पसीने बहाने में छुपा है आपका भविष्य,कैसे ?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अगर आप सोच रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूं तो मुझे आपको समझाने दीजिए। डिलबर्ट नामक एक कार्टून है, जिसकी कहानी कुछ इस प्रकार है। एक ऑफिस में एमडी अपने एक कर्मचारी से बात कर रहे हैं। वे एक टेक्निकल राइटर हैं और कम्पनी के उत्पादों के बारे में सजीले शब्दों में लिखते हैं। एमडी कहते हैं, हेलो राजेश (काल्पनिक नाम), अब मुझे टेक्निकल राइटर की जरूरत नहीं है, क्योंकि एआई अब यह सब बकवास कर सकती है।
यहां बकवास शब्द पर ध्यान दें। अभी तक वह जरूरी काम था। जैसे ही एआई ने इसे अपने हाथों में लिया, यह मशीनी बन गया और बकवास काम हो गया। राजेश कहते हैं, क्या आप मुझे नौकरी से निकाल रहे हैं और इस कम्पनी के लिए मेरे योगदान को भी महत्वहीन करार दे रहे हैं? एमडी खुलकर नहीं कहते कि मैं कभी इस तरह की बातचीत एआई से नहीं करूंगा।
राजेश घर जाते हैं और अपनी पत्नी से बात करते हैं, जो कि एक डाटा एनालिस्ट हैं। वे उन्हें उनके भविष्य के बारे में तीन सूचनाएं देती हैं। पहली, 2018 तक भारत के एक-तिहाई घरों में स्मार्टफोन थे। 2022 में तीन-चौथाई घरों में हो गए। आज भारत के 74.8 प्रतिशत घरों में स्मार्टफोन हैं, जबकि 2018 में यह प्रतिशत केवल 36 ही था। इनमें भी लगभग 88.1 प्रतिशत के पास इंटरनेट सुविधा है।
दूसरी सूचना यह थी कि कोविड-काल के दौरान जो स्मार्टफोन शैक्षिक-प्रयोजन से लाए गए थे, उन्होंने जाने-अनजाने अपने धारकों की आकांक्षाओं (जो कि विज्ञापनों से प्रेरित थीं) और उस फोन के स्वामित्व के बीच एक सेतु भी बना दिया। वे लोग कभी मेट्रो शहरों के मॉल में नहीं गए थे, लेकिन उन्होंने चीजों को ऑनलाइन ऑर्डर किया और उनके अनुभव का मजा लिया।
आज भारत में 5100 स्टार्टअप्स इन आकांक्षाओं की पूर्ति कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने टीयर 2 और टीयर 3 शहरों के सेक्टर को अभी बस ऊपर-ऊपर से छुआ ही है। ग्रामीण भारत जितनी चीजें आज चाह रहा है, उसकी पूर्ति करने में वे सफल नहीं हो पा रहे हैं। तीसरी सूचना यह थी कि फर्टिलाइजर का उदाहरण लें, जिसे एक ग्रामीण उत्पाद समझा जाता है।
अप्रैल से दिसम्बर मध्य 2022 तक, हम 40.146 मिलियन मीट्रिक टन का उपभोग कर चुके हैं। जबकि हमने 32.076 मिलियन मीट्रिक टन का ही उत्पादन किया है, 12.839 मिलियन मीट्रिक टन का आयात किया गया है। सरकार ने फर्टिलाइजरों की उपलब्धता बेहतर बनाने के लिए कदम उठाए हैं। इन जरूरी सूचनाओं को प्राप्त करने के बाद राजेश छोटे कस्बों में ऑनलाइन सेलर्स की मदद करने लगे।
पिछले काम में उन्हें मिले एक्सपोज़र की मदद से उन्हें ऑनलाइन सेलर्स और बायर्स की अपेक्षाओं का पूर्वानुमान लगाने में सहायता मिली। उन्होंने उन्हें अफोर्डेबिलिटी और वैल्यू फॉर मनी के विचार के आधार पर यकीन दिलाया कि कैसे उन्हें भी उन नॉवेल्टी आइटम्स की जरूरत है, जो अब तक केवल बड़े शहरों तक सीमित थे। आज राजेश कस्बों की सैर करते हैं, लोगों की जरूरतें समझकर उसके लिए काम करते हैं।
पहले वे एक कम्पनी के चंद प्रोडक्ट्स के लिए एक केबिन में बैठकर काम करते थे, लेकिन अब उन्होंने उसी काम को विभिन्न कस्बों में जाकर करना शुरू कर दिया है। उनके कपड़े पसीने के कारण ज्यादा मैले हो जाते हैं, लेकिन उन्हें बढ़िया नींद आती है, क्योंकि वे भले ही कड़ी मेहनत कर रहे हों, लेकिन उन्हें यकीन है कि उन्हें कोई इस काम से निकाल नहीं सकेगा।
फंडा यह है कि अगर आप पसीना बहाने के लिए तैयार हैं तो आप अपनी स्याही से, या कह लें पसीने से अपना भविष्य लिख सकते हैं!
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