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ट्रेन के इंजनों में शौचालयों की कमी के कारण महिला ट्रेन चालकों को होती हैं परेशानियां

ट्रेन के इंजनों में शौचालयों की कमी के कारण महिला ट्रेन चालकों को होती हैं परेशानियां

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ट्रेन के इंजनों में शौचालयों की कमी के कारण कुछ महिला ट्रेन चालक (Women Loco Pilot) सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं, तो कुछ पानी पीना कम कर देती हैं. कुछ ऐसी भी हैं, जो अपने सपनों से समझौता कर कार्यालय में बैठने का विकल्प चुनती हैं. शौचालय की सुविधा केवल 97 ट्रेन इंजनों में है. महिला लोको चालकों का कहना है कि इसकी वजह से उन्होंने ‘समझौता करना’ सीख लिया है.

माहवारी के दौरान महिला लोको पायलट को होती है अतिरिक्त समस्या

सुविधाओं की कमी स्पष्ट रूप से उनके पुरुष समकक्षों के लिए भी एक समस्या है, लेकिन महिला चालकों को माहवारी के दौरान अतिरिक्त समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इस दौरान ज्यादातर महिला चालक शौचालय नहीं होने के कारण छुट्टी पर जाना पसंद करती हैं.

शौचालय की समस्या पुरुष-महिला दोनों के लिए समान

छोटी दूरी पर ट्रेन चलाने वाली एक सहायक लोको पायलट ने कहा, ‘शौचालय की कमी की समस्या पुरुषों और महिलाओं दोनों में आम है. हालांकि, एक महिला पेशेवर के रूप में मुझे यह बहुत अपमानजनक लगता है कि हर बार माहवारी के दौरान मुझे छुट्टी लेनी पड़ती है.’

शौचालयों की कमी प्रतिदिन एक जंग की तरह

उन्होंने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, ‘उन दिनों में बिना शौचालय गये ट्रेन चलाने का विचार ही कष्टदायी लगता है. हालांकि, रेलवे ने सभी व्यवस्थाएं की हैं, चाहे वह काम के समय के मामले में हो या हमें छुट्टी देने के मामले में. लेकिन, शौचालयों की कमी प्रतिदिन एक जंग की तरह है, जो हमें काम के घंटों के दौरान झेलनी पड़ती है. मैं बस इसे नियंत्रित करने की कोशिश करती हूं.’

महिला लोको पायलटों को है इस बात का डर

एक अन्य युवती ने बताया कि ट्रेन चलाने, दुर्गम इलाकों में जाने और पश्चिमी घाट रेलवे लाइन पर अपने कौशल का प्रदर्शन करने संबंधी अपने बचपन के सपनों को पूरा करने के लिए उसने ट्रेन चालक की योग्यता हासिल की. उन्होंने कहा, ‘लेकिन पांच साल की अपनी नौकरी में वह अधिकांश समय कार्यालय में बैठकर बिताती हैं. उन्हें डर है कि अगर वह ट्रेन में शौचालय के बिना गाड़ी चलाने की कोशिश करेंगी, तो उन्हें असहज स्थिति का सामना करना पड़ेगा.’

6 साल पहले इंजनों में शौचालय बनाने का काम शुरू हुआ

अधिकारियों ने कहा कि 6 साल पहले तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने ‘बायो-टॉयलेट’ से लैस पहले लोकोमोटिव की शुरुआत की थी, लेकिन अब तक केवल 97 इंजनों में ही ‘बायो-टॉयलेट’ लगाये गये हैं. भारतीय रेलवे के पास 14,000 से अधिक डीजल इलेक्ट्रिक इंजन हैं और 60,000 से अधिक लोको पायलटों में से लगभग 1,000 महिलाएं हैं, जिनमें से अधिकांश कम दूरी की मालगाड़ियों को चलाती हैं.

97 इलेक्ट्रिक लोको में बने हैं शौचालय

रेलवे ने एक बयान में कहा कि वर्ष 2013 में रेल बजट की घोषणा और लगातार मांग के बाद ‘चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स’ (सीएलडब्ल्यू) द्वारा बनाये जा रहे इलेक्ट्रिक इंजनों में वाटर क्लोसेट (शौचालय) उपलब्ध कराने का निर्णय लिया गया. इसमें कहा गया है कि अब तक 97 इलेक्ट्रिक लोको में वाटर क्लोसेट लगाये जा चुके हैं.

महिलाएं सैनिटरी पैड का करती हैं इस्तेमाल

नाम नहीं जाहिर करने का आग्रह करते हुए एक अन्य महिला लोको पायलट ने कहा, ‘इसमें यार्ड में प्रतीक्षा करना, यात्रा की तैयारी करना और फिर वास्तव में मालगाड़ी को 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पांच से सात घंटे के बीच कहीं भी चलाना शामिल है. इनमें से किसी भी स्थान पर महिलाओं के लिए कोई सुविधा नहीं है. अनहोनी की आशंका में मैं सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हूं.’

मालगाड़ियों में शौचालय की सुविधा नहीं

उनकी सहयोगी ने बताया कि मालगाड़ियों में शौचालय की सुविधा नहीं है, लेकिन यात्री ट्रेनों की स्थिति भी खराब है, क्योंकि उनके पास शौचालय का उपयोग करने के लिए दूसरे डिब्बे में चढ़ने का पर्याप्त समय नहीं होता है. ‘इंडियन रेलवे लोको रनिंग मेन्स ऑर्गनाइजेशन’ (IRLRMO) के पूर्व अध्यक्ष आलोक वर्मा ने इस मुद्दे पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से संपर्क किया और कहा कि रेलवे लोको पायलटों (पुरुषों और महिलाओं दोनों) को उनके मूल अधिकारों से वंचित कर रहा है.

यह अमानवीय है: एनएचआरसी

वर्मा ने कहा, ‘इस पर आयोग को अपने जवाब में रेलवे ने कहा था कि वह सभी ट्रेनों में शौचालय स्थापित करेगा. हालांकि, एनएचआरसी के आदेश को लागू नहीं किया गया है. एक लोको पायलट कम से कम 10-12 घंटे चालक के रूप में बिताता है और अगर यात्रा जारी है, तो राहत मिलने की कोई संभावना नहीं है. वे न तो खाना खाते हैं और न ही शौचालय जाते हैं. यह अमानवीय है.’

महिला लोको पायलट कार्यालयों में ही बैठती हैं

उन्होंने कहा, ‘जिन महिलाओं को लोको पायलट और सहायक लोको पायलट के रूप में भर्ती किया जाता है, वे या तो कार्यालयों में बैठती हैं या मुख्य रूप से शौचालय की कमी के कारण छोटी यात्रा पर जाती हैं. कल्पना करें, उनकी दुर्दशा क्या होती होगी.’

इंजनों में शौचालय बनवाने की लड़ाई लंबी: एमएन प्रसाद

‘ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (AILRSA) के महासचिव एमएन प्रसाद के मुताबिक, इंजनों में शौचालय बनवाने की लड़ाई लंबी है. प्रसाद ने कहा, ‘अधिक से अधिक महिलाओं के काम करने से इसका महत्व बढ़ जाता है. यह सभी लोको पायलटों के लिए कष्टदायी है, लेकिन महिलाओं के लिए अधिक कष्टप्रद है. हम दबाव बना रहे हैं, लेकिन इसका कुछ भी हल नहीं निकला है.’

क्या है रनिंग रूम

उन्होंने कहा कि वास्तव में उन स्टेशनों पर भी महिलाओं के लिए अलग शौचालय नहीं है, जहां पुरुषों के लिए ‘रनिंग रूम’ हैं. ‘रनिंग रूम’ ऐसे स्थान होते हैं, जहां लोको पायलट, सहायक लोको पायलट और माल गार्ड सहित चालक दल ड्यूटी के घंटों के बाद या पाली के बीच में अपने गृह स्टेशन के अलावा अन्य स्टेशनों पर आराम करते हैं.

पश्चिमी देशों में लोको पायलटों को मिलती है यह सुविधा

ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोप में लोको पायलटों को हर चार घंटे में 20-25 मिनट का ब्रेक मिलता है. इन क्षेत्रों में, लोको पायलट प्रति सप्ताह 48 घंटे ड्यूटी करते हैं. भारत में यह संख्या 54 घंटे तक बढ़ जाती है. रेलवे अधिकारियों ने कहा कि महिला लोको पायलटों को उनकी सुविधा के अनुसार ड्यूटी सौंपी जाती है.

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