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जीविका आश्रम जबलपुर में प्रकृति और संस्कृति पर कार्यशाला का होगा आयोजन! - श्रीनारद मीडिया

जीविका आश्रम जबलपुर में प्रकृति और संस्कृति पर कार्यशाला का होगा आयोजन!

जीविका आश्रम जबलपुर में प्रकृति और संस्कृति पर कार्यशाला का होगा आयोजन!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


वर्तमान समय में, प्रकृति के साथ हमारे सम्बन्ध कहीं-न-कहीं छूटते-टूटते नजर आ रहे हैं। इस अलगाव को समझना इतना भी मुश्किल नहीं है, परन्तु दुर्भाग्य से इससे उभरने के रास्ते कम ही दिखाई देते हैं। इन समस्याओं के सामने खड़े होकर अपने भावों को व्यक्त करने में प्रयोग में आने वाली ‘शब्दों’ और ‘भाषाओं’ की सीमितता स्पष्ट रूप से महसूस होती है। इस विवाद का निवारण शायद हम व्यक्तिगत रूप से नहीं, बल्कि साझेदारी में, सामूहिक रूप में ही खोज पाएं।

आज की युवा पीढ़ी में पर्यावरण को लेकर नए विचार उभर रहे हैं। लेकिन कई कारणों से हमारी प्रतिक्रियाएं संदर्भ से बिल्कुल अलग हैं। हमारे जवाबों में हम आज की विभिन्न नई तकनीकों और प्रगति की बातें ही कर पाते हैं, और ‘कचरा प्रबंधन’, ‘स्वच्छ ऊर्जा’, ‘जल-संग्रहण’, जैसे विदेशों से पाये शब्दों, संकल्पनाओं और संवादों तक सीमित रह जाते हैं। शायद हमें अपने संदर्भ को जानकार, समाज में अपनी समझ पाने के तरीके खोजने व गढ़ने होंगे। जिसका जैसा संदर्भ, उसकी वैसे प्रतिक्रिया!

भारत के कई प्रांतों में अभी भी प्रकृति के साथ स्वर मिलाकर जीवन जीने की व्यवस्था है। लेकिन ऐसे समाज स्वयं ‘प्राकृतिक’ होने का कोई ढोल नहीं पीटते। ऐसे समाजों ने बिना प्रकृति को हानि पहुंचाए बेहतर-से-बेहतर तरह के कपड़े, बर्तन, घर जैसी कई जरुरी और गैर-जरुरी आवश्यकताओं की पीढ़ियों से पूर्ति की है। ऐसे समाजों में लोग कारीगरी के माध्यम से प्रकृति और संस्कृति के साथ अपने संबंध को व्यक्त कर पाते हैं। ऐसा रिश्ता जहाँ वे प्रकृति से अलग नहीं बल्कि एकरूप हैं। वर्तमान के विकास के ओछे दिखावे का ऐसे समाज सहज ही जवाब देते हैं।

शायद प्राकृतिक और कई अन्य संकटों का निवारण हमारी संस्कृति में कहीं छिपा हो! ऐसे समाज की प्रतिक्रियाओं को समझकर हम संकट को तो बेहतर समझ ही सकते हैं, साथ ही कुछ सार्थक जवाबों तक भी पहुँच सकते हैं। हमारी संस्कृति को हमसे इतना दूर कर दिया गया है कि हम ऐसे अनुभवों और ज्ञान को पिछड़ी नजरों से ही देख पाते हैं। इस सम्मलेन रुपी कार्यशाला में ऐसे संबंधों के टूटे धागे को वापिस जोड़ने की एक कोशिश है। इस टूटे धागे को कसने में पड़ने वाली गाँठों के दरम्यान शायद हम कुछ नए निवारण की खोज भी कर पाएं।

प्रकृति और संस्कृति कार्यशाला
२6 सितंबर से 2 अक्टूबर, 2023
जीविका आश्रम, इंद्राना, जबलपुर (म.प्र.)

अधिक जानकारी और पंजीयन के लिए:

https://forms.gle/x499jPL6d9ZZk4US6

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