क्या अब प्रकाशन व्यवसाय एक कॉर्पोरेट की तरह काम करेगा?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आलम यह है कि आसमान में जन्मीं खबरें, धरती पर चारों ओर फैल जाती हैं। गोया कि हमें यथार्थ से अधिक विश्वास कल्पना पर रहा है। यहां तक भी माना गया है कि पूरा संसार ही मनुष्य कल्पना का परिणाम है। इसीलिए इसे दार्शनिक स्वरूप भी दिया गया है कि कोई जन्मा ही नहीं, तो वह मरेगा कैसे? खबर यह है कि एक अत्यंत प्रसिद्ध और महान कलाकार की जीवन भर की कमाई से उसने एक संस्था का निर्माण किया, जिसके संचालन का कार्य उसने अपने प्रशंसक को सौंपा।

संस्थापक ने अपनी आत्मा के ताप से तय किया कि भारत के लगभग खत्म हो चुके प्रकाशन उद्योग में वह नए प्राण फूंकेगा। अब वह अपनी पसंद के लेखक को अग्रिम धन देकर, अपने सुझाए गए विषय पर किताब लिखने को कहता है। किताब को बेचने की व्यवस्था भी वह कर चुका है। अतः इस तरह अब संचालक की रुचि के अनुरूप लेखक किताब लिखेगा। अब भूख से कोई लेखक की मृत्यु नहीं होगी। अब प्रेमचंद की तरह कष्ट किसी को झेलने नहीं होंगे। मतलब अब प्रकाशन व्यवसाय एक कॉर्पोरेट की तरह काम करेगा।

समय-समय पर इससे जुड़े सदस्यों को लाभांश भी दिया जाएगा। गौरतलब है कि सिनेमा व्यवसाय भी कॉर्पोरेट की तरह काम कर रहा है। सिने उद्योग में ‘न्यू थियेटर्स’ और ‘बॉम्बे टॉकीज’ भी कॉर्पोरेट संस्थाएं हो रही हैं। गोया कि इस तरह एक संचालक की पसंद की रचनाओं से बाजार पाट दिया जाएगा। यूं तो नया इतिहास तक लिखा जा सकता है। इस तरह देखा जाए तो बाहुबली यथार्थ है और कटप्पा ने उसे कभी मारा ही नहीं। बाहुबली भाग दो फिल्म के प्रति दर्शकों में जिज्ञासा बनी रहे, इसलिए हत्या का प्रहसन रचा गया था।

बहरहाल, अब तो लगता है कि प्रकाशन संस्था के कॉर्पोरेट बन जाने के बाद किसी रचना को पुलित्जर या नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा, तो संचालक जाकर पुरस्कार ग्रहण करेंगे, क्योंकि किताब का लेखक शायद मानसरोवर की यात्रा पर गया हुआ होगा ताकि वह अपनी अगली पुस्तक में भोगे हुए यथार्थ को प्रस्तुत कर सके। हर बार दीपावली के पावन अवसर पर सोने की सर्वाधिक बिक्री सिद्ध करती है कि हम गरीब देश नहीं है।

हमारी गरीबी तो विरोधियों के द्वारा किया गया झूठा प्रचार है! लगता है कि प्रकाशन की कॉर्पोरेट संस्था में प्रूफरीडिंग विभाग पर पैसा खर्च नहीं किया जाएगा, क्योंकि पाठक त्रुटियां स्वयं ही दुरुस्त कर लेंगे। नया प्रकाशन कॉर्पोरेट, पुरानी किताबों को पुनः प्रकाशित नहीं करेगा, क्योंकि मौलिक लेखन दसों दिशाओं में रचा जाएगा। लगता है कि दिग्गज और ख्यातिलब्ध लेखक कभी हुए ही नहीं हैं। क्या इस बर्खास्त सूची में कबीर का नाम भी होगा?

कबीर की लिखी चीजों के सार का उपयोग, फिल्म गीतों में करने वाले गीतकार शैलेंद्र को भी सूची से हटा दिया जाएगा क्या? उन पर आरोप है कि उन्होंने तथाकथित गरीबी को महिमामंडित किया है। उन्होंने अपने गीतों में फिल्म ‘आवारा’ के आवारा को घर-बार दिया, नया संसार दिया। तो क्या ‘थ्री ईडियट्स’ और ‘पीके’ बनाने वाले राजकुमार हिरानी को अब हुक्म दिया जाएगा कि वह ‘अलीबाबा और 40 चोर’ बनाएं।

गीतकार स्वानंद किरकिरे का गीत ‘लव इज़ ए वेस्ट ऑफ़ टाइम’ को बार-बार गाना अनिवार्य कर दिया जाएगा। लगता है कि चार्ली चैप्लिन की आत्मकथा को चैप्लिन की तरह पुन: दफनाया जाएगा। चार्ली को दफनाए जाने के बाद कब्र से उसका शब चुराया गया था। अत: इस बार दाह संस्कार किया जाएगा और चिता से उठते हुए धुएं को एक बोतल में बंद करके उस बोतल को ही समुद्र में फेंक दिया जाएगा।

किसी शार्क को इजाजत नहीं दी जाएगी कि वह बोतल निगल ले। इस तरह नई प्रकाशन संस्था, साहित्य संसार का कायाकल्प कर देगी। कपड़ों की तरह रेडीमेड पोशाक पहनी जाएगी, जिसमें सब का नाप समान होगा। इस तरह नए निजाम का साहित्यिक एक्सटेंशन होगा यह प्रकाशन व्यवसाय।

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