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क्या कर्नाटक में भाजपा की रणनीति येदियुरप्पा ही तय करेंगे? - श्रीनारद मीडिया

क्या कर्नाटक में भाजपा की रणनीति येदियुरप्पा ही तय करेंगे?

क्या कर्नाटक में भाजपा की रणनीति येदियुरप्पा ही तय करेंगे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

27 फरवरी को PM नरेंद्र मोदी कर्नाटक में थे। चुनावी साल है, इसलिए एक बड़ी रैली भी हुई। खास बात ये रही है कि इस रैली में PM ने मंच से न CM बसवराज बोम्मई का नाम लिया और न ही प्रदेश अध्यक्ष का। उन्होंने सिर्फ एक नेता का जिक्र किया और वो थे बीएस येदियुरप्पा। PM दो बार येदियुरप्पा के सामने झुके और उनका अभिवादन किया। शिवमोगा एयरपोर्ट का उद्घाटन करने गए तो वहां भी येदियुरप्पा के साथ ही रहे।

इससे संकेत मिले कि इस बार भी BJP कर्नाटक में येदियुरप्पा के ही भरोसे है। 80 साल के येदियुरप्पा चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं, लेकिन चुनाव कैंपेन को लीड वही करेंगे। भास्कर ने उनके रिटायरमेंट से पहले ही यह बात कन्फर्म की थी। कर्नाटक के बुकानाकेरे गांव में पैदा हुए बुकानाकेरे सिद्दालिंगप्पा येदियुरप्पा यानी बीएस येदियुरप्पा वही शख्स हैं, जिन्होंने दक्षिण भारत के किसी राज्य में पहली बार BJP की सरकार बनवाई थी।

17% लिंगायत वोट, 100 सीटों पर असर
येदियुरप्पा लिंगायत कम्युनिटी के सबसे बड़े नेता हैं। कर्नाटक में इस कम्युनिटी की पॉपुलेशन करीब 17% है। यह कम्युनिटी BJP सपोर्टर मानी जाती है और इसे BJP से जोड़ने का काम येदियुरप्पा ने ही किया था। पहले लिंगायत कांग्रेस के साथ थे। यह कम्युनिटी कर्नाटक विधानसभा की 224 में से 90 से 100 सीटों पर असर डालती है।

राज्य में छोटे-बड़े 500 से ज्यादा लिंगायत मठ हैं। चुनाव के पहले हर पार्टी के नेताओं का इन मठों में आना-जाना शुरू हो जाता है। बड़े मठों पर येदियुरप्पा की स्वीकार्यता एक जैसी है। साल 2021 में जब उन्हें CM पद से हटाया गया था, तब भी उनके समर्थन में ज्यादातर मठ लामबंद हो गए थे। बाद में उन्होंने ही समर्थकों को समझाकर शांत कराया था।

कर्नाटक में राजनीति में मठों का दखल
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, पहले मठ सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में ही काम करते थे। 1980 के दशक से ये राजनीति में एक्टिव होना शुरू हुए। बीते 20 साल में कर्नाटक में ऐसे सैकड़ों मठ शुरू हुए हैं, जो किसी खास रीजन की कम्युनिटी को साथ जोड़कर उनकी एजुकेशन और पॉलिटिकल रिप्रेजेंटेशन के लिए काम कर रहे हैं। इसलिए अब हर कम्युनिटी चाहती है कि उनका मठ हो। मठों के जरिए ही स्कूल, कॉलेज, अनाथालय चल रहे हैं, सोशल एक्टिविटी हो रही है।

सीनियर जर्नलिस्ट चंदारगी कहते हैं येदियुरप्पा ने इन मठों की बहुत मदद की है। उनके बेटे विजयेंद्र की भी मठों में अच्छी पकड़ है। कहा जाता है कि येदियुरप्पा जो भी वादा करते हैं, उसे पूरा भी करते हैं, इसलिए मठ उनके साथ जुड़े हैं। अभी कर्नाटक की बड़ी कम्युनिटी कुरबा, वाल्मीकि, वोक्कालिगा, पंचमशाली अपने लिए रिजर्वेशन के लिए लड़ रही हैं। यह लड़ाई मठों के जरिए ही होती है।

मठाधीशों के फॉलोअर बहुत बड़ी तादाद में होते हैं। वे जिधर इशारा करते हैं, फॉलोअर्स के वोट वहीं जाते हैं। इसी कारण 2018 के चुनाव के पहले भी नरेंद्र मोदी, अमित शाह से लेकर राहुल गांधी तक मठों में पहुंचे थे। येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री रहने के दौरान सरकार ने छोटे-बड़े तमाम मठों को अच्छी फंडिंग की थी, जिससे मठों से जुड़े लोगों को फायदा मिला।

राजीव गांधी का एक फैसला और लिंगायत कांग्रेस से दूर हो गए
1990 तक लिंगायत कांग्रेस के साथ जुड़े रहे। तब लिंगायतों के समर्थन से कांग्रेस ने 224 में से 179 सीटें जीत ली थीं। सीनियर जर्नलिस्ट अशोक चंदारगी कहते हैं रामजन्म भूमि रथयात्रा के दौरान हुई हिंसा के बाद राजीव गांधी ने तब CM रहे वीरेंद्र पाटिल सरकार को बर्खास्त कर दिया था।

उसके बाद से ही लिंगायत कम्युनिटी कांग्रेस से दूर हो गई। 1994 के चुनाव में कांग्रेस की 36 सीटें कम हो गईं। BJP का वोट शेयर 4% से बढ़कर 17% पर पहुंच गया। इसी के साथ येदियुरप्पा नेता के तौर पर उभरे। वे कर्नाटक में पार्टी का लिंगायत कम्युनिटी से आने वाला चेहरा बने और फिर धीरे-धीरे कम्युनिटी में उनकी पैठ बढ़ती गई।

2013 में BJP से अलग हो गए थे
2013 में करप्शन के आरोपों के बाद BJP ने येदियुरप्पा से दूरी बना ली थी। इसके बाद उन्होंने कर्नाटक जनता पार्टी बना ली थी। इसका असर ये हुआ था कि BJP और येदियुरप्पा की पार्टी के बीच वोट बंट गए और BJP महज 40 सीटें जीत सकी।

2008 में पार्टी ने 110 सीटें जीती थीं। वोट शेयर भी 33.86% से घटकर 19.95% पर आ गया। फिर येदियुरप्पा की BJP में वापसी होने से लिंगायत वोट दोबारा पार्टी के खाते में आ गए। इसका असर 2014 के लोकसभा चुनाव में ही दिख गया था। तब BJP ने 28 में से 17 सीटें जीत ली थीं।

बेटे के लिए जमीन तैयार करना चाहते हैं येदियुरप्पा
कर्नाटक के सीनियर जर्नलिस्ट बेलागारू समीउल्ला कहते हैं कि ‘कर्नाटक में एक ग्रुप ने येदियुरप्पा को साइडलाइन करने की कोशिश की थी। इसमें संगठन मंत्री से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक शामिल थे।’

एक वक्त पार्टी ने भी येदियुरप्पा से दूरी बना ली थी, लेकिन पार्टी के सर्वे में पता चला कि येदियुरप्पा के दूर होने का नेगेटिव इम्पैक्ट हो रहा है। तब हाईकमान ने उनसे बातचीत शुरू की। गृहमंत्री अमित शाह ने भी येदियुरप्पा से बात की थी। दिल्ली में BJP की कार्यकारिणी बैठक के दौरान PM मोदी ने येदियुरप्पा से 15 मिनट अकेले में बात की थी। दरअसल, पार्टी राज्य में मैसेज देना चाहती है कि पार्टी और येदियुरप्पा साथ-साथ हैं और उन्हें पूरा सम्मान दिया जा रहा है।

चंदारगी कहते हैं, बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाकर नया लिंगायत लीडर बनाने की कोशिश BJP ने की थी, लेकिन वे येदियुरप्पा की तरह पॉपुलर नहीं हो पाए। इसी का नतीजा है कि इस चुनाव में उनके बजाय येदियुरप्पा को ही कैंपेन लीड करने के लिए कहा गया है।

समीउल्ला कहते हैं, ‘येदियुरप्पा अपने बेटे के लिए राजनीतिक रास्ता तैयार करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि उनके बेटे को शिकारीपुरा सीट से ही टिकट दिया जाए, क्योंकि यहीं से येदियुरप्पा भी जीतते रहे हैं। हालांकि अब तक यह कन्फर्म नहीं है कि वे कहां से चुनाव लड़ेंगे, लेकिन उनका अहम रोल रहेगा, ये तय हो चुका है। उन्होंने बड़ी रैलियां करनी शुरू कर दी हैं।’

कभी क्लर्क थे, 4 बार मुख्यमंत्री बने
1965 में येदियुरप्पा कर्नाटक सरकार में फर्स्ट डिवीजन क्लर्क हुआ करते थे, लेकिन इस नौकरी से वो संतुष्ट नहीं थे। इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। बाद में शिकारीपुरा में वीरभद्र शास्त्री की राइस मिल में क्लर्क की नौकरी करने लगे। यहीं उन्हें मिल मालिक की बेटी से प्यार हो गया और 1967 में दोनों ने शादी कर ली।

बाद में येदियुरप्पा ने खुद का हार्डवेयर स्टोर खोल लिया। इसके साथ में वो RSS से भी जुड़े हुए थे। 1970 के दशक में वे RSS की शिकारीपुरा शाखा के प्रेसिडेंट बने। फिर शिकारीपुरा नगर परिषद का चुनाव लड़ा। वे जनसंघ के शिकारीपुरा के अध्यक्ष भी चुने गए। इमरजेंसी के वक्त गिरफ्तार हुए।

1980 में उन्हें BJP का शिकारीपुरा का प्रेसिडेंट बनाया गया। 1988 में पार्टी के स्टेट प्रेसिडेंट बने। फिर ये सिलसिला मुख्यमंत्री पद तक पहुंचा। अभी वे BJP की संसदीय समिति के सदस्य हैं।

मुख्यमंत्री रहते हुए करप्शन के आरोप लगे
मुख्यमंत्री रहते हुए येदियुरप्पा पर घोटालों के आरोप लगे। उन्होंने अपनी संपत्ति डिक्लेयर की थी, जिसमें 500% की बढ़ोतरी दिखाई गई थी। यह बढ़ोतरी मुख्यमंत्री पद से पहले और पद पर रहने के बाद की थी। कहा जाता है कि BJP ने 2011 में जबर्दस्ती उनसे इस्तीफा दिलवाया था। लंबी जांच के बाद अक्टूबर 2016 में CBI की स्पेशल कोर्ट ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया था।

2018 में BJP ने उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था, लेकिन पार्टी 104 सीटें ही जीत पाई और 9 सीटों से बहुमत पाने से रह गई। हालांकि वोट शेयर के मामले में BJP ही सबसे बड़ी पार्टी थी। बाद में कांग्रेस के विधायकों के BJP में शामिल होने से फिर BJP सत्ता में आ गई। येदियुरप्पा CM बने, लेकिन 28 जुलाई 2021 को उन्हें फिर इस्तीफा देना पड़ा और इसके बाद से बसवराज बोम्मई कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के गृह राज्य कर्नाटक में थे। बेलगावी की एक सभा में उन्होंने कहा, ‘मैं देखकर बहुत दुखी हुआ, जब कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन में खड़गे जी का अपमान हुआ। सब धूप में खड़े थे, लेकिन छाता खड़गे जी को नहीं, किसी और को लगाया गया था। खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष हैं, लेकिन कांग्रेस में उनके साथ जैसा बर्ताव होता है, उसे देखकर पूरी दुनिया समझ रही है कि रिमोट कंट्रोल किसके हाथ में है।

 

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