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काबुल में तालिबान की सत्‍ता आने से  भारत की 22  हजार करोड़ से ज्‍यादा के निवेश पर लटकी तलवार - श्रीनारद मीडिया

काबुल में तालिबान की सत्‍ता आने से  भारत की 22  हजार करोड़ से ज्‍यादा के निवेश पर लटकी तलवार

काबुल में तालिबान की सत्‍ता आने से  भारत की 22  हजार करोड़ से ज्‍यादा के

निवेश पर लटकी तलवार

 

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

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अफगानिस्तान में तालिबान के लगातार बढ़ रहे प्रभाव ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। अफगानिस्‍तान की सत्ता पर तालिबान का नियंत्रण भारत के लिए भी चिंता का सबब है। दो दशकों में भारत ने अफगानिस्तान में करीब 22 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि तालिबान के कब्जे के बाद क्या यह निवेश पूरी तरह फंस जाएगा। आखिर भारत की कौन सी बड़ी परियोजना संकट में है।

गृहयुद्ध की स्थिति में फंस सकता है भारत का निवेश

प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि 1996 से 2001 के बीच जब अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्‍व था, तब भारत ने काबुल से रिश्‍ते खत्‍म कर लिए थे। अमेरिकी सेना के आने के बाद अफगानिस्‍तान में हामिद करजई की सरकार का गठन हुआ तो भारत फिर से काबुल में सक्रिय हो गया था। 2021 में अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान और सरकारी सेना के बीच भीषण संघर्ष चल रहा है। हालांकि, अभी तालिबान काबुल से काफी दूर है, लेकिन अगर अफगानिस्तान में शांति समझौता नहीं हुआ तो भारी तबाही की आशंका है। यहां की अर्थव्यवस्था पहले से ही बर्बाद है। भारत ने जो भी निवेश यहां किए हैं, गृह युद्ध की स्थिति में वह भी अधर में फंस जाएंगे।

अफगानिस्‍तान में भारत के बड़े प्रोजेक्‍ट

  • अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के प्रवेश के बाद बीते दो दशक में भारत ने भारी निवेश किया है। भारत के विदेश मंत्रालय के मुताबिक अफगानिस्तान में भारत के 400 से अधिक छोटे-बड़े प्रोजेक्ट हैं। अफगानिस्तान में चल रहे भारत के कुछ बड़े प्रोजेक्ट्स पर नजर डालते हैं और ये भी देखते हैं कि फिलहाल मौजूदा समय में चल रही लड़ाई का इन पर क्या असर पड़ने वाला है।
  • अफगानिस्तान में भारत के सबसे प्रमुख प्रोजेक्ट में काबुल में अफगानिस्तान की संसद है। इसके निर्माण में भारत ने लगभग 675 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। इसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 में किया था। भारत-अफगान मैत्री को ऐतिहासिक बताया था। इस संसद में एक ब्लॉक पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर भी है।
  • अफगानिस्‍तान में सलमा डैम हेरात प्रांत में 42 मेगावॉट का हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट है। 2016 में इसका उद्घाटन हुआ था और इसे भारत-अफगान मैत्री प्रोजेक्ट के नाम से जाना जाता है। हेरात प्रांत में पिछले कुछ हफ्तों से अफगान सेना और तालिबान के बीच भारी जंग चल रही है। तालिबान का दावा है कि डैम के आसपास के इलाकों पर अब उसका कब्जा है। इस तरह की खबरें भी आई हैं कि बांध की सुरक्षा में तैनात कई सुरक्षाकर्मी भी तालिबानियों के हाथों मारे गए हैं।
  • भारत बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन ने अफगानिस्तान में 218 किलोमीटर लंबा हाईवे भी बनाया है। ईरान के सीमा के पास जारांज से लेकर डेलारम तक जाने वाले इस हाईवे पर 15 करोड़ डॉलर खर्च हुए हैं। यह हाईवे इसलिए भी अहम है क्योंकि ये अफगानिस्तान में भारत को ईरान के रास्ते एक वैकल्पिक मार्ग देता है। इस हाईवे के निर्माण में भारत के 11 लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी थी। जारांज-डेलारम के अलावा भी कई सड़क निर्माण परियोजाओं में भारत ने निवेश कर रखा है। जारांज-डेलाराम प्रोजेक्ट भारत के सबसे महत्वपूर्ण निवेश में से एक है। पाकिस्तान अगर जमीन के रास्ते भारत को व्यापार से रोकता है तो उस स्थिति में यह सड़क बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि इस हाईवे पर तालिबानी नियंत्रण होता है तो यह भारत के लिए एक बड़ा झटका होगा।

अफगानिस्तान में तालिबान जैसे 20 से ज्यादा समूह

प्रो पंत ने कहा किअफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी चिंता की बात है। अफगानिस्तान में तालिबान जैसे 20 से ज्यादा समूह हैं। चिंता करने वाली बात यह है कि यदि तालिबान ऐसे चरमपंथी समूहों को पनाह देता है तो ये भारत के लिए संकट उत्‍पन्‍न कर सकते हैं। लश्कर-ए-तैयबा या जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों को तालिबान सुरक्षित ठिकाना दे दे। ऐसे में अफगानिस्तान से पाकिस्तान होकर एक मिलिटेंट कॉरिडोर बन सकता है। जो भारत के लिए चिंता की बात होगी।

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