विश्व पर्यटन दिवस पर परिचर्चा

 

 

विश्व पर्यटन दिवस पर परिचर्चा
: तीतिरा तथा पपौर को पुरातात्विक स्थल घोषित कर पर्यटन स्थल बनाया जाय ।
25 सौ वर्ष पूर्व की पुरातात्विक साक्ष्य विद्यमान ।
भारतीय पुरातत्व विभाग के परीक्षण उत्खनन प्रतिवेदन से भी पुष्टि ।

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श्रीनारद मीडिया, जीरादेई, सीवान (बिहार):

सीवान जिले के जीरादेई प्रखण्ड क्षेत्र के तीतिर स्तूप स्थित बौद्ध मंदिर परिसर में मंगलवार को सिवान तीतिर स्तूप बौद्ध बिहार विकास मिशन की बैठक की गई तथा इसको पुरातात्विक स्थल घोषित कर पर्यटन स्थल बनाने को ले परिचर्या आयोजित की गयी । मिशन के संस्थापक कृष्ण कुमार सिंह ने बताया कि पपौर वर्ष 2015 तथा तीतिरा वर्ष 2018 में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा परीक्षण उत्खनन किया गया तथा दोनों जगहों पर 25 सौ वर्ष पूर्व का पुरातात्विक साक्ष्य ,शिलालेख आदि मिला फिर भी पुरातात्विक स्थल घोषित न होना जिलेवासियों के उम्मीदों को मायूस करता है । उन्होंने कहा कि इन स्थलों को पुरातात्विक स्थल घोषित होने से जिला का सम्मान व गौरव बढ़ेगा । मिशन के सदस्य ललितेश्वर कुमार ने कहा कि

यहां महात्मा बुद्ध से जुड़े अनेकों स्थल व उदाहरण आज विद्धमान है जिसको देखने के लिए न केवल भारतीय बल्कि अनेकों विदेशी पर्यटक भी आते रहते है।जरूरत है तो बस सरकारी सहयोग की ।उन्होंने बताया कि सरकारी उपेक्षा के कारण ही सीवान अभी तक दुनिया के मानचित्र पर नही चढ़ सका,नहीं तो यहां के इतिहास व अन्य स्थल सीवान को अब तक कहा से कहा ले गए होते। मिशन के सदस्य अशोक राय ने बताया कि पपौर गांव प्राचीन बौद्धकालीन मल्ल जनपद की राजधानी पावा है। ऐतिहासिक तथ्यों, किदवंतियों व समय-समय पर मिले ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि भगवान गौतम बुद्ध ने अपने निर्वाण प्राप्ति के पूर्वार्ध में यहां पर काफी समय व्यतीत किया था उन्होंने बताया कि सर्वप्रथम डॉ होय नामक अंग्रेज विद्वान ने पपौर को पावा के रूप में खोज की थी।उन्होंने यहां पर तांबे के कुछ इंडो-बैक्टेरियन सिक्कों को भी खोजा था मिशन के सदस्य

शिवम कुमार राजा ने कहा कि तीतिर स्तूप जिसका परीक्षण उत्खनन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पटना अंचल के सहायक पुरातत्वविद शंकर शर्मा के नेतृत्व में 20 जनवरी 2018 से 20 फरवरी 2018 तक कराया गया जिसमें प्रचुर मात्रा में पुरातात्विक साक्ष्य मिला । जैसे एंबीपीडब्ब्ल्यू ,धूसर मृद्भांड, टेराकोटा की दर्जनों मुर्तिया ,स्टाम्प ,टेराकोटा के खिलौने ,धूपदानी ,चीलम, पीली मिट्टी से बना छोटा स्तूप जैसा आवरण ,शीशा की गोली ,छोटा शिलालेख (जिस पर किसी लिपि में कुछ अंकित है )मौर्य कालीन ईंट से निर्मित पीलर साथ ही अन्वेषण के क्रम में मौर्य ,कुषाण व गुप्तकाल के मिश्रित ईंटो से निर्मित भवनावशेष ,तथा दो सौ फीट लम्बी दीवार की नींव तथा 30 फीट लम्बी 4 फीट चौड़ा दीवाल का अवशेष मिला ।
रजनीश कुमार मौर्य ने बताया
इस स्थल की विशेष महता का खुलासा पटना में बिहार सरकार के कला एवम संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित इंडियन आर्किलॉजिकल सोसाइटी ,इंडियन प्री हिस्ट्री एवम क्वाटनारी सोसाइटी के त्रिदिवसीय संयुक्त अधिवेशन ( 6 से 8 फरवरी 2019)में हुआ ।यह अधिवेशन बिहार की धरती पर पहली बार हुआ । इसमें तीतिरा स्तूप के परीक्षण उत्खनन कर्ता पुरतात्विद शंकर शर्मा ने अपना आलेख प्रस्तुत किया जिसका शीर्षक था “उतरी बिहार में पुरातात्विक उत्खनन में प्राप्त बाढ़ के अवशेष का प्रमाण “श्री शर्मा ने बताया कि गत वर्ष 2018 में तीतिरा,जीरादेई का परीक्षण उत्खनन में पुरातात्विक साक्ष्य के रूप में बाढ़ के स्तर का मिलना पूरी उत्तरी बिहार के गुप्तयुगीन पुरातात्विक सन्निवेश के पतन के कारण को उजागर करता है । वही दरौली के दोन में प्राचीन तारा देवी का प्रतिमा होना भी बौद्ध स्थल को जोड़ता है । ई अंकित मिश्र ने कहा कि पुरातात्विक साक्ष्यों के वावजूद भी केंद्र व राज्य सरकार को उदासीन रहना घोर आश्चर्य प्रतीत होता है ।अगर सिवान को बौद्ध सर्किट से जोड़ दिया जाय तो स्वतः सिवान का विकास आरम्भ हो जाएगा ।इस मौके पर डॉ प्रेम शर्मा , माधव शर्मा , इमाम हुसैन ,सखिचन्द साह , हरिशंकर चौहान आदि ने भी अपना विचार व्यक्त किया ।

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