Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
गांव का विकास होने से अर्थव्यवस्था बढेगा,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

गांव का विकास होने से अर्थव्यवस्था बढेगा,कैसे?

गांव का विकास होने से अर्थव्यवस्था बढेगा,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 महामारी के दौरान समूची दुनिया में दैत्याकार पूंजी पर आरूढ़ उत्पादन और बाजार की व्यवस्थाएं धराशायी हुई हैं. स्पष्ट रूप से जहां एक ओर सेवा, उद्योग, निर्माण आदि विभिन्न क्षेत्रों में भारी अवसाद की स्थिति है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक प्रगति की दर हमें चौंका देती है. हमारे देश के कृषि क्षेत्र ने महामारी के इस दौर में बहुत अच्छा परिणाम दिया है.

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, कोरोना काल में भारतीय अर्थव्यवस्था को यदि किसी क्षेत्र ने बल दिया है, तो वह गांव और खेती-किसानी ही है. इस काल में अकेले कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर चार प्रतिशत से ऊपर रही है. हालांकि पूंजी केंद्रीकरण के सिद्धांतकारों ने उद्योग, सेवा, विनिर्माण आदि क्षेत्रों के लिए एक नया रास्ता भी निकाला है तथा मानव श्रम के स्थान पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता को लागू करने की प्रक्रिया प्रारंभ की है, लेकिन यह समझना जरूरी है कि वह रास्ता मानव सभ्यता के लिए भस्मासुर साबित होनेवाला है.

ऐसे में हमें यह सोचना होगा कि किसे सहेजना है और किसे खारिज कर देना है. आज की इस विकट परिस्थिति में अपने देशी चिंतन ने बेहद प्रभावशाली परिणाम प्रस्तुत किया है. कोविड महामारी के दौरान शहरों से वापस गांव लौट आये करोड़ों लोगों को गांवों और हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था ने संभाला, इसलिए हमें गांव पर केंद्रित आर्थिक चिंतन को विकास की अवधारणा के साथ जोड़ना चाहिए.

महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज, डॉ राम मनोहर लोहिया का चक्रीय विकास और पंडित दीनदयाल उपाध्याय का अंत्योदय- ये तीनों चिंतन सभ्यता के अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों के लिए विकास में हिस्सेदारी की बात करते हैं. ये तीनों भारतीय चिंतन बड़े पूंजी निवेश का विरोध करते हैं और गांवों को निगलनेवाले शहरीकरण की अवधारणा को खारिज करते हैं. ये तीनों चिंतन मानवता और मानवीय मूल्य पर आधारित विकास की वकालत करते हैं.

हालांकि इन दिनों पूरी दुनिया में प्रकृति और पर्यावरण बचाओ अभियान चल रहा है, लेकिन इसके मूल में भी प्रकृति के खिलाफ संघर्ष का चिंतन ही काम कर रहा है. इन दिनों इसी प्रकृति व पर्यावरण संरक्षण के सिद्धांत से गांव, जंगल, पानी, हवा आदि को बचाने का एक नया फैशन चला है. इस फैशन की पश्चिमी अवधारणा ने ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देना प्रारंभ किया है, लेकिन इस पर्यटन में भी वही सब हो रहा है, जो आमतौर पर मौज-मस्ती के लिए घूमनेवाले करते रहे हैं.

इसके कारण शहर की भद्दी संस्कृति ग्रामीणों को भी बर्बाद करने लगी है. इसके उदाहरण गोवा, एर्नाकुलम और पंजाब आदि क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं. हमें यह गांठ बांध लेना होगा कि गांव, जंगल, जमीन, हवा, पानी, जानवर एवं खेती को बचाये बिना प्रकृति एवं पर्यावरण को बचाने की बात करना बेमानी है. यह केवल नारा बन कर रह जायेगा और इसका लाभ भी पश्चिमी जमात के छद्म प्रकृति संरक्षकों को ही मिलेगा.

अगर हमें अपने को जीवित रखना है, तो ग्राम्य तीर्थ की अवधारणा पर गांव को विकसित करना होगा. भारत में लगभग सात करोड़ गांव हैं. इनमें से हर गांव की अपनी विशेषता है. गांव चाहे किसी भी जाति और धर्म का हो, वहां कोई न कोई धार्मिक ऊर्जा का अपना एक केंद्र जरूर होता है. इसके साथ ही गांव में जो पारंपरिक ज्ञान मौजूद है, वह भी ऊर्जा एवं संसाधन का एक बड़ा स्रोत है, कृषि, हस्तशिल्प, आयुर्वेद, पशु एवं प्राकृतिक वनस्पति आदि आयामों को सुव्यवस्थित कर गांव को यदि तीर्थ के रूप में विकसित किया जाए, तो इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था तो मजबूत होगी ही,

साथ ही हमारी ऋषि व कृषि वाली संस्कृति का भी संरक्षण हो सकेगा. इसे विकसित करने में सरकार को बहुत ज्यादा मशक्कत करने की भी जरूरत नहीं होगी. इस दिशा में विकास के लिए हमें दो-तीन तरह के पेशेवरों की आवश्यकता पड़ेगी. पहली बात यह है कि गांव में अनुशासन और शांति का वातावरण होना चाहिए. हम सभी यह जानते हैं कि इन दिनों गैरकानूनी, राष्ट्रद्रोही व समाज विरोधी काम गांवों में भी बहुत होने लगे हैं.

इस पर अंकुश लगाने के लिए अवकाश प्राप्त सैनिकों को गांवों में शांति व अनुशासन स्थापित करने तथा उन्हें बनाये रखने का दायित्व सौंपा जाना चाहिए. दूसरी आवश्यकता यह है कि गांव के जो पेशेवर शहर में रह कर दूसरों के लिए सेवा उपलब्ध करा रहे हैं, उन्हें गांव की ओर वापस जाने के लिए सरकार को प्रोत्साहित करना चाहिए. तीसरी पहल यह हो कि ग्रामीण क्षेत्र के सभी स्थानीय निकायों को उनके सभी संवैधानिक अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए.

ऐसा हो गया, तो देखते ही देखते भारत के गांव तीर्थ बन जायेंगे तथा इससे प्रकृति व पर्यावरण का संरक्षण भी होगा. सबसे बड़ी बात कि गांवों के तीर्थ बनते ही बड़ी संख्या में पर्यटक भी ग्रामीण क्षेत्रों की ओर आकर्षित होंगे, जिसके कारण पूंजी का जो बहाव आज शहर की ओर है, उसका रूख गांव की ओर हो जायेगा. जरा सोचिए कि जब शहर की सारी आधुनिक सुविधाएं गांवों में होंगी और लोगों का जीवन अपनी संस्कृति व भाषा के आधार पर होगा, तो कितना बढ़िया होगा. इसमें न तो बड़े पूंजी निवेश की और न ही दैत्याकार कारखाने की जरूरत है. इस अवधारणा में गांधी, लोहिया और दीनदयाल तीनों समान रूप से दिख रहे हैं.

Leave a Reply

error: Content is protected !!