बिहार में हो रहे पंचायत चुनाव से एक देश एक चुनाव की राह दिख रही है.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराये जाने के मसले पर लंबे समय से बहस चल रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस विचार का समर्थन कर इसे आगे बढ़ाया है। आपको बता दें कि इस मसले पर चुनाव आयोग, नीति आयोग, विधि आयोग और संविधान समीक्षा आयोग विचार कर चुके हैं। अभी हाल ही में विधि आयोग ने देश में एक साथ चुनाव कराये जाने के मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों, क्षेत्रीय पार्टियों और प्रशासनिक अधिकारियों की राय जानने के लिये तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था। इस कॉन्फ्रेंस में कुछ राजनीतिक दलों ने इस विचार से सहमति जताई, जबकि ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया। उनका कहना है कि यह विचार लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है। जाहिर है कि जब तक इस विचार पर आम राय नहीं बनती तब तक इसे धरातल पर उतारना संभव नहीं होगा।

  • इस लेख के माध्यम से हम कई सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे, जैसे- एक देश एक चुनाव की जरूरत क्यों है? इसकी पृष्ठभूमि क्या है? देश में इस प्रक्रिया को फिर से लाने के पक्ष में क्या तर्क हैं? इसकी सीमाएँ क्या हैं? इसमें आगे की राह क्या है? तो आइये, एक-एक कर इन सभी सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।

क्यों है जरूरत एक देश एक चुनाव की

  • किसी भी जीवंत लोकतंत्र में चुनाव एक अनिवार्य प्रक्रिया है। स्वस्थ एवं निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आधारशिला होते हैं। भारत जैसे विशाल देश में निर्बाध रूप से निष्पक्ष चुनाव कराना हमेशा से एक चुनौती रहा है। अगर हम देश में होने चुनावों पर नजर डालें तो पाते हैं कि हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। चुनावों की इस निरंतरता के कारण देश हमेशा चुनावी मोड में रहता है। इससे न केवल प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय प्रभावित होते हैं बल्कि देश के खजाने पर भारी बोझ भी पड़ता है। इस सबसे बचने के लिये नीति निर्माताओं ने लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने का विचार बनाया।
  • गौरतलब है कि देश में इनके अलावा पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनाव भी होते हैं किन्तु एक देश एक चुनाव में इन्हें शामिल नहीं किया जाता।
  • आपको बता दें कि एक देश एक चुनाव लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ करवाने एक वैचारिक उपक्रम है। यह देश के लिये कितना सही होगा और कितना गलत, इस पर कभी खत्म न होने वाली बहस की जा सकती है। लेकिन इस विचार को धरातल पर लाने के लिये इसकी विशेषताओं की जानकारी होना जरूरी है।
  • एक देश एक चुनाव की अवधारणा में कोई बड़ी खामी नहीं है, किन्तु राजनीतिक पार्टियों द्वारा जिस तरह से इसका विरोध किया जा रहा है उससे लगता है कि इसे निकट भविष्य लागू कर पाना संभव नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत हर समय चुनावी चक्रव्यूह में घिरा हुआ नजर आता है।
  • चुनावों के इस चक्रव्यूह से देश को निकालने के लिये एक व्यापक चुनाव सुधार अभियान चलाने की आवश्यकता है। इसके तहत जनप्रतिनिधित्व कानून में सुधार, कालेधन  पर रोक, राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण पर रोक, लोगों में राजनीतिक जागरूकता पैदा करना शामिल है जिससे समावेशी लोकतंत्र की स्थापना की जा सके।
  • यदि देश में ‘एक देश एक कर’ यानी GST लागू हो सकता है तो एक देश एक चुनाव क्यों नहीं हो सकता? अब समय आ गया है कि सभी राजनीतिक दल खुले मन से इस मुद्दे पर बहस करें ताकि इसे अमलीजामा पहनाया जा सके।

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