वक्त के साथ, स्वीकारें बदलाव,स्वस्थ व सक्रिय दिमाग के लिए.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यदि आपके दिमाग में लचीलापन होगा। वह हर परिवर्तन को स्वीकारने, अपनाने को तैयार होगा तो उसी के अनुरूप सही सोच के साथ काम करेगा। लेकिन अगर आप वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप अपने दिमाग को नहीं बदल पाएंगे, तो कठिनाई में फंस सकते हैं। कुछ ही समय पहले कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता हम सब देख चुके हैं। ऐसे में हमें तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए अपने संयम, संकल्प और अनुशासन से कोविड नियमों का पालन कर अपने साथ-साथ दूसरों को भी जागरूक करना होगा…!

इन दिनों पहाड़ों और अन्य पर्यटन स्थलों पर जमकर भीड़ जुट रही है। प्रधानमंत्री से लेकर विशेषज्ञ तक कह रहे हैं कि कोविड संबंधी नियमों का पालन करें, अन्यथा हमें तीसरी लहर का सामना करना पड़ सकता है और वह कैसी होगी कोई नहीं जानता। फिर भी लोग अधीरता में घरों से निकल कर जहां-तहां घूमने पहुंच रहे हैं और स्थिति बिगडऩे की आशंका को बल दे रहे हैं।

दरअसल, वे नहीं जानते कि स्वस्थ दिमाग के लिए दिमाग में लचीलापन चाहिए। लचीला दिमाग वह होता है जो एक ही तरह के विचार में फंस कर नहीं रहता और स्थितियों के बदलने के साथ बदलने के लिए तैयार रहता है। अगर आपका दिमाग नकारात्मक सोच में फंस जाए और हर चीज को नकारात्मक तरीके से देखना शुरू कर दे तो हम स्वयं के लिए परेशानियां खड़ी कर लेते हैं।

आज जब हम सारी सावधानियां ताक पर रखकर अनावश्यक रूप से घर से बाहर निकल गए हैं तो इसके पीछे हमारे दिमाग का अडिय़ल सोच है। यह उस समय तो ठीक लगती है लेकिन सही सोच की बात करें तो यह अर्थहीन लगती हे। चूंकि जीवन परिवर्तनशील है इसलिए हमें हर परिवर्तित स्थिति को अपनाने के लिए लचीला होने का संकल्प लेना होगा।

आवेगपूर्ण प्रतिक्रिया का मनोविज्ञान

मनोविज्ञान कहता है कि अगर किसी भी चीज को कुछ समय के लिए बंद किया जाता है और फिर जब उसे खोला जाता है तो प्रतिक्रिया काफी आवेगपूर्ण होती है। बस यही समय संयम बरतने का है, अनुशासन में रहने का है। पहले लाकडाउन के समय लोग कोरोना से डरे हुए थे। इसलिए लाकडाउन का भी गंभीरता से पालन किया था लेकिन दूसरी लहर को खतरनाक देखकर भी उन्हें लगता है कि कोरोना तो रहने वाला ही है और तीसरी लहर आने से पहले ही घूम-फिर लिया जाए।

इसलिए इन दिनों पहाड़ों पर सामान्य से भी ज्यादा भीड़ है। इन लोगों को देखकर दूसरों को भी घूम आने का मन हो रहा होगा। ऐसे में लोग या तो खुद पर दृढ़तापूर्वक संयम रखें या फिर प्रशासन कठोरता से नियंत्रण स्थापित करे, क्योंकि लोगों में अब कोरोना का डर कम हो रहा है।

तलाशें और दूर करें नकारात्मकता के कारण

अक्सर समाज की वजह से या परिवार के कारणों से या फिर बड़े होने पर हमारी नकारात्मक भावनाएं सामने आती हैं। एक छोटा बच्चा भी महसूस करता है कि जब मैं अपने निगेटिव इमोशंस दिखाता हूं तो पैरेंट्स की प्रतिक्रया अच्छी नहीं होती। उनकी कोशिश होती है कि बच्चा सिर्फ रुक जाए। अगर वह रोता है तो सिर्फ उसके चुप होने की फिक्र होती है। कोई यह नहीं समझता कि शायद उसकी कोई जरूरत है जिसे वह बताना चाह रहा है।

उसकी जरूरत समझ लेंगे, तो रोना अपने आप ही रुक जाएगा। अगर उसकी जरूरत वाजिब नहीं है, तो उसे प्रेम से समझाने का प्रयास करें। जरूरी यह है कि नकारात्मकता के कारणों को तलाशने की शुरुआत अपने से कर सकते हैं। एक बार कारणों तक पहुंच गए, तो विचार करके उन्हें दूर करने का उपक्रम कर सकते हैं। ध्यान रखें। आपके आचरण-व्यवहार का अनुकरण बच्चा भी करता है। आप जैसा व्यवहार करेंगे, वह भी वैसा ही करेगा।

भावनात्मक जरूरतों को जानें

महामारी आने पर लोग सबसे पहले सिर्फ जीवन-बसर के बारे में सोचते हैं। इसके बाद दूसरी स्टेज पर उन्हें लगता है कि हमारे साथ बहुत गलत हुआ है। जब वे उसके बारे में सोचने लगते हैं तो मानसिक स्वास्थ्य की समस्या उभर कर सामने आती है। पहले लाकडाउन के बाद मानसिक बीमारियों के मामलों का एकदम से बढ़ जाना यही बताता है। जिनके सामने केवल जीवन-बसर करने का प्रश्न है,

वे मानसिक स्वास्थ्य के बारे में नहीं सोच पाएंगे लेकिन जो लोग वित्तीय रूप से ठीक हैं वे अपनी स्थिति समझें। अपने स्तर पर कुछ क्रियाएं करें। रोज अपने विचारों को लिखें और जानें कि आप क्या सोच रहे हैं? इससे आपको अपनी भावनात्मक जरूरतों का पता चलता है और आप उन्हें पूरा कर सकते हैं। इसके बाद सामाजिक सहयोग काफी फायदेमंद साबित होता है। दोस्त और परिवार आपकी सहायता कर सकते हैं।

मनोविज्ञान का सफर

जब मैंने आइआइटी से बीटेक किया, पूरा तब तक तो साइकोलाजी जैसा शब्द या करियर मेरे दिमाग में नहीं था। लेकिन निजी अनुभवों से मुझे पता चल रहा था कि मानसिक स्वास्थ्य का हमारे जीवन और समाज पर काफी प्रभाव होता है। मैंने अपने परिवार में भी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी मुश्किलें देखी थीं। शैक्षणिक परिसरों में भावनात्मक सोच की परवाह नहीं की जाती, सिर्फ आइक्यू पर फोकस होता है कि आप नंबर कितने ला रहे हैं? कैसा परफॉर्म कर रहे हैं?

कैंपस में कोई इस पर बात नहीं करना कि आप भावनात्मक रूप से क्या महसूस कर रहे हैं? वहां से मुझे लगा कि मैं मानसिक स्वास्थ्य पर ही काम करूं। फिर मैंने क्लीनिकल साइकोलाजी के कोर्स किए और इस क्षेत्र में आ गया। आइआइटी के बाद मैंने जॉब भी की लेकिन फिर नौकरी छोड़ दी और दो-तीन महीने खुद को समय दिया कि मुझे भविष्य में क्या करना है? मुझे मानसिक स्वास्थ्य कॉमन फैक्टर लगा और मेरी इसके बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ी कि यह क्यों महत्वपूर्ण है और इसे कैसे ठीक रखा जा सकता है। यहीं से मनोविज्ञान की मेरी यात्रा शुरू हुई।

स्वस्थ व सक्रिय दिमाग के लिए जरूरी बातें

– नकारात्मक विचारों को सच न समझें।

– स्वयं की पहचान करें कि एक व्यक्ति के रूप में आप खुद को कैसा देखते हैं।

– चेतन मन को प्रेरित किया जा सकता है लेकिन जब तक अवचेतन मन दुरुस्त नहीं होगा तब तक कुछ भी नहीं बदलेगा।

– स्वस्थ दिमाग के लिए स्वस्थ शरीर आवश्यक है और स्वस्थ शरीर के लिए बुद्धिमत्ता से किया गया खानपान।

– शर्मिंदगी और पछतावे की सोच को जितनी जल्दी बाहर निकाल दें उतना ही अच्छा, मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह जहर है।

 

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