़े उतारने को कहा तब वे पुलिस वाहन में ही बैठी थीं।
युवकों के अत्याचार से डरकर जब इन महिलाओं ने पुलिस जवानों की तरफ़ देखा तो उन्होंने मुँह फेर लिया। कुल मिलाकर यह भीषणतम अत्याचार पुलिस की निगरानी में किया गया, यह भी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
एक समुदाय जिसके लोग बड़े – बड़े पदों पर बैठे हैं, उनका ऐसा और इतना भी क्या दबदबा है जो महिलाओं पर अत्याचार से ही तुष्ट हो रहा है। मणिपुर की सरकार से कौन पूछेगा कि इतने जघन्य अपराध की रिपोर्ट इतने दिनों तक छिपाई क्यों गई? कौन इसका ज़िम्मेदार है?
वीडियो वायरल होने के बाद दोषियों की तुरंत गिरफ़्तारी और उन्हें मौत की सजा दिलाने तक का दम्भ भर रहे ज़िम्मेदार लोग दो महीने तक कहाँ छिपे हुए थे? कुकियों का कहना है कि वायरल वीडियो में जो कुछ है वह तो केवल एक भाग है, ऐसा हमारी कई लड़कियों के साथ हुआ है और वे अब तक सदमें में हैं, इसलिए बाहर नहीं आ पा रही हैं।
फ़िलहाल, भारी बारिश के बीच कुकी हज़ारों की संख्या में यहाँ- वहाँ प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार और पुलिस और प्रशासन की एक ही रट है दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
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