हरी-भरी चाय की खुशबू लेने और देखने का आमंत्रण आपको है,कहाँ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

टी टूरिज्म के लिए विश्व भर में मशहूर बंगाल के दार्जिलिंग जिले के चाय बागान अब सिर्फ दूर से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र नहीं हैं बल्कि अतिथियों को अपने संग रखकर हरी-भरी चाय की खुशबू लेने और हिमालय से जुड़ी पर्वतीय शृंखला देखने का आमंत्रण दे रहे हैं। टी टूरिज्म के इस नए ट्रेंड को बढ़ावा देने में चाय बागान मालिकों के अलावा बड़े-छोटे होटल समूह और स्थानीय लोग भागीदार बने हैं। दरअसल पर्यटकों को टी टूरिज्म का यह नया ट्रेंड इसलिए रास आने लगा है क्योंकि उन्हें अपने बजट के अनुसार बागानों के बीच ताज ग्रुप जैसे बड़े होटल समूह के साथ चाय बागानों और स्थानीय लोगों के होम स्टे उपलब्ध हो रहे हैं।

ऐसे बदला चलन: समुद्र तल से लगभग 6,700 फीट ऊंचाई पर पर्वतों के बीच बसा दार्जिलिंग शहर अब आबादी बढऩे से पर्यटकों के लिए काफी महंगा साबित होने लगा है। शहर के होटलों में रुकने वाले अधिकांश पर्यटक सूर्योदय देखने के लिए टाइगर हिल तो जरूर जाते हैं, पर अलग से पैसे खर्च कर टैक्सी से चाय बागानों में जाकर चाय की खेती देखने से आमतौर पर परहेज करते हैं।

ऐसे में न्यूजलपाईगुड़ी और सिलीगुड़ी स्टेशन तथा बागडोगरा एयरपोर्ट से महज 50 किलोमीटर की दूरी पर बसा कर्सियांग पर्यटन का नया गंतव्य बन रहा है। कर्सियांग शहर से चंद किलोमीटर पहले चाय बागानों के बीच बसा मकाईबाड़ी पर्यटकों को लुभाने लगा है। यहां पहुंचने के लिए दार्जिलिंग हिल्स रेलवे की छुक-छुक रेल सेवा भी उपलब्ध है।

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बंगाल में कर्सियांग के मकाईबाड़ी में चाय बागान में चाय की पत्तियां तोड़तीं महिलाएं।

चाय की फैक्ट्री देखना न भूलें: मकाईबाड़ी की विशेषता यह है कि यहां 1859 में विकसित मकाईबाड़ी टी एस्टेट और पुरानी मशीनों से ही शानदार तरीके से चल रही चाय फैक्ट्री का प्रशासन अब पर्यटकों को भ्रमण की अनुमति देने लगा है। समुद्र तल से लगभग 4,900 फीट ऊंचाई पर स्थित इस टी एस्टेट में वर्ष 2020 से पंच सितारा होटल की सुविधा भी उपलब्ध है।

वहीं लगभग 50 होम स्टे मध्यमवर्गीय पर्यटकों को उनके बजट में बागान और चाय फैक्ट्री में घुमाने के अलावा उत्तर-दक्षिण भारतीय, बंगाली और स्थानीय व्यजनों का जायका उपलब्ध करा रहे हैं। ताज होटल के महाप्रबंधक जितेंद्र सिंह लोटे के अनुसार देश में कर्सियांग ऐसा पर्यटक स्थल है जो ट्रेन या फ्लाइट से आने वाले पर्यटकों को महज एक घंटे में टैक्सी से रुकने के स्थान पर पहुंचा देता है। इतनी नजदीकी शिमला या किसी और हिल स्टेशन जाने में नहीं है।

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मकाईबाड़ी टी एस्टेट में चाय बागान में श्रमिकों से चाय की पत्ती के बारे में जानकारी लेते पर्यटक।

कर्सियांग में पहाड़ों के मनोरम दृश्य ईगल-क्रेग, मार्गेट्स डेक से देख सकते हैं। डो हिल वन संग्रहालय, गिद्दा पहाड़ सती माता मंदिर भी पर्यटन का केंद्र हैैं। पर्यटक बस से लगभग 30-35 किलोमीटर ऊपर दार्जिलिंग जाकर पूरे दिन घूमकर शाम को वापस आ सकते हैं। होटल और होम स्टे की बुकिंग पर्यटक इंटरनेट पर आसानी से कर सकते हैं।

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मकाईबाड़ी में स्थित होम स्टे।

क्याफस्र्ट प्लस चाय: चाय की पत्तियों की तुड़ाई का मौसम चल रहा है। फस्र्ट प्लस चाय दार्जिलिंग के दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों के छोटे-छोटे बागान में पैदा होती है। सीजन शुरू होने पर जो पहली पत्ती पौधे में आती है उसे काम करने वाली महिलाएं फूल की तरह चुनती हैं। चाय फैक्ट्री में इसे तैयार कर निर्यात के लिए रखा जाता है। चूंकि इसकी कीमत 75 हजार से लेकर एक लाख रुपये प्रतिकिलो तक होती है, इसलिए इसकी अधिकांश खपत विदेश में ही होती है। इसके बाद जो पत्तियां आती हैं, उससे तैयार चाय की कीमत उसी हिसाब से तय होती है।

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मकाईबाड़ी टी एस्टेट में चाय की फैक्ट्री का भ्रमण करते पर्यटक।

पहाड़ी व्यंजनों के क्या कहने: दिल्ली से परिवार संग घूमने आए अजय और उनकी पत्नी रुचि कहते हैं कि दार्जिलिंग जैसा मोमो कहीं और नहीं मिल सकता। इसमें मिर्च समेत वो मसाले पड़ते हैं जो पहाड़ों में ही उपजाए जाते हैं। मोमो से पहले सूप सर्व करने की परंपरा सिर्फ यहीं देखने को मिलती है। मांसाहार में जो बंगाली ताजा मछली यहां उपलब्ध है, वो दिल्ली में कहां मिलेगी। खोये की मिठाइयों की वैरायटी भी है।

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मकाईबाड़ी टी एस्टेट में चाय उत्पादन करने वाली डेढ़ सौ वर्ष से ज्यादा पुरानी मशीन।

पर्यटन बना स्वावलंबन का आधार: कर्सियांग, दार्जिलिंग, कलिंपोंग के बाजारों की खासियत यह है कि यहां घरेलू उद्योग में निर्मित लकड़ी के खिलौने, रसोई का सामान, मिट्टी के सजावटी सामान, पहाड़ी परंपरा वाली पोशाकें, गर्म कपड़े आदि उपलब्ध हैं जिससे महिलाओं और युवाओं की बेरोजगारी दूर हुई है। चीन ने चोरी छिपे यहां के बाजारों में अपने उत्पाद झोंक रखे हैं, समझदार पर्यटक इन्हें नहीं खरीदते, परंतु बच्चे जिद कर देते हैं। इससे बचने की जरूरत है।

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