गोरखपुर शहर से विधानसभा चुनाव लड़ेगें योगी आदित्यनाथ
1967 से रहा है BJP का अभेद्य गढ़
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
भाजपा ने शनिवार को ऐलान किया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 गोरखपुर शहर निर्वाचन क्षेत्र से लड़ेंगे, जो भाजपा और जनसंघ का 1967 से गढ़ रहा है. ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि योगी आदित्यनाथ तीन संभावित सीटों – अयोध्या, गोरखपुर शहर या मथुरा – में से किसी एक पर अपनी किस्मत आजमाएंगे और फिर भाजपा संसदीय बोर्ड ने फैसला किया कि सीएम को गोरखपुर शहर सीट से मैदान में उतारा जाना चाहिए. 1998 से 2017 में यूपी के मुख्यमंत्री बनने तक आदित्यनाथ गोरखपुर लोकसभा सीट से सांसद भी रहे हैं.
गोरखपुर शहर सीट भाजपा के लिए बेहद सुरक्षित है और वहां गोरखनाथ मंदिर के साथ योगी आदित्यनाथ का गढ़ है, इसलिए सीएम को प्रचार के लिए ज्यादा समय नहीं देना पड़ेगा और ऐसे में वे यूपी में बाकी चुनावी रणनीति पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हैं क्योंकि वह हैं भाजपा के टॉप स्टार प्रचारकों में शुमार हैं. भाजपा ने उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को कौशाम्बी जिले की सिराथू सीट से उतारा है, जहां उन्होंने 2012 में जीत हासिल की थी.
अखिलेश, मायावती और प्रियंका पर दबाव
चुनावी मैदान में उतरकर आदित्यनाथ ने अब अपने राजनीतिक विरोधियों समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती और कांग्रेस की यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा पर चुनाव में खड़े होने का दबाव डाला है.
चुनाव लड़ने को लेकर अखिलेश, मायावती और प्रियंका ने क्या कहा
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भाजपा के इस ऐलान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘लोगों को योगी आदित्यनाथ को वापस गोरखपुर भेजना था, लेकिन जनता से पहले बीजेपी ने ही उन्हें वापस भेज दिया है. यादव ने पहले कहा था कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन हाल ही में उन्होंने कहा कि वह इस संबंध में अपनी पार्टी के फैसले पर चलेंगे और किसी भी सीट से चुनाव लड़ेंगे. मायावती ने हालांकि साफ कर दिया है कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगी. वहीं, इस बारे में फिलहाल प्रियंका गांधी की ओर से कोई बात नहीं हुई है.
क्यों भाजपा के लिए बेहद सुरक्षित है गोरखपुर सीट
भाजपा नेता राधा मोहन दास अग्रवाल 2002 से गोरखपुर शहर सीट से चार बार विधायक रहे हैं और 2017 में 60,000 से अधिक मतों से जीते थे. इससे पहले भाजपा नेता शिव प्रताप शुक्ला और सुनील शास्त्री क्रमश: 1989 से 2002 और 1980 से 1989 तक इस सीट पर रहे. इससे पहले 1967 से भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार इस सीट पर काबिज थे. कांग्रेस ने 1951, 1957 और 1962 में इस सीट पर जीत हासिल की थी.