विश्व स्तनपान सप्ताह- स्तनपान के महत्व को लेकर चलाया जा रहा है जागरूकता अभियान
कुपोषण और दस्त से बचाने में स्तनपान की महत्वपूर्ण भूमिका: सिविल सर्जन
मां का दूध नवजात शिशुओं के लिए श्रेष्ठ ही नहीं बल्कि जीवन रक्षक: डॉ ऋचा झा
बोतलबंद दूध के बदले मां का पहला गाढ़ा दूध ही नवजात शिशुओं को देना चाहिए: डॉ प्रेम प्रकाश
श्रीनारद मीडिया, पूर्णिया,(बिहार):
माताओं में स्तनपान के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से अगस्त माह के प्रथम सप्ताह को पूरे विश्व में स्तनपान सप्ताह के तौर पर मनाया जाता है। इस पूरे सप्ताह माताओं को स्तनपान कराने की सलाह एवं इसके लाभ से अवगत कराया जाता है। राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय सह अस्पताल परिसर स्थित प्रसूति रोग विभाग द्वारा आयोजित जन जागरूकता कार्यक्रम में जीएमसीएच में महिला रोग विभागाध्यक्ष डॉ ऋचा झा, शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ प्रेम प्रकाश, सामुदायिक चिकित्सा के डॉ अभय कुमार, डॉ शान अहमद, डॉ कुमार हिमांशु, ए एन एम स्कूल की प्राचार्या ऋचा ज्योति, पिरामल स्वास्थ्य के आकांक्षी जिला कार्यक्रम अधिकारी संजीव सिंह, सनत गुहा, प्रशांत कुमार, सिफ़ार के धर्मेंद्र रस्तोगी, प्रसव कक्ष की प्रभारी जीशा केएच, जीएनएम अंशु कुमारी सहित कई अन्य लोग उपस्थित थे। इस मौके पर एएनएम स्कूल की छात्राओं द्वारा स्तनपान को लेकर नुक्कड़ नाटक का आयोजन कर स्थानीय धात्री और गर्भवती महिलाओं सहित अन्य अभिभावकों को जागरूक किया गया।
कुपोषण और दस्त जैसी बीमारियों से बचाने में स्तनपान की महत्वपूर्ण भूमिका: सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी ने बताया कि नवजात शिशुओं के लिए मां का दूध अमृत के समान होता है। दरअसल स्तनपान नवजात शिशुओं को कुपोषण और दस्त जैसी बीमारियों से बचाता है। सबसे अहम बात यह है कि स्तनपान को बढ़ावा देकर शिशु मृत्यु दर में कमी लायी जा सकती है। शिशुओं को जन्म से छः महीने तक केवल मां का ही दूध पिलाने के लिए अस्पतालों में धात्री माताओं को इस सप्ताह विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिले के सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में शिशुओं के जन्म के बाद माताओं को इसके लिए प्रोत्साहित एवं जागरूक किया जा रहा है।
मां का दूध नवजात शिशुओं के लिए श्रेष्ठ ही नहीं बल्कि जीवन रक्षक: डॉ ऋचा झा
जीएमसीएच के महिला रोग विभाग की अध्यक्ष डॉ ऋचा झा ने कहा कि विश्व स्तनपान सप्ताह के दौरान प्रसूति विभाग में धात्री माताओं को स्तनपान कराने के विशेष रूप से प्रेरित किया जा रहा है। कहा कि स्तानपान शिशु जन्म के बाद एक स्वाभाविक क्रिया है। धात्री माताओं के द्वारा अपने नवजात शिशुओं को स्तनपान कराया जाता है। लेकिन पहली बार मां बनने वाली माताओ को शिशु जन्म के बाद स्तनपान कराने में दूसरे महिलाओं का सहयोग लेना पड़ता है। मालूम हो कि स्तनपान के बारे में सही ज्ञान के अभाव के कारण बच्चों में कुपोषण एवं संक्रमण से दस्त जैसी बीमारी हो जाती है। शिशु के लिए स्तनपान संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति नवजात बच्चे में नहीं होती है। यह शक्ति मां के दूध से शिशु को मिलती है।
बोतलबंद दूध के बदले मां का पहला गाढ़ा दूध ही नवजात शिशुओं को देना चाहिए: डॉ प्रेम प्रकाश
जीएमसीएच में शिशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ प्रेम प्रकाश ने कहा कि मां के दूध में लेक्टोफोर्मिन नामक तत्त्व होता है, जो बच्चे की आंत में लौह तत्त्व को बांध लेता। लौह तत्त्व के अभाव में शिशु की आंत में रोगाणु पनप नहीं पाते है। मां के दूध से आए साधारण जीवाणु बच्चे की आंत में पनपते हैं और रोगाणुओं से प्रतिस्पर्धा कर उन्हें पनपने नहीं देते।
मां की दूध में रोगाणु नाशक तत्त्व होते हैं। मां की आंत में पहुंचे रोगाणु, आंत में स्थित विशेष भाग के संपर्क में आते हैं। जो उन रोगाणु-विशेष के विरुद्ध प्रतिरोधात्मक तत्त्व बनाते हैं। यह तत्त्व एक विशेष नलिका थोरासिक से सीधे मां के स्तन तक पहुंचता और दूध के द्वारा बच्चे के पेट में आसानी से पहुंच जाता है। सबसे अहम बात यह है कि बोतलबंद दूध के बदले मां का पहला गाढ़ा दूध ही अपने नवजात शिशुओं को देना चाहिए। ताकि रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो सके।
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