Breaking

क्या भारत में सौर ऊर्जा की नीति सफल नहीं होगी?

क्या भारत में सौर ऊर्जा की नीति सफल नहीं होगी?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में भारी निवेश (जहाँ सौर ऊर्जा सर्वप्रमुख है) के साथ एक संवहनीय भविष्य की ओर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। भारत सरकार ने भारत की नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता को वर्ष 2030 तक 500 GW तक विस्तारित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। भारत ने वर्ष 2030 तक अपनी लगभग आधी ऊर्जा गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करने का संकल्प लिया है और लघु अवधि में कम से कम अपनी 60% नवीकरणीय ऊर्जा सौर ऊर्जा से प्राप्त करेगा।

  • भारत जीवाश्म ईंधन पर देश की निर्भरता को कम करने और हरित भविष्य की ओर आगे बढ़ने के लिये प्रतिबद्ध है, जहाँ सौर क्षेत्र का विकास इस लक्ष्य की प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • संक्रमण के लिये सरकार के समर्थन के कारण भारत नवीकरणीय ऊर्जा की ओर आगे बढ़ रहा है। सौर ऊर्जा को एक स्वतंत्र और प्रचुर संसाधन के रूप में चिह्नित करना भी एक भूमिका निभाता है। लेकिन सौर ऊर्जा के संबंध में कुछ भ्रांतियाँ भी मौजूद हैं जिन पर हमें पहले विचार करने की आवश्यकता है।

सौर ऊर्जा के बारे में भ्रांतियाँ  

  • सौर ऊर्जा की स्तरीकृत लागत में गिरावट: 
    • ऐसी धारणा व्याप्त है कि सौर ऊर्जा की स्तरीकृत लागत (Levelized Cost) कम हो रही है और कुछ लोग मानते हैं कि—यह लागत समय के साथ रैखिक रूप से घट जाएगी; यह लागत सभी भू-भागों के लिये एक समान होती है; लागत में केवल सौर पैनलों की लागत ही शामिल है; इसमें  रख-रखाव लागत शामिल नहीं है; और यह ऊर्जा भंडारण लागतों की उपेक्षा करता है।
    • जबकि वास्तविकता यह है कि लागत प्रौद्योगिकी की प्रगति, बाज़ार स्थितियों एवं सरकारी नीतियों में परिवर्तन जैसे विभिन्न कारकों से प्रभावित हो सकती है; जबकि स्तरीकृत लागत सौर ऊर्जा प्रणाली के सभी घटकों को ध्यान में रखती है (जिसमें इनस्टॉलेशन एवं जारी रख-रखाव लागत भी शामिल है), न कि केवल सौर पैनलों की लागत को।
  • आर्थिक रूप से व्यवहार्य: 
    • स्टोरेज बैटरी लागत को शामिल नहीं करते हुए लोगों को भ्रमित कर सौर ऊर्जा को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाया जाता है; इसे सब्सिडी एवं रियायतों का सहारा दिया जाता ही जिसका भार सरकार वहन करती है और इसे राज्य नीति के माध्यम से उद्योगों एवं असहाय डिस्कॉम पर थोपा जाता है।

सौर ऊर्जा के क्या लाभ हैं? 

  • नवीकरणीय:
    • सौर ऊर्जा एक नवीकरणीय स्रोत है, जिसका अर्थ है कि संसाधनों की समाप्ति के बिना अनियत काल तक इसका उत्पादन किया जा सकता है।
  • स्वच्छ ऊर्जा: 
    • सौर ऊर्जा ऊर्जा का एक स्वच्छ स्रोत है, जिससे कोई हानिकारक उत्सर्जन या प्रदूषण नहीं होता है।
  • लागत-प्रभावी: 
    • हाल के वर्षों में सौर ऊर्जा की लागत में पर्याप्त कमी आई है, जिससे यह ऊर्जा के स्रोत के रूप में तेज़ी से लागत-प्रभावी बनी है।
  • विश्वसनीय: 
    • सौर ऊर्जा प्रणाली तेज़ी से विश्वसनीय और स्थायी बनती जा रही है, जिसके लिये कम रख-रखाव की आवश्यकता होती है।
  • विविधतापूर्ण: 
    • सौर ऊर्जा का उपयोग बिजली उत्पादन, हीटिंग और प्रकाश व्यवस्था सहित कई प्रकार के अनुप्रयोगों के लिये किया जा सकता है।
  • विकेंद्रीकृत: 
    • सौर ऊर्जा प्रणालियों को छोटे पैमाने पर स्थापित किया जा सकता है, जिससे स्थानीय रूप से ऊर्जा उत्पन्न करना संभव हो जाता है और केंद्रीकृत ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम हो जाती है।

भारत में सौर ऊर्जा से संबद्ध चुनौतियाँ  

  • उच्च आरंभिक लागत: 
    • सौर पैनल प्रौद्योगिकी की लागत में हाल में आई कमियों के बावजूद इनके इनस्टॉलेशन की अग्रिम लागत उच्च बनी हुई है, जो घरों और व्यवसायों के लिये इसे अपनाने में बाधक सिद्ध सकती है।
  • वित्त तक सीमित पहुँच: 
    • नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये वित्त तक सीमित पहुँच की स्थिति हो सकती है (विशेष रूप से लघु एवं ग्रामीण परियोजनाओं के लिये), जो फिर व्यक्तियों एवं संगठनों के लिये सौर ऊर्जा में निवेश को चुनौतीपूर्ण बना सकती है।
  • अवसंरचना और ग्रिड कनेक्टिविटी: 
    • देश के कुछ क्षेत्रों में पर्याप्त अवसंरचना और ग्रिड कनेक्टिविटी की कमी के कारण सौर पैनलों से उत्पादित बिजली को आवश्यकता रखने वाले स्थानों तक पहुँचाना दुरूह सिद्ध हो सकता है।
  • भूमि उपलब्धता: 
    • बड़े पैमाने की सौर परियोजनाओं के लिये भारत में उपयुक्त भूमि पाना चुनौतीपूर्ण हो सकती है, विशेष रूप से जबकि कृषि और शहरी विकास जैसे अन्य उद्देश्यों के लिये पहले से भूमि की प्रतिस्पर्द्धी मांग बनी हुई है।
  • रख-रखाव और संचालन संबंधी समस्याएँ: 
    • सौर ऊर्जा प्रणालियों का खराब रख-रखाव और संचालन उनकी दक्षता एवं प्रभावशीलता को कम कर सकता है, जो फिर भारत में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं की दीर्घकालिक व्यवहार्यता को प्रभावित कर सकता है।
    • वर्तमान में सौर पैनलों की सफाई में प्रति वर्ष लगभग 10 बिलियन गैलन जल का उपयोग किये जाने का अनुमान है, जो 2 मिलियन लोगों तक पेयजल आपूर्ति के लिये पर्याप्त है।
      • जलरहित सफाई श्रमसाध्य कार्य है और इससे सतहों पर अपरिवर्तनीय खरोंच लगने का खतरा उत्पन्न होता है जिससे पैनलों की दक्षता कम हो जाती है।
      • MIT के शोधकर्ताओं की एक टीम ने सौर पैनलों या सौर तापीय संयंत्रों के दर्पणों को बिना जल और बिना संपर्क के स्वचालित रूप से साफ करने का एक तरीका विकसित किया है जो धूल की समस्या को पर्याप्त रूप से कम कर सकता है।

अन्य संबंधित पहलें  

  • सोलर पार्क योजना (Solar Park Scheme): सोलर पार्क योजना विभिन्न राज्यों में लगभग 500 मेगावाट क्षमता के कई सोलर पार्क स्थापित करने पर लक्षित है।
  • रूफटॉप सोलर योजना (Rooftop Solar Scheme): रूफटॉप सोलर योजना का उद्देश्य घरों की छतों पर सोलर पैनल लगाकर सौर ऊर्जा का दोहन करना है।
  • राष्ट्रीय सौर मिशन (National Solar Mission): यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा चुनौती को संबोधित करते हुए पारिस्थितिक रूप से सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार और राज्य सरकारों की एक प्रमुख पहल है।
  • सृष्टि योजना: (SRISTI: Sustainable rooftop implementation of Solar transfiguration of India) योजना भारत में रूफटॉप सौर ऊर्जा परियोजनाओं को प्रोत्साहन देने पर लक्षित है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA): अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की तैनाती में वृद्धि के लिये एक क्रिया-उन्मुख, सदस्य-संचालित, सहयोगी मंच है।
  • किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM): नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में ऑफ-ग्रिड सौर पंपों की स्थापना का समर्थन करने और ग्रिड से जुड़े क्षेत्रों में ग्रिड पर निर्भरता कम करने के लिये पीएम-कुसुम योजना कार्यान्वित की जा रही  है।

आगे की राह  

  • बड़ी पनबिजली परियोजनाओं का कार्यान्वयन: 
    • बड़ी पनबिजली परियोजनाओं के साथ भारत न्यूनतम लागत और न्यूनतम कार्बन फुटप्रिंट पर अधिक नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन कर सकता है
      • भारत ने अपनी पनबिजली क्षमता का केवल लगभग 15% ही उपयोग किया है जबकि अमेरिका और यूरोप ने अपनी क्षमता का क्रमशः 90% और 98% तक उपयोग किया है।
      • पनबिजली क्षमता के उपयोग का स्तर एक तरह से सभ्यतागत विकास और प्रगति का सूचक प्रतीत होता है।
  • अवसंरचना और निवेश का विस्तार: 
    • भारत को नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है, जिसमें पारेषण और वितरण नेटवर्क के साथ-साथ नई सौर प्रौद्योगिकियों का अनुसंधान एवं विकास शामिल हैं।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना:
    • निजी क्षेत्र भारत में सौर ऊर्जा के विकास एवं तैनाती में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके लिये सरकार को निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने हेतु अनुकूल नीतियों एवं प्रोत्साहनों की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये।
  • ऊर्जा भंडारण समाधानों में सुधार लाना: 
    • ऊर्जा भंडारण प्रणाली यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि सौर ऊर्जा का प्रभावी ढंग से तब भी उपयोग किया जा सके, जब सूरज का पर्याप्त ताप नहीं प्राप्त हो रहा हो। भारत सरकार को सौर ऊर्जा को अधिक सुलभ एवं विश्वसनीय बनाने के लिये उन्नत ऊर्जा भंडारण समाधानों के विकास का समर्थन करना चाहिये।
  • रूफटॉप सौर प्रणाली को बढ़ावा देना: 
    • घरों और व्यवसायों के लिये अपनी स्वयं की ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये रूफटॉप सौर प्रणाली एक किफायती एवं सुविधाजनक विधि सिद्ध हो सकती है। भारत सरकार को प्रोत्साहन, सब्सिडी और टैक्स क्रेडिट के माध्यम से रूफटॉप सौर प्रणाली के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • एक कुशल कार्यबल का निर्माण करना: 
    • भारत में सौर ऊर्जा क्षेत्र के विकास के लिये एक कुशल कार्यबल की आवश्यकता होगी। सरकार को कुशल श्रमिकों की अबाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये प्रशिक्षण एवं शिक्षा कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिये जो सौर ऊर्जा प्रणालियों की स्थापना और उसके रख-रखाव में मदद कर सकेंगे।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!