क्या लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव से टूट जाएगी परम्परा?
एनडीए ने ओम बिरला को, जबकि इंडी गठबंधन ने कोडिकुन्निल सुरेश को बनाया उम्मीदवार
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
लोकसभा चुनाव के बाद अब एक बार फिर से राजनीतिक गहमागहमी तेज हो गई है। लोकसभा अध्यक्ष पद को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष में आम सहमति नहीं बनने के कारण 26 जून को लोकसभा स्पीकर तय करने के लिए चुनाव होगा। वहीं, इस पद के लिए एनडीए ने ओम बिरला को, जबकि इंडी गठबंधन ने कोडिकुन्निल सुरेश को मैदान में उतारा है।
कैसे पड़ेंगे वोट?
समाचार एजेंसी पीटीआई ने विशेषज्ञों के हवाले से बताया कि अगर विपक्ष लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनाव के दौरान मत विभाजन पर जोर देता है तो वोट कागज की पर्चियों पर डाले जाएंगे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सदस्यों को अभी सीटें आवंटित नहीं की गयी हैं, जिसके कारण इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले प्रणाली का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
पूर्व लोकसभा महासचिव ने क्या कहा?
संविधान विशेषज्ञ और पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचार्य के मुताबिक, जो प्रस्ताव पेश किए गए हैं, उन्हें प्राप्त होने वाले क्रम में एक-एक करके रखा जाएगा। उन्होंने आगे बताया कि अगर जरूरत पड़ी तो निर्णय विभाजन द्वारा किया जाएगा।
विपक्ष की इस मांग पर…
उन्होंने कहा कि अगर लोकसभा अध्यक्ष का नाम सदन द्वारा ध्वनिमत से स्वीकृत हो जाता है तो पीठासीन अधिकारी इस बात की घोषणा करेंगे की किस सदस्य को सदन का अध्यक्ष चुना गया है। ध्वनि मत से चुनाव हो जाने के बाद प्रस्ताव पर मतदान नहीं कराया जाएगा। हालांकि, अगर विपक्ष सदन में मत-विभाजन की मांग करता है तो इसको लेकर चुनाव कराए जाएंगे और इस स्थिति में सदन के कर्मचारी सांसदों को पर्चियां देंगे और फिर मतदान कराए जाएंगे।
कागज की पर्चियों का होगा इस्तेमाल
उन्होंने आगे कहा कि 18वीं लोकसभा के सदस्यों को अभी सीटें आवंटित नहीं की गई हैं, जिसके कारण मतदान में इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले सिस्टम का उपयोग नहीं किया जाएगा। हालांकि, चुनाव के दौरान कागज की पर्चियों का इस्तेमाल किया जाएगा, जिसके कारण नतीजे आने में समय लग सकते हैं।
भारतीय इतिहास में पहली बार लोकसभा स्पीकर तय करने के लिए चुनाव होगा। आमतौर पर लोकसभा स्पीकर पद के लिए पक्ष और विपक्ष के बीच आम सहमति बन जाती है, लेकिन 26 जून को पहली बार चुनाव के जरिए स्पीकर की घोषणा होंगी।
2009 में जब उनके प्रतिद्वंद्वी ने दी थी चुनौती
2009 में, उन्होंने फिर से जीत हासिल की, लेकिन उनकी जीत को उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी ने चुनौती दी, जिन्होंने आरोप लगाया कि सुरेश ने एक फर्जी जाति प्रमाण पत्र पेश किया और कहा कि वे ईसाई हैं। केरल उच्च न्यायालय ने उनके चुनाव को अवैध घोषित कर दिया था, लेकिन बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को पलट दिया।
सीपीआई के पराजित उम्मीदवार ए एस अनिल कुमार और दो अन्य की चुनाव याचिका को स्वीकार करते हुए, उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि सुरेश ‘चेरामार’ समुदाय के सदस्य नहीं हैं और इसलिए अनुसूचित जाति के नहीं हैं। न्यायालय ने यह भी माना कि वह मावेलिकरा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हैं, क्योंकि यह अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित है।
सुरेश का राजनीति सफर कैसा?
सुरेश ने पहली बार 1989 में अदूर से लोकसभा से राजनीति सफर शुरू किया था। इसके बाद 1991, 1996 और 1999 में तीन बार इसी निर्वाचन क्षेत्र से वह सांसद बने और 2009 के चुनाव में 48,046 मतों के अंतर से मावेलिक्कारा से निर्वाचित घोषित किए गए। एलएलबी की डिग्री रखने वाले सुरेश ने 2014, 2019 और अभी-अभी संपन्न 2024 के चुनावों में फिर से जीत हासिल की हैं। वह कई संसदीय समितियों के सदस्य रहे हैं।
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