गलत खान-पान कैंसर की दस्तक,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
चार फरवरी शुक्रवार को विश्व कैंसर दिवस मनाया जा रहा है। कैंसर बीमारी को लेकर स्वास्थ्य विभाग की तरफ से लोगों को जागरूक किया जा रहा है। जिला नागरिक अस्पताल में सप्ताह के हर शनिवार को ओपीडी होती है। मरीजों की जांच के बाद हायर सेंटर रेफर किया जाता है। जिले में अब कैंसर मरीजों का आंकड़ा 542 तक पहुंच गया है। प्रतिमाह 20 से 25 नए मरीज सामने आ रहे हैं। कैंसर मरीजों के लिए सरकार की तरफ से निशुल्क बस पास की सुविधा दी गई है।
इस बारे में कैंसर मरीजों की ओपीडी देख रहे स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सक रमेश सब्रवाल से बातचीत की गई। उन्होंने बताया कि कैंसर मरीजों का आंकड़ा अब बढ़ रहा है। इनमें पुरुषों में गले का मुंह का कैंसर फेफड़े का कैंसर है, जबकि महिलाओं में स्तन कैंसर व बच्चेदानी कैंसर के मरीज सामने आ रहे हैं। सिगरेट व तंबाकू के सेवन करने से भी यह बीमारी ज्यादा फैल रह है।
बीमारी के लक्षण
आवाज का बदलना
खाने पीने में दिक्कत होना
खांसी होना, बलगम आना, पेशाब में खून आना।
स्तन या शरीर पर कहीं भी गांठ जिसमें दर्द ना हो रहा हो ऐसा महसूस होना।
ये बरते सावधानी
नियमित व्यायाम करना
साधा भोजन लेना
वजन को कंट्रोल रखना
जिला नागरिक अस्पताल के सर्जन डा. आरडी चावला ने बताया फास्ट फूड भोजन खाने से इस बीमारी के शरीर में आने का ज्यादा खतरा रहता है। इस बीमारी से बचाव को लेकर साधा व ताजा भोजन खाएं। गलत खाना खाने से कैंसर की बीमारी पैदा होती है। इस समय गले व मुंह के कैंसर के मरीजों की संख्या ज्यादा है। जिले में कुल 542 कैंसर मरीजों में दो चार व नौ साल के बच्चे भी हैं, एक बच्चे की तो आंख में कैंसर है।
वहीं कैंसर मरीजों में पुरुषों की संख्या ज्यादा है। इस वर्ष अब तक दो माह में कैंसर के नए मरीजों की संख्या 26 तक हो गई है। डा. चावला ने बताया कि बीमारी के लक्षण नजर आने पर स्वास्थ्य केंद्रों पर पहुंचकर जांच करवाएं। शुरूआत में ही बीमारी का पता चलने पर इलाज संभव है।
पिछले कुछ दशकों से समूची दुनिया में कैंसर के मामलों में लगातार बढ़त जारी है। विश्व में बड़ी संख्या में इससे मौतें भी हो रही हैं। यह बात और है कि कोरोना के शोर के बीच यह आंकड़ा दब गया है। अनेक वैज्ञानिक परीक्षणों ने सिद्ध किया है कि संतुलित, प्राकृतिक भोजन के सेवन और जीवनशैली के प्राकृतिक तौर-तरीके अपना कर कैंसर तथा अन्य गैर-संक्रमणीय बीमारियों के अधिकांश मामलों को काबू में किया जा सकता है। इलाज से एक बार चंगा हो जाने के बाद दोबारा कैंसर नहीं होगा, इसकी गारंटी नहीं है। इसीलिए कैंसर से बचाव के लिए इलाज से अधिक जोर रोकथाम के उपायों पर रहता है।
सामान्य कोशिकाओं से अलग कैंसर कोशिकाओं का निश्चित पैटर्न नहीं होता। एकबारगी रोग लगने पर कैंसर की कोशिकाओं में बेहिसाब इजाफा होना शुरू हो जाता है और शरीर के अन्य हिस्से संक्रमित हो जाते हैं। ये उन व्यक्तियों पर पहले वार करती हैं जिनका रोग प्रतिरक्षण तंत्र किन्हीं भी कारणों से पहले से कमजोर हो।
अत: कैंसर से बचाव में इम्युनिटी को मजबूत करना सवरेपरि माना जाता है। कैंसर कोशिकाएं सामान्य कोशिकाओं की रोगविरोधी क्षमता को नष्ट कर देती हैं। व्यापक तौर पर शरीर के जिस अंग की गतिशीलता अवरुद्ध हो जाए वहां कैंसर के आसार बनने लगते हैं। इसीलिए शरीर के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग को हरकत में रखना चाहिए। कैंसर से बचे रहने के लिए व्यायाम, योग, आसन आदि के नियमित अभ्यास पर जोर देने के पीछे यही आशय है।
हमारी आधुनिक जीवनशैली कैंसरजन्य है। हम जो खाते हैं, जिन साधनों-उपकरणों का दिनरात इस्तेमाल करते हैं उनसे कैंसर होने की प्रबल संभावनाएं हैं। शहरी शैली में ढले व्यक्तियों के विपरीत प्रकृति के सान्निध्य में अधिक रहने, गैरप्रोसेस्ड आहार का सेवन करने वालों में कैंसर तथा अन्य गैरसंक्रमणीय बीमारियां कम पाई जाती हैं। दुख की बात है कि पश्चिम की देखादेखी और चकाचौंध की दौड़ में हमारी आहार प्रणाली और सोच विकृत और रुग्ण हो रही है।
याद रहे स्वदेशी आहार में लहसन, नींबू, अदरख, हल्दी का खुला इस्तेमाल होता रहा है। उनके औषधीय गुणों को पहले आधुनिक चिकित्सा पद्धति ने यह एलान करते खारिज किया कि इसके प्रमाण नहीं हैं। और जब वैज्ञानिक परीक्षणों से इनकी कारगरता सिद्ध हुई तो अब इनके पेटेंट लेने की फिराक में हैं। इन खाद्यों में कैंसर को शिकस्त देने का सत्य अनेक अध्ययनों से सिद्ध है।
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