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योग स्वस्थ एवं संतुलित जीवन शैली का पर्याय है

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

योग एक स्वस्थ और संतुलित जीवन शैली को प्रोत्साहित करता है। ध्यान व योग मानसिक शांति देता है, जिससे सकारात्मक विचार आते हैं और लोग स्वस्थ जीवनशैली को अपनाने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। योग एक प्राचीन भारतीय परंपरा है, जो अब वैश्विक संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है। योग से परस्पर देश विदेश के योगी एक दूसरे से जुड़ते हैं और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देते हैं।

इस वर्ष योग दिवस का लक्ष्य योग के माध्यम से महिलाओं के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक कल्याण को बढ़ावा देना है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि महिलाएं स्वस्थ और आत्मविश्वास से भरपूर हों और समाज में अग्रणी भूमिका निभा रहीं है। इस वर्ष महिलाओं को प्रभावित करने वाली विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों जैसे- मासिक धर्म की परेशानी, रजोनिवृत्ति के लक्षण और प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर शोध करने की योजना है।

योग आत्म-जागरूकता और आत्म-स्वीकृति को बढ़ावा देता है, जो महिलाओं में आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान बढ़ा सकता है, जिससे महिलाओं को अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को पूरा करने की शक्ति मिलती है। योग के माध्यम से विश्व शांति, उन्नत व्यक्तित्व विकास, शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक संतुलन, गुस्सा एवं तनाव कम करने जैसे लक्ष्यों को भी हासिल किया जायेगा।

हमारे मस्तिष्क में एक पर्त है एनीमल ब्रेन की। वह पर्त सक्रिय होती है तो आदमी का व्यवहार पशुवत हो जाता है। जितने भी हिंसक और नकारात्मक भाव हैं, वे इसी एनीमल ब्रेन की सक्रियता का परिणाम है। इसे संतुलित करने का माध्यम योग है। शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक शांति एवं स्वस्थ्यता के लिये योग की एकमात्र रास्ता है। लेकिन भोगवादी युग में योग का इतिहास समय की अनंत गहराइयों में छुप गया है।

वैसे कुछ लोग यह भी मानते हैं कि योग विज्ञान वेदों से भी प्राचीन है। दुनिया में भारतीय योग को परचम फहराने वाले स्वामी विवेकानंद कहते हैं-‘‘निर्मल हृदय ही सत्य के प्रतिबिम्ब के लिए सर्वोत्तम दर्पण है। इसलिए सारी साधना हृदय को निर्मल करने के लिए ही है। जब वह निर्मल हो जाता है तो सारे सत्य उसी क्षण उसमें प्रतिबिम्बित हो जाते हैं।…पावित्र्य के बिना आध्यात्मिक शक्ति नहीं आ सकती।

अपवित्र कल्पना उतनी ही बुरी है, जितना अपवित्र कार्य।’’ आज विश्व में जो आतंकवाद, हिंसा, युद्ध, साम्प्रदायिक विद्धेष की ज्वलंत समस्याएं खड़ी है, उसका कारण भी योग का अभाव ही है। हम अपनी समस्या को समझें और अपना समाधान खोजें। समस्याएं परेशान करती हैं। जरूरत खुद को काबू में रखने की होती है, हम दूसरों को काबू में करने में जुटे रहते हैं।

विज्ञान ने यह प्रमाणित कर दिया है- जो व्यक्ति स्वस्थ रहना चाहता है, उसे योग को अपनाना होगा। बार-बार क्रोध करना, चिड़चिड़ापन आना, मूड का बिगड़ते रहना- ये सारे भाव हमारी समस्याओं से लडने की शक्ति को प्रतिहत करते हैं। इनसे ग्रस्त व्यक्ति बहुत जल्दी बीमार पड़ जाता है। हमें अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को किसी दायरे में बांधने से बचना होगा।

ऐसा तब होगा, जब हम योग को अपनी जीवनशैली बनायेंगे। हम जितना ध्यान रोगों को ठीक करने में देते हैं, उतना उनसे बचने में नहीं देते। दवा पर जितना भरोसा रखते हैं, उतना भोजन पर नहीं रखते। यही कारण है रोग पीछा नहीं छोड़ते। हमें यह पता होता है कि कार के लिए कौन सा ईंधन सही है, पर हम ये नहीं जानते कि शरीर को ठीक रखने के लिए कौन से ईंधन की जरूरत है? हमें कैसा भोजन करना चाहिए? कैसी सोच चाहिए? कैसी जीवनशैली चाहिए

योग एवं ध्यान एक ऐसी विधा है जो हमें भीड़ से हटाकर स्वयं की श्रेष्ठताओं से पहचान कराती है। हममें स्वयं पुरुषार्थ करने का जज्बा जगाती है। स्वयं की कमियों से रू-ब-रू होने को प्रेरित करती है। स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार कराती है। ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान हमारे भीतर से न मिले। भगवान महावीर का यह संदेश जन-जन के लिये सीख बने- ‘पुरुष! तू स्वयं अपना भाग्यविधाता है।’

औरों के सहारे मुकाम तक पहुंच भी गए तो क्या? इस तरह की मंजिलें स्थायी नहीं होती और न इस तरह का समाधान कारगर होता है। हमारे भीतर ऐसी शक्तियां हैं, जो हमें बचा सकती हैं। योग, संकल्प एवं संयम की शक्ति बहुत बड़ी शक्ति है। अनावश्यक कल्पना मानसिक बल को नष्ट करती है। लोग अनावश्यक कल्पना बहुत करते हैं। यदि उस कल्पना को योग में बदल दिया जाए तो वह एक महान शक्ति बन सकती है।

मानसिक संतुलन का अर्थ है विभिन्न परिस्थितियों में तालमेल स्थापित करना, जिसका सशक्त एवं प्रभावी माध्यम योग ही है। योग एक ऐसी तकनीक है, एक विज्ञान है जो हमारे शरीर, मन, विचार एवं आत्मा को स्वस्थ करती है। यह हमारे तनाव एवं कुंठा को दूर करती है। जब हम योग करते हैं, श्वासों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, प्राणायाम और कसरत करते हैं तो यह सब हमारे शरीर और मन को भीतर से खुश और प्रफुल्लित रहने के लिये प्रेरित करती है।

योग ने सिर्फ शरीर को बल्कि मंन को भी शांति और एकाग्रचित करता है। योग के अभ्यास से शांतिपूर्ण मन से व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए एक बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलती है।

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