क्या वोटरों को किसी बेहतर को चुनने का अवसर मिल सकेगा?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
विपक्षी गठबंधन इंडिया ने अपने गठन के बाद से सुर्खियों में निरंतर जगह पाई है। एक अरसे के बाद विपक्ष लोगों का ध्यान खींचते हुए एक नैरेटिव बना पा रहा है। गठबंधन का नाम इंडिया रखने से लेकर उन 14 एंकरों की सूची जारी करने तक जिनका उसके द्वारा बहिष्कार किया जाएगा- विपक्ष दिन का ट्रेंड सेट करने में सफल रहा है। पहले और अब में सबसे बड़ा अंतर यह है कि अब विपक्ष भी एजेंडा सेट कर रहा है, केवल उस पर प्रतिक्रिया भर नहीं दे रहा है।
लेकिन ट्विटर ट्रेंड से एक सीमा तक ही सफलता मिलती है। आज का सबसे अहम सवाल यह है कि क्या इंडिया भाजपा की सीटों में बड़ी सेंध लगाने में कामयाब रहेगी? इसका यह मतलब है कि उसे उन जगहों पर जीतना होगा, जहां विपक्ष पिछली बार हारा था।
यह सोशल मीडिया पर मीम्स बनाने से ज्यादा मुश्किल है। इस सवाल का जवाब है- शायद हां, लेकिन यह चार फैक्टरों पर निर्भर करेगा। अगर ये कारगर रहते हैं, तो भाजपा की सीट-संख्या में 80 से 90 सीटों की सेंध लगाई जा सकती है, हालांकि वह तब भी लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी रहेगी।
1. अगर वोटरों का मूड 2019 जैसा रहा तो चाहे जैसी सीट-शेयरिंग कर लें या चाहे जैसा कॉम्बिनेशन बना लें, इंडिया भाजपा को हरा नहीं सकेगा। गत चुनावों में भाजपा ने अधिकतर सीटें उत्तर और पश्चिम के बड़े राज्यों में जीती थीं। वहां उसे पचास प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। अगर वोटरों का मूड वैसा ही रहा तो फिर चाहे शेष अन्य पार्टियां एकजुट हो जाएं, भाजपा तब भी बड़ी संख्या में सीटें जीतने में सफल रहेगी।
हो सकता है आज देश में विपक्ष के प्रति पहले से अधिक सहानुभूति हो, लेकिन बदलाव के लिए आंधी नहीं बह रही है। विपक्ष के लिए जो थोड़ा-बहुत माहौल है, उतना तो दस साल की एंटी-इन्कम्बेंसी में स्वाभाविक है। बड़ी संख्या में वोटों को खींचने के लिए विपक्ष को बड़ी हवा बनाना होगी। बेहतर होगा कि विपक्ष उन क्षेत्रों में काम करे, जहां उसे लगता है कि वह वर्तमान में हो रही भूलों को सुधारने के लिए नीतियां और कानून बना सकता है।
2. इंडिया में चाहे जितनी पार्टियां हों, अगर राज्यवार बात करें तो अनेक चुनावी संग्राम ग्लैडिएटर शैली में आमने-सामने वाले हैं। ये भी दो तरह के हैं। एक, कांग्रेस और भाजपा की आमने-सामने की टक्कर वाले राज्य, जैसे कि एमपी, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान और छत्तीसगढ़। इन राज्यों में 119 सीटें हैं, जिनमें से भाजपा ने पिछली बार 112 जीती थीं। इन राज्यों में इंडिया गठबंधन कांग्रेस की ज्यादा मदद नहीं करने वाला है, कांग्रेस को खुद ही मुकाबला करना होगा।
जमीनी मेहनत, वोटरों से संवाद, रैली आदि के जरिए 20 से 30 सीटों में सेंध लगाई जा सकती है। दो, वैसे राज्य जहां भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस से नहीं है। जैसे यूपी जहां सपा-बसपा हैं, पंजाब-दिल्ली जहां आप है और बंगाल जहां टीएमसी है। इन राज्यों में 142 सीटें हैं, जिनमें से भाजपा ने पिछली बार 91 पर जीत दर्ज की थी। इनमें 30 सीटों में सेंध लगाई जा सकती है।
3. कुछ ऐसे राज्य भी हैं, जहां त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय संघर्ष हैं। इनमें अगर इंडिया ने सही गणित खेला तो उसे बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। ऐसे बड़े राज्यों में महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड शामिल हैं। इन राज्यों में भी 102 सीटें हैं, जिनमें भाजपा ने पिछली बार 91 सीटें जीती थीं। यहां 30 सीटों में सेंध सम्भव है।
4. चूंकि इंडिया गठबंधन केवल एक-बनाम-एक या अनेक-बनाम-एक के कॉम्बिनेशन में ही जीत सकता है, इसलिए उसे एक समूह के रूप में सोचना होगा, जो बहुत मुश्किल है। अनेक-बनाम-एक के मुकाबलों में न केवल सीटों को बंटवारा करना होगा, बल्कि एक-बनाम-एक के मुकाबलों में पूरा राज्य ही किसी अगुवा-दल को सौंपना होगा। जैसे अमेरिकी चुनाव में विजेता को पूरे राज्य में जीत मिलती है, उसी तरह जो पार्टी किसी राज्य-विशेष में भाजपा को हराने में सर्वाधिक सक्षम होगी, उसे वहां भाजपा से मुकाबला करने के लिए फ्री-हैंड देना होगा।
यूपी में सपा, बंगाल में टीएमसी, राजस्थान में कांग्रेस को ग्लैडिएटर की तरह अकेले ही मैदान में उतरना चाहिए। इस ड्यूल थ्योरी- जिसमें कहीं पर पार्टियां मिलकर लड़ेंगी और कहीं पर अकेले- को अमल में लाना आसान नहीं है। क्योंकि राजनीति के खेल की सिद्धहस्त भाजपा भी इधर अपने प्लान्स बना रही होगी। चुनावी मौसम आ चुका है। दोनों पक्षों में अगर कड़ा मुकाबला होगा, तभी वोटरों को किसी बेहतर को चुनने का अवसर मिल सकेगा!
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