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सबका साथ सबका विकास मंत्र पर योगी सरकार ने काम किया-अमित शाह. - श्रीनारद मीडिया

सबका साथ सबका विकास मंत्र पर योगी सरकार ने काम किया-अमित शाह.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद 37 वर्ष बाद राज्य में किसी एक दल की सरकार की लगातार दूसरी बार ताजपोशी होगी।  विधायक दल की बैठक में मुहर लग गई। इस अवसर पर केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि ये हम सभी के लिए गौरव का क्षण है, जब किसी मुख्यमंत्री को दोबारा सत्ता में आने का मौका मिला है। जब से आम चुनाव शुरू हुए हैं, उस वक्त से उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं हुआ है।

अमित शाह ने कहा कि उत्तर प्रदेश में ज्यादातर समय राजनैतिक अस्थिरता का माहौल रहा। इसका नतीजा उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातिवादी और परिवारवादी पार्टियों का उदय हो गया। समाजवादी पार्टी की सरकार में राजनीति का अपराधीकरण था। उत्तर प्रदेश की जनता इससे मुक्ति चाहती थी। 2017 का समय आया और यहां की जनता को उससे मुक्ति मिली।

केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा कि सपा सरकार में उद्योगपतियों का सम्मेलन दिल्ली में होता था। क्योंकि कोई भी उद्योगपति लखनऊ आने के लिए तैयार नहीं होता था। सपा सरकार में माफिया और गुंडे पुलिस के मालिक बन बैठे थे। गरीब की एफआईआर लिखवाने की हिम्मत नहीं होती थी। 2017 के बाद जब सत्ता में बदलाव हुआ, तो आप देख सकते हैं गुंडे और माफिया की क्या हालत है।

अमित शाह ने कहा कि हम सभी को मोदी जी जैसा दूरदर्शी नेतृत्व मिला है, परिश्रमी नेतृत्व मिला है। गरीबों के प्रति समर्पित रहने वाला नेतृत्व मिला है। मोदी जी के मार्गदर्शन में योगी जी ने गरीब कल्याण के हर कार्य को पूरा कर जमीन तक पहुंचाया है। योगी सरकार ने सबका साथ सबका विकास मंत्र पर काम किया।

प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के दोबारा सत्ता में आते ही यह अटकलें जोर पकड़े हुए हैं कि योगी आदित्यनाथ के नए मंत्रिमंडल में कौन-कौन जगह पाएगा। चुनाव जीतने वालों में तमाम विधायक बड़े कद के हैं, जो पहले भी मंत्री रहे हैं। उनमें से अधिकांश की दूसरी पारी पर संदेह कम ही है। चर्चा यह भी है कि करीब चार दर्जन मंत्रियों (कैबिनेट, स्वतंत्र दर्जा प्राप्त और राज्यमंत्री) को शपथ दिलाई जा सकती है।

योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल के संभावित नामों को लेकर तमाम नामों पर चर्चा तेजी से वयलर हो रही है। इनमें से कुछ के नामों पर तो समीकरणों का भी बल मिल रहा है। मसलन, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य चुनाव हार गए हैं, लेकिन वह पिछड़ों के प्रमुख नेताओं में शामिल हैं।

उनका यह भी प्रभाव माना जा रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में जाने के बावजूद वह वोटबैंक भाजपा के साथ रहा। ऐसे में केशव इसी पद पर दूसरी पारी शुरू कर सकते हैं। पुष्कर सिंह धामी के चुनाव हारने के बाद भी उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाए जाने से इस बात की संभावना और बढ़ गई है।

पिछड़ों के ही नेता के रूप में प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह का नाम है। माना जा रहा है कि कुर्मी वोट इस बार उम्मीद के मुताबिक नहीं मिला है। स्वतंत्रदेव इसी वर्ग से ताल्लुक रखते हैं, इसलिए इस वर्ग को करीब लाने और संगठन की मेहनत का इनाम उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाकर दिया जा सकता है। इनमें से किसी एक को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की संभावना है।

उपमुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा के लिए दो विकल्प बताए जा रहे हैं। उनका यह पद बरकरार रह सकता है या प्रदेश अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं। संभावना यह भी है कि यदि पार्टी आगरा ग्रामीण से विधायक बनीं उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबीरानी मौर्य को डिप्टी सीएम बनाने की बजाए विधानसभा अध्यक्ष बना दे और दिनेश शर्मा उसी पद पर रहें तो प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी किसी दलित नेता को दी जा सकती है।

सरकार या संगठन में लाने के लिए पार्टी के पास एमएलसी विद्याराम सोनकर और लक्ष्मण आचार्य जैसे दलित नेता भी हैं। इसी वर्ग से कन्नौज विधायक असीम अरुण, हाथरस विधायक अंजुला माहौर भी हैं। योगी मंत्रिमंडल के अंतिम विस्तार में राज्यमंत्री बनाए गए संजीव गोंड अनुसूचित जनजाति से हैं, जो फिर विधायक बने हैं। इन्हें भी फिर मंत्रिमंडल में जगह मिलना तय माना जा रहा है।

इन नए नामों की चर्चा तेज:

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