प्राचीन काल से ही भारत में नारी का सम्मान रहा हैः प्रो. सोमनाथ सचदेवा

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महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति पूर्णतया सजग होंः प्रो. दीप्ति धर्माणी
कुवि में आंतरिक शिकायत कमेटी द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित

श्रीनारद मीडिया वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक हरियाणा

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि भारत देश में प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक तौर पर नारी का बहुत सम्मान रहा है। हमारी इकलौती ऐसी संस्कृति है जहां पर नारी भगवान की वास्तविकता है। वे मंगलवार को कुवि की आंतरिक शिकायत कमेटी द्वारा सीनेट हॉल में उच्च शिक्षा संस्थानों में यौन उत्पीड़न को रोकना और उसका समाधान करना विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। इससे पहले दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यशाला का शुभारंभ किया गया।

कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां महिलाओं की भागीदारी न हो। कृषि क्षेत्र से लेकर विज्ञान तक ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां पर हमारी महिलाओं ने अपनी सफलता के कीर्तिमान न स्थापित किए हों।कुलपति प्रो. सोमनाथ ने कहा कि नारी के लिए सुरक्षित माहौल हम शासन (सरकार) की सोच से, प्रशासन (डीसी/एसपी/वीसी) के खौफ से व समाज के सहयोग से बना सकते हैं।

समाज का सहयोग सबसे आवश्यक है। किसी भी योजना को अ-सरकारी होने के लिए उसका असरकारी होना बहुत जरूरी है। गरीब, युवा, अन्नतदाता व नारी शक्ति पर ध्यान केन्द्रित कर हम 2047 के विकसित भारत के स्वप्न को पूरा कर सकते हैं। बेटों को शिक्षित व संवेदनशील बनाना बहुत जरूरी है। बेटियों को अपने आप पर विश्वास रखना होगा।

उन्होंने सभी के लिए एक सुरक्षित, समावेशी और सम्मानजनक शैक्षणिक वातावरण सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालय की अटूट प्रतिबद्धता पर जोर दिया। जागरूकता, संवेदनशीलता और सक्रिय उपायों की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, उन्होंने संकाय, छात्रों और कर्मचारियों से उत्पीड़न के प्रति शून्य सहिष्णुता की संस्कृति को बढ़ावा देने का आग्रह किया।

उन्होंने गरिमा और न्याय को बनाए रखने के लिए विश्वविद्यालय के समर्पण की पुष्टि की, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रत्येक व्यक्ति संस्थान के भीतर सुरक्षित और सशक्त महसूस करता है। लिंग अंतर के आंकड़ों का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि लिंग अंतर सूचकांक में भारत की स्थिति अभी भी बहुत अच्छी नहीं है। जिसके लिए हमें प्रयास करने होंगे।

कार्यशाला की मुख्य अतिथि चौधरी बंसी लाल यूनिवर्सिटी भिवानी की कुलपति प्रो. दीप्ति धर्माणी ने इस तरह की प्रभावशाली जागरूकता पहल के आयोजन के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की सराहना की। उन्होंने कहा कि महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति पूर्णतया सजग हों और इनका सदुपयोग करें। महिलाएं अपनी शक्तियों को पहचाने और इसका सदुपयोग कर समाज को बिखराव से समेटें।

वर्तमान युग में पुरुषों और महिलाओं दोनों के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने हमारे अधिकारों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को समझने और उनमें संतुलन बनाने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि केवल इस जागरूकता और जिम्मेदारी के माध्यम से ही यौन शोषण और लैंगिक भेदभाव से संबंधित मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित किया जा सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि सुरक्षा के लिए सहानुभूति आवश्यक है।

कार्यशाला की मुख्य वक्ता, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. वागेश्वरी देसवाल ने उच्च शिक्षा संस्थानों में यौन उत्पीड़न को रोकने और उससे निपटने के लिए कानूनी ढांचे पर जोर दिया। उन्होंने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 जैसे विभिन्न कानूनों के प्रमुख प्रावधानों पर चर्चा की और सुरक्षित शैक्षणिक वातावरण सुनिश्चित करने में संस्थानों की भूमिका और जिम्मेदारियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने पीड़ितों के लिए जवाबदेही और समर्थन की संस्कृति बनाने के लिए आंतरिक शिकायत समितियों (आईसीसी), जागरूकता कार्यक्रमों और नीति प्रवर्तन के महत्व पर जोर दिया।

उन्होंने यह भी कहा कि उत्पीड़न और भेदभाव से मुक्त परिसर को बढ़ावा देने के लिए छात्रों, शिक्षकों और प्रशासन की ओर से सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता है। उन्होंने संगठन और असंगठित क्षेत्र में कानून एवं पॉश एक्ट के बारे में भी बात की।

आंतरिक शिकायत कमेटी की अध्यक्ष प्रो. सुनीता सिरोहा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया व कार्यशाला की रूपरेखा के बारे में विस्तार से बताया। रसायन विज्ञान विभाग के डॉ. रमेश कुमार ने मंच संचालन किया। प्रो. राजश्री खरे, सदस्य आईसीसी और प्रिंसिपल महाराणा प्रताप नेशनल कॉलेज, मुलाना ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों के लगभग 160 शिक्षकों ने भाग लिया।

इस मौके पर प्रो. प्रीति जैन, प्रो. सुनीता सिरोहा, प्रो. अनीता दुआ, प्रो. कुसुम लता, डॉ. आशिमा गक्खड़, डॉ. सुषमा शर्मा, और प्रो. अनीता भटनागर, डीन लॉ संकाय, प्रो. निर्मला चौधरी, डॉ. सुशीला चौहान, डॉ. नीलम रानी, डॉ. दीपक शर्मा, डॉ. शालू, सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

विभिन्न तकनीकी सत्र आयोजित।
उद्घाटन सत्र के बाद पहला तकनीकी सत्र हुआ, प्रो. आशिमा गक्खड़, प्रिंसिपल, दयाल सिंह कॉलेज और प्रो. नीलम रानी, वाणिज्य विभाग केयूके सत्र के रिसोर्स पर्सन थे। प्रो. प्रीति जैन, डीन लॉ फैकल्टी और निदेशक यूजीसी-एचआरडीसी और प्रो. अनीता दुआ, निदेशक डब्ल्यूएसआरसी, केयूके और सदस्य आईसीसी ने सत्र की अध्यक्षता की।

दूसरे सत्र में प्रो. मंजूला चौधरी, निदेशक, सेंटर फॉर डिस्टेंस एंड ऑनलाइन एजुकेशन, केयूके सम्मानित वक्ता थे। डॉ. सुषमा शर्मा, सदस्य आईसीसी और प्रो. कुसुम लता, चीफ वार्डन, केयूके ने सत्र की अध्यक्षता की। समापन सत्र में प्रो. लवलीन मोहन, रजिस्ट्रार, चौधरी रणबीर सिंह विश्वविद्यालय, जींद ने समापन भाषण प्रस्तुत किया। समग्र धन्यवाद डॉ. रमेश कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, रसायन विज्ञान विभाग और इस एक दिवसीय कार्यशाला के आयोजन सचिव द्वारा प्रस्तुत किया गया।

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