आपका अपना बटुए वाला:धन्यवाद पाकेटमार भाई.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आपका भेजा हुआ मेरा बटुआ मिल गया । आपका कितना धन्यवाद करूं , समझ में नहीं आता ।

पैसों की तो कोई चिंता नही थी , हाथ का मैल है , आते – जाते रहता है लेकिन, उस बटुए में मेरे करीब – करीब सारे ‘आईडी ‘ थे । बड़ी मुश्किल हो गई थी । ड्यूटी से समय मिल नहीं रहा था कि ऑफिस-ऑफिस दौड़ कर सारे आईडी फिर से बनवाऊं ।

ड्राइविंग लाइसेंस था , आधार – कार्ड , पैन – कार्ड , वोटर – आईडी , ऑफिस – आईडी और सबसे मुश्किल और चिंता की बात थी , उसमें मेरा एटीएम कार्ड भी था । कई जरूरी छोटी – बड़ी पर्चियां थीं । उमर हो गई है न , कुछ भी जल्दी भूल जाता हूँ । वही कुछ जरूरी बातों को पर्चियों में लिख कर बटुए में डाल देता हूँ । मैं उन पर्चियों के लिये भी परेशान था । किसी का लेना , किसी का देना , उन्ही छोटी – छोटी पर्चियों में था ।

आज वो सारी पर्चियां मिल गई , सभी आईडी मिल गए । आपकी शराफत का मैं कायल हो गया हूँ । आपने मेरे एटीएम कार्ड से भी कोई छेड़छाड़ न की । वैसे एटीएम को मैं ब्लॉक करा चुका था , आप चाहते तो भी कुछ नही कर पाते । इस बात का प्लीज बुरा मत मानियेगा ।

मैं तो बिल्कुल निराश हो गया था , कहीं से तनिक भी उम्मीद नहीं थी कि खोया हुआ बटुआ मिलेगा । मिलता भी कहाँ है लेकिन ,आपकी नेकनीयती का मैं क्या कहूँ । पैसे भले आपने रख लिए , वो आपके मेहनत का था लेकिन , मेरा बटुआ आपने भेज दिया ।

आप बहुत अच्छे आदमी है । भगवान आपका भला करें । आपके बच्चे आपसे भी बड़े और शरीफ पाकेटमार बनें ।

यह चिट्ठी उस अज्ञात पाकेटमार भाई के लिए है , जिसने पिछले दिनों गोरखनाथ क्षेत्र से मेरा बटुआ मार लिया था ।

चुकी उसमें मेरे कई आईडी थे , मैं थाने गया और रपट लिखवाया । उसकी एक प्रति ले ली ताकि फिर से आईडी बनवा सकूँ ।
थाने में बैठे – बैठे वहां के बाबू से मैं चर्चा कर रहा था कि एक बार दिल्ली में मेरा बटुआ किसी ने मार लिया लेकिन , कुछ हीं दिनों बाद पाकेटमार ने बटुआ में रखे आईडी और पुर्जे वगैरह एक लिफाफे में रख , बैरंग डाक से मेरे पते पर भेज दिया ।

थाने वाले हंसने लगे और बोले कि वह दिल्ली का पाकेटमार था । यहां गोरखपुर में ऐसे ‘ कल्चर्ड ‘ पाकेटमार नहीं है जो आपका आईडी और कागज वापस भेज दें । मैं क्या कहता , मुझे भी ऐसी कोई उम्मीद नहीं थी कि मेरे आईडी और पेपर वापस मेरे पास आएंगे ।

मेरा और थाने वालों का अंदाजा बिल्कुल गलत निकला । पाकेटमार नें मेरा बटुआ भेजा तो नहीं , किसी से मेरे नंबर पर फोन करवा दिया कि फ़लां जगह आपका बटुआ रखा है कल सुबह नौ बजे तक आ कर ले लें । मैंने बेटे को उस जगह भेजा और बटुआ जहां उसने बताया था , वहीं मिल गया ।

अब जब भी मैं थाने की तरफ जाऊंगा , उन्हे यह बात जरूर बताऊंगा कि गोरखपुर के पाकेटमार भी अब ‘ कल्चर्ड ‘ हो गए हैं ।

मेरा सभी पाकेटमार भाइयों से अनुरोध है कि पॉकेट जरूर मारें लेकिन , बटुआ में रखे आईडी और कागज जरूर वापस कर दें ।
बड़ी परेशानी होती है फिर से आईडी बनवाने में ।

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