*तीज व कजरी पर जलेबा खाकर महिलाएं गाएंगी कजरी, रखेंगी अखंड सौभाग्य और संतान के लिये निर्जला व्रत*
*श्रीनारद मीडिया / सुनील मिश्रा वाराणसी यूपी*
*वाराणसी* / कजरी तीज जिसे हरितालिका तीज सतवा अथवा सातुड़ी तीज भी कहा जाता हैं। ये हिन्दू कैलेंडर के भाद्रपद (भादो) महीने के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाई जाती है। इस वर्ष 25 अगस्त को महिलाएं कजरी तीज का व्रत रखेंगी। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिनों को पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि-आरोग्य तथा संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस व्रत का पारण चंद्रमा के दर्शन और उन्हें अर्घ्य देने के बाद किया जाता है। इस दिन सुहागिनें निर्जलाव्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करती हैं। इससे माता पार्वती और भगवान शिव प्रसन्न होकर सुहागिनों की मनोकामना को पूर्ण करते हैं।कजरी तीज के एक दिन पहले रतजगा देने का रिवाज भी है। कजरी तीज का व्रत रखने की पूर्व संध्या पर सुहागिनें जलेबा खाएंगी। इसके बाद रतजग्गा करेंगी। इस दौरान वह कजरी गाएंगी। ढोलक-झाल संग महिलाएं एकजुट होकर पूरी रात नृत्य-संगीत करती हैं। फिर अगले दिन सुबह व्रत रखती हैं। इस पर्व में कजरी गीत का बड़ा महत्व हैं, जो लोकजीवन पर आधारित होते हैं।कहते हैं प्राचीन काल में मध्य भारत के क्षेत्र में कजली नामक वन था। जहा के शासक का नाम था दादुरै। इसी क्षेत्र में रहने वाले लोग भाद्रपद महीने में कजली गीत गाते थे। इस लोकगीत के कारण इस कजली क्षेत्र की ख्याति चारो ओर फ़ैल गई। कालान्तर में यहाँ के शासक दादुरै का देहांत होने पर उनकी नागमती जीवित सती हो जाती हैं। इससे वहां की जनता में व्यथा और दुःख की भावना भर गईं और नागमती व् दादुरै के जन्म अवसर पर कजरी गीत गाने की प्रथा की शुरुआत हुई। कजरी तीज को हरतालिका तीज भी कहा जाता हैं। हरत का अर्थ होता है हरण करना, आलिका शब्द का अर्थ हैं सहेली, सखी. कहते हैं। माता पार्वती की सखी उनका हरण कर उनके पिता के क्षेत्र के अधीन आने वाले जंगल में ले गईं थी और इसी हरण के कारण इसे हरतलिका/हरतालिका तीज भी कहा जाता हैं। माना जाता हैं, इस तीज का व्रत रखने से स्त्रियाँ शिवलोक को प्राप्त कर लेती हैं। व्रत रखने वाली नारी व्रत का संकल्प लेकर अपने घर की पूर्ण सफाई कर पूजा की सामग्री तैयार रखती हैं। इसके व्रत में पूरी तरफ निर्जला रहना होता हैं। साथ ही स्नानादि करने के पश्चात् स्वेत वस्त्र धारण कर शिव पार्वती की पूजा करने का विधान हैं। अकसर कजरी तीज में सुबह अथवा शाम को पूजा-पाठ घर पर ही किया जाना चाहिए।